दिल्ली। प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इस बार चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत 6 अप्रैल, शनिवार पड़ रहा है, इस कारण से इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। स्कन्दपुराण के अनुसार प्रभुत्व की प्राप्ति के प्रयोजन से प्रत्येक मास के कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों में त्रयोदशी को किया जाता है। शिवपूजन और रात्रि-भोजन के अनुरोध से इसे ‘प्रदोष” कहते हैं। इसका समय सूर्यास्त से दो घड़ी रात बीतने तक होता है। जो मनुष्य प्रदोषके समय महादेव की स्तुति करता है, उसके धन-धान्य, जीवनसाथी, बन्धु-बान्धव और सुख-सम्पत्ति सदैव बढ़ते रहते हैं।

Shani Pradosh Vrat 2024: शनि प्रदोष व्रत पर स्कंद पुराण के अनुसार करें भगवान शिव का पूजन, मनोकामनाएं होंगी पूरी
Shani Pradosh Vrat Puja vidhi : हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इस बार चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत 6 अप्रैल के दिन है। इस दिन शनिवार पड़ रहा है, इसलिए इसे शनि प्रदोष व्रत भी कहा जाता है। प्रदोष व्रत का आरम्भ 6 अप्रैल सुबह 10 बजकर 20 मिनट को होगा। जबकि इसकी समाप्ति अगले दिन 7 अप्रैल 2024 को सुबह 6 बजकर 54 मिनट पर होगी। प्रदोष व्रत पर भगवान शिव की पूजा की जाती है। आइए, जानते हैं स्कंदपुराण के अनुसार भगवान शिव की विशेष पूजा विधि।

प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इस बार चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत 6 अप्रैल, शनिवार पड़ रहा है, इस कारण से इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। स्कन्दपुराण के अनुसार प्रभुत्व की प्राप्ति के प्रयोजन से प्रत्येक मास के कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों में त्रयोदशी को किया जाता है। शिवपूजन और रात्रि-भोजन के अनुरोध से इसे ‘प्रदोष” कहते हैं। इसका समय सूर्यास्त से दो घड़ी रात बीतने तक होता है। जो मनुष्य प्रदोषके समय महादेव की स्तुति करता है, उसके धन-धान्य, जीवनसाथी, बन्धु-बान्धव और सुख-सम्पत्ति सदैव बढ़ते रहते हैं।

शनि प्रदोष व्रत पूजन विधि-
कृष्ण पक्ष में सोम और शुक्ल पक्ष में शनि हो, तो उस प्रदोष का विशेष फल होता है। कृष्ण प्रदोष में प्रदोष व्यापिनी परविद्धा त्रयोदशी ली जाती है। उस दिन सूर्यास्त के समय पुन स्नान करके शिवमूर्ति के समीप पूर्व या उत्तर मुख होकर बैठ जाएं और हाथ में जल, फल, पुष्प लेकर ‘मम शिवप्रसादप्राप्तिकामनया प्रदोषव्रतांगीभूतं शिवपूजनं करिष्ये’ यह संकल्प करके माथ पर भस्म के भव्य तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें। इसके बाद पुष्प और बेल पत्र से शिव और पार्वती का पूजन करें। आप चाहें, तो शिव मूर्ति के स्थान पर खुद भी शिव स्तुति करने के लिए चिकनी मिट्टी से भगवान शिव की प्रतिमा बना सकते हैं। शिव मूर्तिका सानिध्य प्राप्त न हो सके, तो भीगी हुई चिकनी मिट्टी को ‘हराय नमः’ से ग्रहण करके ‘महेश्वराय नमः’ का नाम लेकर शिवलिंग भी बना सकते हैं। फिर ‘शूलपाणये नमः ‘ से प्रतिष्ठा और ‘पिनाकपाणये नमः’ नाम लेकर ‘ओम नमः शिवाय’ का जाप करते हुए स्नान कराएं और ‘पशुपतये नमः’ से गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पण करें। इसके बाद ‘जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभंजन। जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो॥ प्रसीद मे महाभाग संसारार्तस्य खिद्यतः। सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर।’ से प्रार्थना करके ‘महादेवाय नमः’ से पूजित मूर्ति का विसर्जन करें। इस व्रत की पूर्ण अवधि 21 वर्ष की है, परंतु समय और सामर्थ्य न हो, तो उद्यापन करके इसका विसर्जन करें।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *