उत्तर प्रदेश के संभल में वर्ष 1978 में हुए दंगों की फाइलें फिर से खोली जा रही हैं। प्रदेश सरकार ने इस मामले में प्रशासन और पुलिस से सात दिनों के भीतर रिपोर्ट मांगी है। इस निर्णय के पीछे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विधानसभा में दिया गया वक्तव्य एक महत्वपूर्ण कारण है। इसमें उन्होंने दंगों के दौरान हिंदू समाज पर हुए अत्याचारों और पलायन का उल्लेख किया था।
29 मार्च 1978: दंगे का दिन
1978 में 29 मार्च का दिन संभल के इतिहास में एक काले दिन के रूप में दर्ज है। इस दिन दंगे के दौरान शहर में हिंसा और आगजनी की घटनाओं ने भयावह स्थिति पैदा कर दी थी। दोनों समुदायों के बीच तनाव चरम पर था, और हालात काबू से बाहर हो गए। स्थिति इतनी बिगड़ गई थी कि प्रशासन को शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा। लेकिन इसके बावजूद हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
कर्फ्यू और भय का माहौल
शहर में फैले तनाव के कारण कर्फ्यू का अंतराल बढ़ा दिया गया। संभल में दो महीने तक कर्फ्यू लागू रहा। इस दौरान आगजनी, हत्या और हिंसा के मामले बढ़ते गए। दंगे के भय से 40 रस्तोगी परिवारों को अपने घर छोड़कर पलायन करना पड़ा। इन परिवारों ने वर्षों तक अपने घरों से दूर रहकर जीवन बिताया।
धार्मिक स्थल और पलायन
दंगे की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक मंदिर, जहां पहले नियमित रूप से पूजा होती थी, वह पूरी तरह से बंद हो गया। 46 वर्षों तक यह मंदिर बंद रहा, और कोई भी वहां पूजा करने की हिम्मत नहीं कर सका। अब, प्रशासन और स्थानीय लोगों की सक्रियता के चलते, इस बंद मंदिर के पट हाल ही में खोले गए।
वर्तमान स्थिति और रिपोर्ट का आदेश
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा विधानसभा में दिए गए वक्तव्य के बाद इस मामले में तेजी आई। उन्होंने कहा कि 1947 से लेकर अब तक संभल में 209 हिंदुओं की जान दंगों के चलते गई है। दंगे के दौरान जो घटनाएं हुईं, उनकी कोई उचित जांच नहीं हो सकी। घटना के 46 वर्षों बाद भी किसी को सजा नहीं मिली।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार ने संभल प्रशासन और पुलिस से इस मामले की फाइलें खंगालने और विस्तृत जांच करने को कहा है। इसके लिए सात दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया गया है।
1978 दंगों की प्रमुख घटनाएं
- 29 मार्च 1978: दंगों की शुरुआत, आगजनी और हिंसा।
- कर्फ्यू लागू: हालात बेकाबू होने पर प्रशासन ने कर्फ्यू लगाया।
- दंगे का असर: दो महीने तक कर्फ्यू लागू रहा।
- पलायन: 40 रस्तोगी परिवारों को अपना घर छोड़ना पड़ा।
- मंदिर बंद: धार्मिक स्थल में पूजा-अर्चना बंद हो गई।
पलायन के गवाह आज भी जीवित
दंगे के गवाह आज भी मौजूद हैं, जिन्होंने उस भयावह समय को देखा और झेला। इन लोगों का कहना है कि उस समय की हिंसा और तनाव के कारण उन्हें अपने घर छोड़कर भागना पड़ा। अब, 46 साल बाद, सरकार की पहल पर इस मामले की जांच हो रही है।
दंगों के पीछे के कारण
दंगों के पीछे के कारणों की जांच अभी भी चल रही है। हालांकि, तत्कालीन परिस्थितियों में सांप्रदायिक तनाव, राजनीतिक हस्तक्षेप और प्रशासनिक विफलता को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
सरकार की मंशा और भविष्य की कार्रवाई
प्रदेश सरकार इस मामले में निष्पक्ष और व्यापक जांच करने की मंशा रखती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर इस ऐतिहासिक घटना की फाइलें फिर से खोली जा रही हैं। उम्मीद है कि जांच के परिणामस्वरूप दंगों के दोषियों को सजा मिल सकेगी और पीड़ितों को न्याय मिलेगा।
प्रशासन की भूमिका
संभल प्रशासन और पुलिस की जिम्मेदारी है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच करें और 46 साल पुराने इस मामले की सच्चाई को उजागर करें। रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपी जाएगी, ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके।