रियो ओलंपिक 2016 में ब्रॉन्ज जीतने वाली साक्षी मलिक ने हाल ही में अपनी किताब “विटनेस” में कुछ विवादास्पद दावे किए हैं, जिसमें उन्होंने अपने साथी पहलवानों विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और बबीता फोगाट के प्रति अपनी राय साझा की है। साक्षी ने कहा कि विनेश और बजरंग के कुछ फैसले उनके आंदोलन को ‘स्वार्थपूर्ण’ बना रहे थे, जिससे कुश्ती में आंतरिक कलह का संकेत मिलता है। विनेश ने इस पर असहमति जताते हुए कहा कि उनके और बजरंग के फैसले का प्रभाव बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ प्रदर्शन पर पड़ा।
बाबिता फोगाट के बारे में साक्षी ने यह भी आरोप लगाया कि बबीता ने कुश्ती संघ के अध्यक्ष बनने के लिए पहलवानों को उकसाया। यह आरोप अब भारतीय कुश्ती की राजनीति में एक नया मोड़ ला रहा है। इन विवादों के बीच, बजरंग पूनिया ने अपने सोशल मीडिया पर एक भावुक पोस्ट साझा किया, जिसमें उन्होंने अपने जीवन में आए बदलावों का जिक्र किया।
बजरंग ने लिखा कि उनका जीवन पहले ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन जब कुछ जूनियर महिला पहलवान उनके घर आईं और उनके संघर्ष की कहानी साझा की, तो उनका दृष्टिकोण बदल गया। बजरंग ने स्वीकार किया कि उन्होंने इन आंदोलनों में भाग लेकर अपने खेल करियर को दांव पर लगा दिया, लेकिन इस बात का संतोष है कि महिला पहलवानों ने अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने कहा, “यह जीत मेरे ओलंपिक मेडल से भी बड़ी है।”
बजरंग ने अपने पोस्ट में यह भी कहा कि सरकार द्वारा दिए गए पुरस्कार को उन्होंने प्रधानमंत्री आवास के सामने रख दिया था। उन्होंने महसूस किया कि किसान आंदोलन और अग्निवीर आंदोलन ने उनके जीवन को कैसे प्रभावित किया। उन्होंने कहा, “मेरे मेडल ने मेरी जिंदगी तो बदली, पर मेरे लोगों का नहीं?”
बजरंग पुनिया की कहानी में संघर्ष और सफलता का एक दिलचस्प मिश्रण है। हरियाणा के झज्जर में जन्मे बजरंग के पिता बलवान सिंह भी पहलवान थे। युवा अवस्था में ही उन्होंने कुश्ती को अपनाया और 14 साल की उम्र में स्थानीय अखाड़े में प्रशिक्षण लेना शुरू किया। उन्हें ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त से मार्गदर्शन मिला, जिसने उनके कुश्ती करियर को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बजरंग ने 2013 में एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप और विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर अपनी पहचान बनाई। इसके बाद, उन्होंने टोक्यो 2020 में घुटने की चोट के बावजूद कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया।
हाल के घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय कुश्ती केवल खेल नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन चुकी है। साक्षी, विनेश, और बजरंग जैसे पहलवानों के अनुभव यह दर्शाते हैं कि खेल में सफलता के साथ-साथ सामाजिक बदलाव की आवश्यकता भी महत्वपूर्ण है। भारतीय कुश्ती की यह नई पीढ़ी न केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों के लिए, बल्कि सामूहिक संघर्ष के लिए भी खड़ी हो रही है।
अब देखना यह है कि इस सब के बीच भारतीय कुश्ती संघ और उसके प्रशासन में क्या बदलाव आता है और ये पहलवान अपने संघर्षों से समाज में क्या संदेश फैलाते हैं।