महाराष्ट्र के नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विचार साझा किए कि कैसे भौतिक विकास मानवता को विनाश की ओर ले जा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले 2000 वर्षों के सभी प्रयोग सुख और शांति लाने में असफल रहे हैं, और इस संदर्भ में हमारी परंपरा का उत्तर महत्वपूर्ण है।

मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि भौतिक विकास भले ही चरम पर पहुंच गया हो, लेकिन इसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। उन्होंने कहा, “भौतिक विकास के कदम मानवता को विनाश की तरफ ले जा रहे हैं।” यह विचार आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि तकनीकी प्रगति और भौतिक सुख-सुविधाएं अक्सर मानवता के मूल्यों और नैतिकता को पीछे छोड़ देती हैं।

भागवत ने कहा कि जीवन में संघर्ष आवश्यक है। उन्होंने इसे “स्ट्रगल फॉर एक्जिस्टेंस” का नाम दिया, जो हर व्यक्ति को जीवन में एकत्र करना पड़ता है। “संघर्ष के बिना जीवन नहीं है,” उन्होंने कहा, “परंतु संघर्ष में एक समन्वय छिपा है।” इस विचार के माध्यम से, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि संघर्ष केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी होना चाहिए।

भागवत ने यह भी बताया कि हमारे मनीषियों ने यह समझा है कि दुनिया वास्तव में एक है, लेकिन उसमें विविधता की भी आवश्यकता है। “जब हम जबरदस्ती दुनिया को एक करने का प्रयास करते हैं, तो हम वास्तविकता से दूर हो जाते हैं।” उनका यह संदेश इस बात का संकेत था कि हमें विविधता को स्वीकार करते हुए एकता की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

मोहन भागवत ने कहा, “हमने किसी को रिजेक्ट नहीं किया है, हमने सबको स्वीकार किया है।” यह विचार RSS के समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है, जहां सभी विचारधाराओं और परंपराओं का सम्मान किया जाता है। भागवत ने बताया कि आस्तिक और नास्तिक दोनों दर्शन का समावेश इस दिशा में महत्वपूर्ण है।

उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय का उल्लेख करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी के बीजेपी कार्यकर्ताओं को उनकी कहानियों में विश्वास नहीं होता। “यदि हमें दीनदयाल उपाध्याय के तेज का शतांश भी मिल जाए, तो हम दसों दिशाओं को उजाला दे पाएंगे।” यह बयान कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणादायक था और उन्हें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।

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