उत्तर प्रदेश की सियासत में दलितों का राजनीतिक महत्व एक बार फिर सुर्खियों में है। राणा सांगा विवाद के चलते दलितों को लेकर बीजेपी और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच सियासी जंग तेज हो गई है। सपा सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा राणा सांगा को ‘गद्दार’ कहे जाने से उठे विवाद ने सियासी समीकरणों को नया मोड़ दे दिया है। इसके जवाब में क्षत्रिय समाज और करणी सेना ने तीव्र विरोध दर्ज कराया, जिससे जातिगत तनाव और बढ़ा।
इस पूरे विवाद ने दलित समुदाय को राजनीतिक दलों की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर ला दिया है। उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी करीब 21% है, जो किसी भी पार्टी की चुनावी जीत में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। यही कारण है कि दोनों प्रमुख दल – बीजेपी और सपा – इस वर्ग को साधने के लिए सक्रिय हो गए हैं।
आंबेडकर सम्मान अभियान की शुरुआत
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में ‘आंबेडकर सम्मान अभियान’ की शुरुआत की है। इस अभियान के तहत बीजेपी कार्यकर्ताओं को सरकार की दलित कल्याण योजनाओं का प्रचार करने का निर्देश दिया गया है। योगी ने विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि वे दलितों को गुमराह कर शोषण करते हैं और देश में अराजकता फैलाते हैं।
राणा सांगा पर सपा सांसद का बयान
वहीं, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी दलित समर्थन मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। उन्होंने इटावा में डॉ. भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया और बसपा संस्थापक कांशीराम की याद दिलाकर बहुजन राजनीति को पुनर्जीवित करने की कोशिश की। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी ने करणी सेना के माध्यम से सपा सांसद के घर हमला करवाकर पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) वर्ग को निशाना बनाया है।
सपा की ओर से एक और बड़ा दांव तब चला गया जब बसपा के संस्थापक सदस्य दद्दू प्रसाद ने अखिलेश यादव की मौजूदगी में पार्टी जॉइन कर ली। इसके अलावा, आगरा के मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने दलित महत्व को रेखांकित करते हुए पदयात्रा का नेतृत्व किया।
कुल मिलाकर, राणा सांगा विवाद ने दलित राजनीति को केंद्र में ला दिया है, और दोनों प्रमुख दल इस वर्ग को साधकर आगामी लोकसभा चुनावों में जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं।
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