दिवाली की पूर्व संध्या पर फिल्मी चर्चा में जो सवाल उठता है, वह निश्चित रूप से ध्यान आकर्षित करता है। अजय देवगन, अक्षय कुमार, रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण जैसे बड़े सितारे जब एक विलेन के खिलाफ खड़े होते हैं, तो अर्जुन कपूर का चुनाव कुछ अजीब सा लगता है। इस संदर्भ में अर्जुन का किरदार, जुबैर हफीज, जो श्रीलंका में है, एक बार फिर से मुस्लिम विलेन की पुरानी छवि को दोहराता है।

हालांकि, ऐसा लगता है कि हिंदी सिनेमा में अब इन किरदारों में कोई नई बात नहीं रह गई है। सैफ अली खान द्वारा ‘आदिपुरुष’ में निभाया गया रावण याद दिलाता है कि कैसे फिल्में एक ही तरह के किरदारों को बार-बार प्रस्तुत करती हैं। क्या यह अनफिट कास्टिंग है या फिल्म निर्माताओं की सोच में कमी? यह सवाल विचार करने योग्य है।

स्टंट दृश्यों के कारीगर रोहित शेट्टी

रोहित शेट्टी को स्टंट डायरेक्टर के रूप में अच्छी पहचान मिली है, और उनकी एक्शन फिल्मों में एक खास तरह का मसाला होता है। लेकिन ‘सिंघम अगेन’ के साथ उनके निर्देशन की असल गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते हैं। फिल्म की कॉमेडी, खासकर रणवीर सिंह के प्रदर्शन, को देखने पर ऐसा लगता है जैसे यह पहले से बनी हुई फिल्म ‘सर्कस’ का ही विस्तार हो।

इस बार कहानी का फोकस सामाजिक मुद्दों से ज्यादा व्यक्तिगत है, जहां सिंघम (अजय देवगन) अपने सिद्धांतों और जरूरतों के बीच संघर्ष करता नजर आता है। संवादों में ‘मेरी जरूरतें कम हैं, इसलिए मेरे जमीर में दम है’ जैसे लकीर के फकीर विचार दिखते हैं, जो कहीं न कहीं दर्शकों को एक पुरानी कहानी की याद दिलाते हैं।

फिल्म में एक ‘शिवा स्क्वॉड’ का गठन किया गया है, जिसमें विभिन्न पुलिस अधिकारी एकत्रित हुए हैं। यहां तक कि लोकप्रिय किरदार ‘दया’ भी एक महत्वपूर्ण भूमिका में दिखाई देता है। यह सब मिलाकर फिल्म की संरचना को एक सामूहिक स्वरूप देती है, लेकिन कहानी की गहराई और नवीनता की कमी महसूस होती है।

क्लाइमेक्स से पहले एक श्लोकी रामायण?
फिल्म ‘सिंघम अगेन’ के निर्माण में कथानक की कमी साफ महसूस होती है। इसके पौन दर्जन लेखकों ने शायद यह सोचने का प्रयास नहीं किया कि कहानी का वास्तविक आधार क्या होना चाहिए। रोहित शेट्टी ने यह मान लिया कि दिवाली पर रिलीज होने के लिए रामकथा का जिक्र करना एक सुरक्षित विकल्प होगा।

फिल्म में श्लोकी रामायण के बोल और शिवतांडव का पाठ जैसे धार्मिक संदर्भों का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन ये सब मिलकर भी कहानी को एक ठोस रूप नहीं दे पाते। इससे ऐसा लगता है जैसे कहानी को मजबूरी में भर दिया गया है।

इसके साथ ही, फिल्म में कार्तिक आर्यन के टैटू का जिक्र करते हुए, अजय देवगन के किरदार के टैटू को भी दिखाने की आवश्यकता महसूस हुई। यह दिखाता है कि निर्देशक को कुछ नया पेश करने का दबाव था, लेकिन वह अपनी मंशा में असफल रहे।

बड़े परदे पर ‘लेजेंड्स ऑफ रामायण’

फिल्म ‘सिंघम अगेन’ में कहानी की प्रगति के साथ नए किरदारों की एंट्री होती है, जो रामायण के अध्यायों को आगे बढ़ाने का प्रयास करती है। हालांकि, शक्ति शेट्टी का किरदार किसी तरह से रामायण से नहीं जुड़ता। ऐसा लगता है कि लेखकों ने अपने संदर्भों को जोड़ने के लिए हनुमान, लक्ष्मण, सीता, जटायु और गरुड़ जैसे पात्रों का इस्तेमाल किया है, लेकिन यह सब काफी जबरदस्ती लगता है।

फिल्म में पंचवटी और श्रीलंका के सीता मंदिर की कहानियों को भी शामिल किया गया है, लेकिन ये कड़ियाँ फिल्म के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करती हैं। इसके अलावा, फिल्म के शुरू में ही एक लंबा डिस्क्लेमर लगाना पड़ा, जिसमें यह बताया गया कि राम कथा के संदर्भ में उन्हें सेंसर के निर्देशों का पालन करना है।

टाइगर श्रॉफ का करियर बचाने की कोशिश!
फिल्म ‘सिंघम अगेन’ में टाइगर श्रॉफ का किरदार एक महत्वपूर्ण कमजोरी बनकर उभरा है। उनकी उपस्थिति फिल्म को खींचती है, जिससे कहानी का प्रवाह बाधित होता है। टाइगर का प्रदर्शन एक एजेंसी के तैयार किए गए कलाकार की तरह लगता है, जिसमें न तो संवादों की गहराई है और न ही किसी भावनात्मक जुड़ाव का अनुभव।

उनकी उछल-कूद और मांसपेशियों का प्रदर्शन तो है, लेकिन उसमें एक स्थिरता और गहराई की कमी है। फिल्म में टाइगर की ऊँचाई को लेकर भी एक मजेदार टिप्पणी की जा सकती है, जो दर्शाती है कि वह एक सामान्य कैटेगरी के युवा दरोगा के रूप में फिट बैठते हैं।

दूसरे कलाकारों, जैसे अजय देवगन और करीना कपूर, ने अपने किरदारों में जो गंभीरता दिखाई है, वह टाइगर और अक्षय कुमार में नहीं दिखती। दोनों का प्रदर्शन ऐसा लगता है जैसे वे किसी हल्की-फुल्की फिल्म का हिस्सा हैं, न कि गंभीर एक्शन ड्रामा का। यह स्थिति फिल्म की गुणवत्ता को प्रभावित करती है और दर्शकों को एक सशक्त कथा की तलाश में निराश करती है।

कमजोर रह गया शक्ति शेट्टी का किरदार

फिल्म में दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की मौजूदगी एक आकर्षण का केंद्र है, लेकिन दीपिका का किरदार वास्तव में कमजोर साबित होता है। उन्होंने अपनी गर्भावस्था के दौरान इस फिल्म की शूटिंग की, और उनकी बॉडी डबल्स ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जो कि उनकी भूमिकाओं को संतुलित करने में मददगार साबित हुआ है।

हालांकि, दीपिका के चेहरे पर दिखने वाली मासूमियत और शरारत आज भी दर्शकों को भाती है, लेकिन उनके किरदार की सीमितता को देखकर निराशा होती है। शक्ति शेट्टी के रूप में वह एक पुलिस अफसर की भूमिका में हैं, जो पूरी तरह से अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना करती हैं।

फिल्म के क्लाइमेक्स में, दीपिका का किरदार केवल एक सजावट की तरह नजर आता है, जबकि उनके कार्यक्षेत्र में आने वाले सिपाही खतरनाक स्थितियों का सामना कर रहे होते हैं। ऐसा लगता है कि उनका किरदार केवल भीड़ का हिस्सा बनकर रह गया है, जो फिल्म की कहानी को एक उचित दिशा में नहीं ले जा पाता। इस तरह, दीपिका का टैलेंट पूरी तरह से इस कमजोर स्क्रिप्ट के कारण पीछे छूट जाता है।

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