भारत के न्यायिक तंत्र में सुधार की दिशा में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम एक महत्वपूर्ण कदम उठाने की योजना बना रहा है। सूत्रों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने एक नया प्रस्ताव तैयार किया है, जिसके तहत मौजूदा या पूर्व न्यायालय के जजों के रिश्तेदारों को अब हाईकोर्ट के जज के रूप में नियुक्त करने के लिए सिफारिश नहीं की जा सकती। इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य न्यायपालिका में वंशवाद के प्रभाव को कम करना और योग्य उम्मीदवारों को उनके योग्यता के आधार पर नियुक्ति देना है।
कॉलेजियम के जज का विचार
इस नए प्रस्ताव को लेकर कॉलेजियम के एक जज ने हाल ही में अपने विचार व्यक्त किए थे। उनका मानना था कि वर्तमान में यह धारणा बन चुकी है कि न्यायपालिका में वंश के आधार पर नियुक्तियां होती हैं, बजाय इसके कि योग्यता को महत्व दिया जाए। उनका सुझाव है कि इस धारणा को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया जाना चाहिए ताकि जजों की नियुक्ति पूरी तरह से उनकी कानूनी क्षमता और योग्यताओं के आधार पर की जा सके। इसके तहत यह प्रस्ताव किया जा रहा है कि जिन उम्मीदवारों के माता-पिता या करीबी रिश्तेदार सर्वोच्च न्यायालय या हाईकोर्ट के मौजूदा या पूर्व जज रहे हैं, उनकी सिफारिश को फिलहाल रोका जा सकता है।
प्रस्ताव के पीछे का कारण
यह कदम इस धारणा को समाप्त करने के लिए उठाया जा रहा है कि हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति में वंश को अधिक महत्व दिया जाता है और इस प्रक्रिया में पहली पीढ़ी के वकील या न्यायिक अधिकारी पिछड़ जाते हैं। कई बार देखा गया है कि ऐसे वकील या अधिकारी जो पहली पीढ़ी के वकील होते हैं, उन्हें जज बनने की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की प्राथमिकता नहीं मिलती, जबकि जजों के रिश्तेदारों को कुछ हद तक प्राथमिकता मिलती है।
प्रमुख तर्क
इस विचार के पीछे का मुख्य तर्क यह है कि वंशवाद की यह परंपरा योग्य व्यक्तियों को अवसर नहीं देती। इसके बजाय, यह एक नकारात्मक संदेश भेजती है कि न्यायिक नियुक्तियों में वंश का महत्व योग्यता से अधिक है। विशेष रूप से, यह ऐसे वकीलों या न्यायिक अधिकारियों को प्रभावित करता है जो अपने पेशेवर जीवन में मेहनत और समर्पण से अपने रास्ते पर आगे बढ़े हैं, लेकिन उन्हें सही अवसर नहीं मिलते क्योंकि उनका कोई परिवार सदस्य उच्च न्यायपालिका का हिस्सा नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और इसकी प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का कार्य सर्वोच्च न्यायालय और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की सिफारिश करना है। कॉलेजियम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) और वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं। यह कॉलेजियम जजों के नामों पर विचार करता है, और इसके द्वारा दी गई सिफारिशों को केंद्र सरकार की मंजूरी मिलनी चाहिए।
अतीत में कॉलेजियम के कामकाज को लेकर कई बार आलोचनाएं सामने आई हैं, जिनमें पारदर्शिता की कमी और न्यायिक नियुक्तियों में राजनीतिक प्रभाव को लेकर सवाल उठाए गए हैं। हालांकि, यह प्रणाली न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के उद्देश्य से बनाई गई थी, लेकिन इसके कार्यप्रणाली पर समय-समय पर बहस होती रही है। इस प्रस्ताव के द्वारा कॉलेजियम यह सुनिश्चित करना चाहता है कि न्यायपालिका में नियुक्तियां पूरी तरह से पारदर्शी और योग्य उम्मीदवारों के आधार पर की जाएं।
इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रियाएं
यह प्रस्ताव कुछ लोगों द्वारा स्वागत किया गया है, क्योंकि यह वंशवाद और राजनीतिक प्रभाव को खत्म करने का एक प्रभावी तरीका माना जा रहा है। हालांकि, कुछ न्यायिक अधिकारियों ने इस पर अपनी चिंता भी व्यक्त की है। उनका कहना है कि इस कदम से योग्य उम्मीदवारों को केवल इस वजह से न्यायाधीश बनने से रोका जा सकता है क्योंकि वे उच्च न्यायपालिका के वर्तमान या पूर्व न्यायाधीशों के रिश्तेदार हैं।
हालांकि, इस प्रस्ताव के समर्थकों का कहना है कि इससे पहली पीढ़ी के वकीलों और न्यायिक अधिकारियों को न्यायपालिका में अपना स्थान पाने का एक समान अवसर मिलेगा। इसके परिणामस्वरूप, यह न्यायपालिका में अधिक विविधता और क्षमता ला सकता है।
उच्च न्यायालयों में जजों की सिफारिश की प्रक्रिया में बदलाव
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाल ही में उच्च न्यायालयों में जजों की सिफारिश की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है। पहले जहां केवल पारंपरिक बायोडाटा, लिखित मूल्यांकन और खुफिया रिपोर्ट्स पर ही ध्यान दिया जाता था, अब कॉलेजियम ने व्यक्तिगत मुलाकातों का भी आगाज़ किया है। इस नई प्रक्रिया के तहत, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने राजस्थान, उत्तराखंड, मुंबई और इलाहाबाद हाईकोर्ट के लिए जजों के नामों पर विचार किया है, और इस बार करीब छह नाम केंद्र सरकार को भेजे गए हैं।
यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की पारदर्शिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। व्यक्तिगत मुलाकातों से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि जिन उम्मीदवारों के नाम उच्च न्यायालयों के लिए सिफारिश किए गए हैं, वे अपनी कानूनी समझ और कार्यक्षमता के मामले में योग्य हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यादव का विवाद
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा इस नए प्रस्ताव पर विचार करने की प्रक्रिया में एक और महत्वपूर्ण घटना घटी, जो इस बदलाव को उत्प्रेरित करने में सहायक सिद्ध हो सकती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस शेखर कुमार यादव ने दिसंबर 2022 में एक विवादास्पद बयान दिया था। उन्होंने एक वीएचपी (विष्व हिंदू परिषद) इवेंट में भारत के कार्य करने के तरीके को बहुसंख्यक समुदाय की इच्छाओं के अनुरूप करने की बात कही थी। इस बयान ने विवाद खड़ा कर दिया था और कई राजनीतिक और न्यायिक हलकों में आलोचना का विषय बन गया था।
इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान में लिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट से रिपोर्ट मांगी। इसके बाद, जस्टिस यादव ने 17 दिसंबर 2022 को कॉलेजियम के समक्ष अपना पक्ष रखा। इस घटना ने न्यायपालिका में सुधार और पारदर्शिता की जरूरत को और भी मजबूती से रेखांकित किया।
भविष्य में संभावित प्रभाव
यदि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम इस प्रस्ताव को मंजूरी देता है, तो इसका न्यायपालिका के भविष्य पर गहरा असर पड़ सकता है। सबसे पहले, यह न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देगा। इसके अतिरिक्त, यह पहली पीढ़ी के वकीलों को न्यायपालिका में प्रवेश करने के लिए अधिक अवसर प्रदान करेगा, जो अब तक पारिवारिक संबंधों के कारण वंचित रहते आए हैं।
हालांकि, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि यह कदम योग्य और सक्षम उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा से बाहर न करे। यह जरूरी है कि इस प्रक्रिया में संतुलन बना रहे ताकि न्यायपालिका की गुणवत्ता और स्वतंत्रता बनी रहे।