आलू की बढ़ती कीमतों ने रसोई का बजट बिगाड़ रखा है और लोगों की चिंता बढ़ा दी है। थोक कीमतों में 25% की बढ़ोतरी ने परेशानी और बढ़ा दी है। 1 अप्रैल से 21 मई तक आलू की थोक कीमतों में तेज़ी देखी गई है।
कीमतों में उछाल की मुख्य वजह यह है कि गर्मियों में खपत बढ़ने के बावजूद कोल्ड स्टोरेज से पर्याप्त आलू बाजारों में नहीं पहुंच पा रहा है। ट्रेडर्स का अनुमान है कि नवंबर तक आलू की कीमतें ऊंची ही रहेंगी।
पिछले 2 महीनों से आलू की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 8 दिनों में ही आलू 4-5% प्रति क्विंटल महंगा हो गया है। 8 दिन पहले आलू का मॉडल रेट 1750 रुपये प्रति क्विंटल था, जो 21 मई को बढ़कर 1860 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच गया है। 1 अप्रैल से अब तक कीमतों में 25% की बढ़ोतरी देखी गई है।
आलू के प्रमुख उत्पादक राज्यों पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में रबी सीजन में बेवक्त बारिश के कारण फसल को नुकसान हुआ था, जिससे उत्पादन में गिरावट आई है।
रबी सीजन में आलू के कुल उत्पादन का 60% कोल्ड स्टोरेज में स्टॉक हो चुका है, 15% आलू ही बाजार में आया है और बाकी बीज के रूप में किसानों ने अपने पास रोक लिया है। गर्मियों में आलू की खपत बढ़ने के बावजूद ट्रेडर्स कोल्ड स्टोरेज से आलू बाजार में नहीं ला रहे हैं। आमतौर पर जुलाई-अगस्त में कोल्ड स्टोर का आलू बाजार में आता है, लेकिन इस बार जरूरत पहले ही पड़ती दिख रही है। हालांकि नवंबर से पहले कीमतों में गिरावट का अनुमान नहीं है।