आज की कथा हम आपको बताने जा रहे हैं, बाल रूपी भगवान श्री कृष्ण और भगवान शिव का कैसे मिलन हुआ….जब वह समाधि से जागृत हुए तब उन्हें मालूम हुआ कि, भगवान श्रीकृष्ण ब्रज में बालरूप में प्राकट्य हो गया है, इससे बाबा भोलेनाथ ने बालकृष्ण के दर्शन के लिए विचार किये। भगवान शिवजी ने जोगी (साधु) का स्वांग सजा और अपने दो गण श्रृंगी, भृंगी को भी अपना शिष्य बनाकर साथ चल दिए।
भगवान शंकर अलख जगाते हुए गोकुल पहुचे, शिव जी नंदभवन के द्वार पर आकर खड़े हो गए।
तभी नन्द भवन से एक दासी जोगी के रूप मे आये शिवजी के पास आई और कहने लगी कि यशोदाजी ने ये भिक्षा भेजी है, इसे स्वीकार करें और लाला को आशीर्वाद दे दें। शिव बोले मैं भिक्षा नहीं लूंगा, गोकुल में यशोदाजी के घर बालक का जन्म हुआ हैं। मैं उनके दर्शन के लिए आया हूं। मुझे लाला का दर्शन करना हैं।
दासी भीतर जाकर यशोदामाता को सब बात बताई। यशोदाजी को यह सुन बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने बाहर झाँककर देखा कि एक साधु खड़े हैं। जिन्होंने बाघाम्बर पहना है, गले में सर्प हैं, भव्य जटा हैं, हाथ में त्रिशूल है। यशोदामाता ने साधु (शिवाजी) को प्रणाम करते हुए कहा कि…
मैं लाला को बाहर नहीं लाऊंगी, आपके गले में सर्प है, जिसे देखकर मेरा लाला डर जाएगा।
शिवजी बोले कि माता तेरा लाला तो काल का काल है, ब्रह्म का ब्रह्म है। वह किसी से नहीं डर सकता, उसे किसी की भी कुदृष्टि नहीं लग सकती और वह तो मुझे पहचानता है। वह मुझे देखकर प्रसन्न होगा। मां, मैं लाला के दर्शन के बिना ना ही पानी पीऊंगा और ना ही यहां से जाऊंगा और यहीं आपके आंगन में ही समाधि लगाकर बैठ जाऊंगा।
आज भी नन्दगांव में नन्दभवन के बाहर आशेश्वर महादेव का मंदिर है जहां शिवजी श्रीकृष्ण के दर्शन के लिये बैठे थे।
शिवजी ध्यान करते हुए तन्मय हुए तब बालकृष्ण लाला उनके हृदय में पधारे और बालकृष्ण ने अपनी लीला करना शुरु की
बालकृष्ण ने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। माता यशोदा ने उन्हें दूध, झुला झुलाया, खिलौने आदि देकर चुप कराने की बहुत कोशिश की परन्तु लीलाधर चुप नहीं हुए।
एक दासी ने कहा कि, माता मुझे लगता है, आंगन में जो साधु बैठे हैं, उन्होंने ही लाला पर कोई मंत्र फेर रहे हैं। तब माता यशोदा ने शांडिल्य ऋषि को लाला की नजर उतारने के लिए बुलाया। शांडिल्य ऋषि समझ गए कि भगवान शंकर ही कृष्णजी के बाल स्वरूप के दर्शन के लिए आए हैं।
तब उन्होंने माता यशोदा से कहा, माता आंगन में जो साधु बैठे हैं, उनका लाला से जन्म-जन्म का सम्बन्ध है। उन्हें लाला का दर्शन करवाइये। तब माता यशोदा ने लाला का सुन्दर श्रृंगार कर बालकृष्ण को पीताम्बर पहना, लाला को गले में बाघ के सुवर्ण जड़ित नाखून को पहनाया। फिर माता यशोदा ने शिवजी को भीतर बुलाया।
नन्दगांव में नन्दभवन के अन्दर आज भी नंदीश्वर महादेव हैं। श्रीकृष्ण का बाल स्वरूप अति दिव्य है।
श्रीकृष्ण और शिवजी की आंखें जब मिली तब शिवजी अति आनंद हो उठे। शिवजी की दृष्टि पड़ी तब लाला हंसने लगे। ये देख माता यशोदा को आश्चर्य हुआ कि अभी तो लाला इतना रो रहा था, अब हंसने लगा। माता ने शिवजी को प्रणाम किया और लाला को शिवजी की गोद में दे दिया। माता यशोदा ने शिवजी से लाला को नजर न लगने का मन्त्र देने को कहा।
जोगी रूपी शिवजी ने लाला की नजर उतारी और बालकृष्ण को गोद में लेकर नन्दभवन के आंगन में नाचने लगे।
पूरा नन्दगांव शिवमय बन गया।
आज भी ऐसा प्रतीत लगता है जैसे नन्दगांव पहाड़ पर है और नीचे से दर्शन करने पर भगवान शंकर बैठे हैं। शिवजी योगीश्वर हैं और श्रीकृष्ण योगेश्वर हैं।
शिवजी ने श्रीकृष्ण की स्तुति की। भगवान श्रीकृष्ण भी भगवान श्रीशिव से कहते हैं मुझे आपसे बढ़कर कोई प्रिय नहीं है, आप मुझे अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय हैं। जब भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ, तब उस समय भोले बाबा समाधि में थे।