उत्तराखंड की धामी सरकार ने राज्य में यूनिफार्म सिविल कोड के बाद एक और बड़ा फैसला लिया है। राज्य में लगातार उठ रही मांग को लेकर धामी कैबिनेट ने सख्त भू-कानून को मंजूरी दे दी। जिसको लेकर सीएम ने कहा कि, यह ऐतिहासिक कदम राज्य के संसाधनों, सांस्कृतिक धरोहर और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा, साथ ही प्रदेश की मूल पहचान को बनाएं रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। संशोधित ड्राफ्ट को मौजूदा विधानसभा सत्र में पेश किया जाएगा।
सीएम धामी ने कहा कि, हमारी सरकार जनता के हितों के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और हम कभी भी उनके विश्वास को टूटने नहीं देंगे। इस निर्णय से यह स्पष्ट हो जाता है कि, हम अपने राज्य और संस्कृति की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे। निश्चित तौर पर यह कानून प्रदेश के मूल स्वरूप को बनाए रखने में भी सहायक सिद्ध होगा।
क्या है नया कानून ?
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार द्वारा 2018 में लागू किए गए सभी प्रावधानों को नए कानून में समाप्त कर दिया गया है।
राज्य के 11 जिलों में बाहरी लोग खेती और बागवानी के लिए जमीन नहीं ले सकेंगे, जिसमें हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर शामिल नहीं हैं।
बाहरी लोग नहीं खरीद सकेंगे जमीन
पहाड़ी इलाकों में भूमि का सही उपयोग सुनिश्चित करने और अतिक्रमण रोकने के लिए चकबंदी और बंदोबस्ती की जाएगी।
जिलाधिकारियों के अधिकार सीमित।
जमीन की खरीदी-बिक्री के लिए ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया जाएगा ताकि डेटा व्यवस्थित रहे ताकि यह भी पता लगेगा कि कहीं कोई गड़बड़ी तो नहीं हो रही।
बाहरी लोग अगर जमीन लेना चाहें तो उन्हें एफिडेविट देना होगा और मकसद बताना होगा।
वहीं, कोई जमीन नियम तोड़कर खरीदी-बेची गई है, तो सरकार उसे अपने कब्जे में ले सकती है।
नए कानून का क्या होगा प्रभाव ?
नए कानून से उत्तराखंड में बाहरी लोगों द्वारा अंधाधुंध भूमि खरीद पर रोक लगेगी। वहीं, पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि का बेहतर प्रबंधन होगा, जिससे राज्य के निवासियों को अधिक लाभ मिलेगा। जबकि,भूमि की कीमतों में अप्राकृतिक बढ़ोतरी पर नियंत्रण रहेगा और राज्य के मूल निवासियों को भूमि खरीदने में सहूलियत होगी। सरकार को भूमि खरीद-बिक्री पर अधिक नियंत्रण प्राप्त होगा, जिससे अनियमितताओं पर रोक लगेगी।
बता दें कि, आजादी मिलने के बाद से लेकर उत्तर प्रदेश से अलग होकर नए राज्य बनने तक उत्तराखंड में लैंड खरीदने पर कोई रोक-टोक नहीं थी। जिससे बाहरी लोग यहां पर सस्ते दामों में जमीन खरीदते और अपने हिसाब से इसका प्रयोग करते। उत्तराखंड में टूरिज्म बहुत ज्यादा है, जिससे बाहरी लोग यहां फार्म हाउस, होटल और रिजॉर्टस बनाने लग गए, जिससे स्थानीय लोगों को खेती करने के लिए जमीन कम पड़ने लगी और धीरे-धीरे पहाड़ में रहने वाले लोग परेशान होने लगे।
आपको बता दें कि, उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों में वैसे तो खेती-किसानी करना उतना आसान तो नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे इलाके भी है, जहां फसले लगाई जा सकती है और वो भी सीढ़ीदार तकनीक के जरिए। ऐसे में राज्य में उपजाऊ जमीनों पर फसलों के लिए जमीन कम पड़ने लगी, जब राज्य का गठन हुआ तो यहा खेती करने के लिए लगभग 7.70 लाख हेक्टेयर जमीन खेती के लायक थी लेकिन दो दशकों में ये धीरे-धीरे कम होते-होते 5.68 लाख हेक्टेयर रह गई।
वहीं, बाद में धीरे-धीरे बाहरी लोग बढ़ने लगे जिससे राज्य में रहने वाले लोगों को आशंका हो गई कि, अगर यहीं हाल रहा तो वे घट जाएंगे और दूसरे राज्यों के लोगों का कब्जा भी बढ़ जाएगा। बता दें कि, कुछ ही सालों में उत्तराखंड में बाहरी राज्यों से आने वाले लोगों की आबादी में तेजी से इजाफा हुआ है। वहीं, राज्य की सीमा चीन से भी सटी हुई है, तो नेशनल सिक्योरिटी की चिंता भी बढ़ी है और स्थानीय लोग भी रिसोर्सेज के बंटवारे पर नाराज भी रहने लगे है।
वहीं, बीते कुछ सालों से उत्तराखंड के मूल निवासी बड़ी संख्या में लगातार प्रदर्शन भी कर रहे थे। किसान सड़क पर उतर आए और सरकार से मांग करने लगे कि जमीनों की ब्रिकी पर रोक लगे और खासकर जो बाहरी लोग हैं उन्हें जमीन खरीदने से रोका जाए। पिछले साल ही सरकार ने यह फैसला लिया कि, नया कानून बनाया जाएगा जिसको लेकर एक हाई लेवल कमेटी भी बनाई गई, जिसका काम था कि मौजूदा लैड लॉ को देखना और नए सिरे से उस पर रिपोर्ट तैयार करना।
बता दें कि, कमेटी की ही सिफारिश पर सरकार ने नया ड्राफ्ट बनाया जिसमें कई बड़े बदलाव हुए हैं, जिससे उत्तराखंड में खेती की जमीनों को सुरक्षित रखा जा सके और बाहरी लोगों के खिलाफ स्थानीय लोगों का गुस्सा न बढ़ें।