हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘कल्कि 2898 AD’ में अमिताभ बच्चन और ‘जेलर’ में रजनीकांत के युवा अवतार ने दर्शकों को हैरान कर दिया है। इन दोनों फिल्मों में डिजिटल डी-एजिंग तकनीक का इस्तेमाल करके इन दिग्गज कलाकारों को उनकी युवा उम्र में दिखाया गया है।
डिजिटल डी-एजिंग क्या है?
डिजिटल डी-एजिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से फिल्मों में कलाकारों की उम्र कम या ज्यादा की जा सकती है। यह तकनीक कंप्यूटर ग्राफिक्स (CGI) और एडवांस सॉफ्टवेयर का उपयोग करके कलाकारों की पुरानी तस्वीरों या फिल्मों से डेटा निकालकर करती है।
यह कैसे काम करता है?
डिजिटल डी-एजिंग के लिए कलाकारों के चेहरे पर छोटे-छोटे सेंसर लगाए जाते हैं जो उनके भावों को रिकॉर्ड करते हैं। इसके बाद, कलाकारों की पुरानी तस्वीरों या फिल्मों से डेटा निकालकर एक आर्टिफिशियल इमेज तैयार की जाती है जो कलाकार के युवा रूप से मिलती-जुलती होती है।
यह तकनीक कितनी प्रभावी है?
डिजिटल डी-एजिंग तकनीक तेजी से विकसित हो रही है और अब यह बहुत ही प्रभावी हो गई है। ‘कल्कि 2898 AD’ और ‘जेलर’ में अमिताभ और रजनीकांत के युवा अवतार इसका जीता-जागता उदाहरण हैं।
भारतीय सिनेमा में डिजिटल डी-एजिंग का उपयोग
भारतीय सिनेमा में डिजिटल डी-एजिंग का उपयोग पहली बार 2006 में शाहरुख खान की फिल्म ‘रा वन’ में किया गया था।
इस तकनीक के फायदे और नुकसान
डिजिटल डी-एजिंग के कई फायदे हैं। यह कलाकारों को अपनी युवा उम्र में दिखाने की सुविधा देता है, जो कुछ फिल्मों के लिए आवश्यक होता है। इसके अलावा, यह कलाकारों को मेकअप से होने वाले नुकसान से भी बचाता है।
हालांकि, इस तकनीक के कुछ नुकसान भी हैं। यदि इसका गलत तरीके से उपयोग किया जाए तो यह अवास्तविक और अप्रभावी लग सकता है।
डिजिटल डी-एजिंग एक शक्तिशाली तकनीक है जो फिल्मों में कलाकारों के रूप को बदलने में सक्षम है। यह तकनीक अभी भी विकसित हो रही है, लेकिन यह निश्चित रूप से भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।