भारत में सोमवार को शेयर बाजार में एक बड़े उथल-पुथल का सामना करना पड़ा। बीएसई का सेंसेक्स 3000 से लेकर 4000 अंकों तक गिरा, और निफ्टी में भी करीब 1100 अंकों की गिरावट आई। यह गिरावट उस समय आई, जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी व्यापार नीति में बड़े बदलाव करते हुए, दुनियाभर के कई देशों से आयात होने वाले उत्पादों पर आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने का फैसला लिया था। इसके बाद यह प्रश्न उठने लगा कि आखिर ट्रंप के इस फैसले का इतना भीषण असर क्यों पड़ा है और इसका भारतीय शेयर बाजार पर इतना बड़ा प्रभाव क्यों दिखाई दिया?
आयात शुल्क का असर शेयर बाजार पर क्यों पड़ा?
ट्रंप का यह कदम आर्थिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण मोड़ था। आयात शुल्क बढ़ाने का मुख्य उद्देश्य अमेरिका में घरेलू उत्पादों की खपत को बढ़ाना था, ताकि अमेरिकी उद्योगों को बढ़ावा मिले। लेकिन इसका प्रतिकूल असर दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ा है, क्योंकि अमेरिका ने जिन देशों से सबसे अधिक आयात किया है, अब इन देशों के उत्पादों पर टैक्स बढ़ने के कारण उनकी कीमतें भी बढ़ेंगी। इससे अमेरिका में इन उत्पादों की मांग में गिरावट हो सकती है।
भारत समेत एशियाई देशों के लिए यह एक बड़ा झटका था, क्योंकि इन देशों की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा निर्यात पर निर्भर करता है। जब अमेरिकी बाजार में आयात शुल्क बढ़ता है, तो इन देशों के लिए अपने उत्पादों को वहां बेचना महंगा हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उनके निर्यात पर असर पड़ता है।
भारत में क्या हुआ?
भारत में इस फैसले के असर के रूप में सोमवार को ही भारी गिरावट देखी गई। बीएसई सेंसेक्स ने सुबह खुलने के बाद लगभग 3900 अंक गिरकर 5.22% की गिरावट दर्ज की। यह भारत के शेयर बाजार की अब तक की सबसे बड़ी गिरावटों में से एक थी। रिपोर्टों के अनुसार, इस दौरान भारतीय शेयर बाजार से लगभग 20 लाख करोड़ रुपये का निवेशक पूंजी गायब हो गई। हालांकि, दोपहर आते-आते कुछ सुधार देखने को मिला और सेंसेक्स में गिरावट 3200 अंकों के आसपास आ गई, लेकिन तब तक यह गिरावट बड़ी चर्चा का कारण बन चुकी थी। यह दिन शेयर बाजार में ‘ब्लैक मंडे’ के रूप में मशहूर हुआ।
दुनिया भर में गिरावट: एशियाई देशों पर गहरा असर
यह केवल भारत का मामला नहीं था, बल्कि एशिया के बाकी देशों में भी इस फैसले का भारी असर देखने को मिला। जापान से लेकर चीन, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर जैसे देशों में भी भारी बिकवाली देखी गई। चीन, जापान और दक्षिण कोरिया, ये तीन ऐसे देश हैं जो अमेरिका को बड़ी मात्रा में सामान निर्यात करते हैं। ऐसे में अमेरिकी बाजार में ड्यूटी बढ़ने से इन देशों के निर्यात पर सीधा असर पड़ा है। इन देशों के उत्पाद अब महंगे हो गए हैं, और अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए इन उत्पादों को खरीदना पहले से कहीं ज्यादा महंगा हो गया है।
एशियाई देशों पर असर
एशिया के अधिकतर देशों के लिए अमेरिका एक बड़ा निर्यातक बाजार है। चीन, भारत, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों की अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका को निर्यात किए गए उत्पादों पर निर्भर करती हैं। यदि अमेरिका में इन उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया जाता है, तो इन देशों के लिए अपने उत्पादों को वहां बेचने की लागत भी बढ़ जाती है। इसका सीधा असर उनके निर्यात पर पड़ता है, जिससे इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को झटका लगता है।
क्या यह असर स्थायी होगा?
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले का असर लंबे समय तक हो सकता है, खासकर तब जब यह वैश्विक व्यापार में बड़ी अनिश्चितता पैदा कर रहा हो। हालांकि, यह कहा जा सकता है कि यह असर समय के साथ कम हो सकता है यदि अमेरिका और अन्य देशों के बीच व्यापारिक समझौतों में बदलाव आता है या फिर दोनों पक्षों के बीच तनाव कम होता है। लेकिन फिलहाल, ऐसा लगता है कि यह असर कुछ समय तक शेयर बाजारों पर बना रह सकता है।
आम लोगों की जिंदगी पर असर
जब शेयर बाजार में इतनी बड़ी गिरावट होती है, तो इसका प्रभाव न केवल निवेशकों, बल्कि आम जनता की जिंदगी पर भी पड़ता है।
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निवेशकों के लिए खतरा: पहले तो, शेयर बाजार में गिरावट से उन लोगों को नुकसान होता है जिन्होंने शेयरों में निवेश किया है। इस गिरावट के कारण लोग अपने निवेश का बड़ा हिस्सा खो देते हैं। यदि आप किसी बड़े निवेशक हैं, तो यह गिरावट आपको सीधे तौर पर प्रभावित करती है।
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ब्याज दरों पर असर: अगर अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ती है, तो इससे ब्याज दरों में भी बदलाव हो सकता है। सरकार और रिजर्व बैंक, बाजार को स्थिर करने के लिए विभिन्न उपायों पर विचार कर सकते हैं। अगर ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो ऋण लेने वाले लोगों के लिए यह अधिक महंगा हो सकता है।
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मांग में कमी: व्यापार युद्ध के कारण अगर आयात शुल्क बढ़ते हैं, तो अमेरिका और अन्य देशों के बाजारों में निर्यातक देशों के उत्पाद महंगे हो सकते हैं, जिससे इन उत्पादों की मांग में कमी आ सकती है। यह उन उत्पादकों के लिए चिंता का विषय हो सकता है, जो इन उत्पादों का निर्यात करते हैं।
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मंदी का खतरा: लंबे समय तक यह गिरावट बनी रहती है, तो यह मंदी का रूप भी ले सकती है। अगर व्यापार में बाधाएं बढ़ती हैं, तो इससे कंपनियों की उत्पादन क्षमता पर असर पड़ेगा और इससे श्रमिकों की नौकरियों पर भी असर पड़ सकता है।