पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर किसान अपनी मांगों के लिए फरवरी से आंदोलन कर रहे हैं, और अब यह संघर्ष और तेज हो गया है। शुक्रवार, 6 दिसंबर को किसान संगठन के 100 से अधिक सदस्य शंभू बॉर्डर से दिल्ली की ओर कूच करने के लिए आगे बढ़े, लेकिन हरियाणा पुलिस ने उन्हें सीमा पार करने से रोक लिया। किसान बैरिकेडिंग और कंटीले तार हटाकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया, जिससे तनाव बढ़ गया।
किसान नेताओं ने ऐलान किया कि अब उनका जत्था 8 दिसंबर को दोपहर 12 बजे दिल्ली की ओर कूच करेगा। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने बताया कि 7 दिसंबर को वे केंद्र सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं, और एक दिन इंतजार करेंगे। उनका कहना था कि वे सरकार से टकराव नहीं चाहते, लेकिन अगर बातचीत नहीं होती तो वे अपना आंदोलन और तेज करेंगे। किसान आंदोलन ने अब एक नया मोड़ लिया है और किसान अपनी राजधानी दिल्ली जाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।
इस बीच, पुलिस का कहना था कि किसानों को दिल्ली पुलिस से अनुमति प्राप्त करने के बाद ही उन्हें आगे बढ़ने दिया जाएगा। अंबाला जिले में किसानों के आंदोलन को देखते हुए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। अंबाला के डंगदेहरी, लोहगढ़, मानकपुर, डडियाना, बारी घेल, लहारसा, कालू माजरा, देवी नगर, सद्दोपुर, सुल्तानपुर और काकरू में 9 दिसंबर तक मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद रहेगी। यह कदम सुरक्षा कारणों से उठाया गया है, ताकि किसानों के आंदोलन से संबंधित कोई भी अप्रिय स्थिति पैदा न हो।
किसानों का यह आंदोलन कृषि कानूनों के खिलाफ है, जो 2020 में लागू किए गए थे। किसानों का आरोप है कि ये कानून उनकी आय और कृषि के पारंपरिक ढांचे को नुकसान पहुंचाएंगे। पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों के किसान इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, और इसके लिए वे शंभू बॉर्डर सहित कई अन्य सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। इस संघर्ष में किसान दिल्ली तक पहुंचने के लिए दृढ़ हैं, लेकिन हरियाणा और दिल्ली पुलिस ने उन्हें बार-बार रोकने की कोशिश की है।
इस आंदोलन का असर केवल पंजाब और हरियाणा तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में इसके प्रतिकूल प्रभाव दिख रहे हैं। कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का यह आंदोलन सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंच चुका है, लेकिन अब तक किसी ठोस समाधान पर पहुंचने में कोई सफलता नहीं मिली है। किसान नेता और संगठन यह भी स्पष्ट कर चुके हैं कि वे किसी भी प्रकार के हिंसक संघर्ष से बचना चाहते हैं, लेकिन अगर उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं तो आंदोलन को तेज किया जाएगा।
शंभू बॉर्डर पर तनाव
शंभू बॉर्डर पर किसानों का संघर्ष और बढ़ गया जब शुक्रवार, 6 दिसंबर को करीब 100 किसान संगठन से जुड़े सदस्य दिल्ली की ओर पैदल कूच करने के लिए आगे बढ़े। किसानों ने पहले बैरिकेडिंग और कंटीले तारों को हटाया, ताकि वे आगे बढ़ सकें, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया। इसके बाद किसान बैरिकेडिंग के सामने खड़े रहे और बार-बार यह कहते रहे कि वे पैदल दिल्ली जाना चाहते हैं।
इसी बीच एक किसान बैरिकेडिंग पर बने शेड पर चढ़ गया, जिसे पुलिस ने चेतावनी देकर नीचे उतारा। इससे पहले कुछ किसान लोहे के जंगले पर चढ़े तो पुलिस ने उन पर स्प्रे किया। किसानों का कहना था कि यह स्प्रे मिर्ची वाला था, जिससे उनकी आंखों में जलन हो रही थी। इसके बाद पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़ने शुरू कर दिए। लगभग एक घंटे के बाद पुलिस ने बैरिकेड पर लगी जाली हटाने पर कार्रवाई की।
पुलिस की ओर से लगभग 26 से अधिक आंसू गैस के गोले छोड़े गए और प्लास्टिक की गोलियां भी चलाई गईं। इस घटना में छह किसान जख्मी हो गए। इस दौरान किसानों ने अपने हाथों में संगठन के झंडे और तिरंगे पकड़े हुए थे, और मुंह पर कपड़ा बांधकर प्रदर्शन कर रहे थे। उनका कहना था कि उन्हें दिल्ली जाने के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह उनकी हक की बात है और वे अपनी राजधानी में किसी भी रुकावट के बिना प्रवेश करना चाहते हैं।
सरकार से बातचीत की उम्मीद
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि अब उनका ‘जत्था’ 8 दिसंबर को दोपहर 12 बजे दिल्ली की ओर कूच करेगा, और वे सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार उनसे बातचीत करने के लिए तैयार होती है, तो वे अगले एक दिन का समय इंतजार करेंगे, लेकिन अगर सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाती है, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। किसान नेताओं का कहना है कि वे सरकार के साथ टकराव नहीं चाहते, लेकिन अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो उन्हें अपनी आवाज उठाने के लिए और कठोर कदम उठाने होंगे।
पुलिस और सरकार का रुख
पुलिस और सरकार का रुख इस पूरे आंदोलन के दौरान मिलाजुला रहा है। पुलिस ने बार-बार किसानों को बैरिकेडिंग के पास रुकने और बिना अनुमति के दिल्ली की ओर बढ़ने से मना किया है। पुलिस की तरफ से किसानों को दिल्ली पुलिस से अनुमति प्राप्त करने की सलाह दी गई है, लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि उन्हें अपनी राजधानी में प्रवेश के लिए किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
दूसरी ओर, सरकार ने भी किसानों से बातचीत की पेशकश की है, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या सरकार और किसानों के बीच इस गतिरोध को हल करने के लिए कोई ठोस उपाय उठाए जाएंगे। यदि दोनों पक्षों के बीच कोई समझौता नहीं होता है, तो आंदोलन में और बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों में और अधिक तनाव उत्पन्न हो सकता है।
इंटरनेट सेवाओं का बंद होना
अंबाला जिले में किसानों के आंदोलन को लेकर पुलिस ने सुरक्षा उपायों के तहत 9 दिसंबर तक मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया है। यह कदम किसानों के आंदोलन को लेकर किसी भी तरह की हिंसा या अप्रिय घटनाओं को रोकने के लिए उठाया गया है। अंबाला जिले के डंगदेहरी, लोहगढ़, मानकपुर, डडियाना, बारी घेल, लहारसा, कालू माजरा, देवी नगर, सद्दोपुर, सुल्तानपुर और काकरू जैसे क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि प्रशासन इस आंदोलन के प्रति अपनी पूरी सतर्कता बरत रहा है और किसी भी तरह की हिंसा या अशांति को रोकने के लिए पूरी ताकत से काम कर रहा है।
किसानों का दृढ़ संकल्प
किसान आंदोलन में शामिल लोग अब अपने आंदोलन को और तेज करने के लिए तैयार हैं। उनका कहना है कि अगर सरकार उनकी मांगों को पूरा नहीं करती है तो वे अपनी मांगों के लिए और भी बड़े कदम उठा सकते हैं। इस समय किसानों का मुख्य उद्देश्य कृषि कानूनों को रद्द करवाना है, ताकि वे अपनी आय और कृषि कार्यों को सुरक्षित रख सकें। उनका कहना है कि ये कानून उनके लिए खतरनाक हैं और इससे वे पूरी तरह असहमत हैं।
किसान आंदोलन अब केवल एक राज्य या क्षेत्र का नहीं रह गया है। यह आंदोलन देशभर के किसानों और उनके अधिकारों की लड़ाई बन चुका है। सरकार और किसानों के बीच बातचीत का दौर जारी है, लेकिन फिलहाल कोई ठोस समाधान नजर नहीं आ रहा है।