हाईकोर्टतीन साल की बच्ची से कृत्य को हाईकोर्ट ने बताया राक्षसी

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने तीन साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने इस कृत्य को “राक्षसी” बताते हुए कहा कि ऐसी जघन्य अपराध के लिए मृत्युदंड ही सही सजा है। साथ ही, अदालत ने जिला मजिस्ट्रेट को तत्काल जल्लाद नियुक्त करने का आदेश दिया है ताकि मृत्युदंड को जल्द से जल्द क्रियान्वित किया जा सके।

2018 का भयानक अपराध

यह मामला नवंबर 2018 का है, जब गुरुग्राम के सेक्टर-65 में एक तीन साल की बच्ची का शव नग्न अवस्था में और खून से सना हुआ पाया गया था। जांच में यह सामने आया कि पीड़िता का पड़ोसी सुनील था, जिसने पहले बच्ची से दुष्कर्म किया और फिर हत्या कर दी। गुरुग्राम की विशेष अदालत ने पोक्सो अधिनियम के तहत सुनील को 3 फरवरी 2024 को यौन उत्पीड़न और हत्या का दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई थी। इसके बाद, दोषी ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी, जिस पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की और मौत की सजा को सही ठहराया।

हाईकोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने पाया कि दोषी ने अपने बयान में अपराध को कबूल किया है और यह बताया कि उसने हत्या में इस्तेमाल किए गए हथियार कहां छिपाए थे। डीएनए रिपोर्ट से यह पुष्टि हो गई कि पीड़िता के शरीर पर खून के धब्बे और आरोपी का डीएनए पाया गया था। इसके अतिरिक्त, साक्ष्य यह भी दर्शाते हैं कि आरोपी और बच्ची आखिरी बार एक साथ देखे गए थे।

कोर्ट ने इस मामले को “दुर्लभतम” मानते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले से सहमति जताई। अदालत ने कहा, “यह मामला न्यायिक अंतरात्मा को झकझोरने वाला है। यह केवल एक बच्ची की हत्या का मामला नहीं है, बल्कि एक राक्षसी कृत्य है, जिसमें दुष्कर्म करने के बाद हत्या की गई।”

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तीन साल की बच्ची से कृत्य को हाईकोर्ट ने बताया राक्षसी

मृत्युदंड की पुष्टि

हाईकोर्ट ने कहा कि इस जघन्य अपराध के लिए दोषी को दी गई मृत्युदंड की सजा पूरी तरह से उचित है और ट्रायल कोर्ट द्वारा यह फैसला बिल्कुल सही था। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे अमानवीय और राक्षसी आचरण के लिए मृत्युदंड ही उचित सजा है, जो समाज में अपराधियों के लिए एक कड़ा संदेश देगा।

जल्द निष्पादन का आदेश

हाईकोर्ट ने मृत्युदंड के आदेश को लागू करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को तुरंत एक जल्लाद नियुक्त करने का निर्देश दिया, ताकि दोषी को शीघ्र सजा दी जा सके। अदालत ने यह आदेश जारी करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में न्याय की प्रक्रिया को तीव्रता से आगे बढ़ाया जाए, ताकि आरोपी को उसके किए की सजा मिल सके।

यह मामला न्यायालय में एक महत्वपूर्ण मिसाल बन गया है, जहां बच्चों के खिलाफ हुए अपराधों में सजा की गंभीरता को लेकर उच्चतम न्यायिक शक्ति का प्रदर्शन किया गया है। न्यायालय की यह कार्रवाई अपराधियों को यह सख्त संदेश देती है कि समाज में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसे मामलों में कठोरतम सजा दी जाएगी।