भारतीय रेलवे न केवल यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने का कार्य करता है, बल्कि अपनी सामाजिक जिम्मेदारी भी निभाता है। इसके तहत मध्य रेलवे ने अपने एक विशेष अभियान “ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते” के तहत सात महीनों में 861 खोए-भटके बच्चों को उनके माता-पिता से मिलवाया है। यह अभियान अप्रैल से अक्टूबर के बीच चलाया गया था, जिसमें 589 लड़कों और 272 लड़कियों को उनके परिवारों के पास सुरक्षित पहुंचाया गया।

आरपीएफ कर्मियों का संजीवनी अभियान

मध्य रेलवे के सुरक्षा बल, यानी रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के कर्मी इस अभियान में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। ये कर्मी खोए हुए बच्चों को खोजने के बाद उन्हें समझाते-बुझाते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि वे सुरक्षित तरीके से अपने घर लौट सकें। इस पहल को लेकर माता-पिता भी काफी आभारी नजर आते हैं, क्योंकि उनके बच्चों का खो जाना, खासकर किसी बड़े शहर में, एक गंभीर चिंता का विषय हो सकता है।

आरपीएफ के कर्मी न केवल बच्चों को उनकी पहचान वापस दिलवाते हैं, बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से भी सहारा प्रदान करते हैं। कभी-कभी, बच्चों के खोने की वजह मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, जैसे कि रास्ता भटक जाना। वहीं, कई बार पारिवारिक तनाव, जैसे माता-पिता से लड़ाई या पढ़ाई को लेकर डांट-फटकार भी बच्चों को घर से बाहर जाने की प्रेरणा देती है। कुछ बच्चे तो बेहतर जिंदगी की तलाश में घर छोड़ देते हैं और बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं, जैसे कि मुंबई की ग्लैमर की दुनिया।

नन्हे फरिश्ते की एक और कहानी

इस अभियान से जुड़ी कई दिलचस्प और इमोशनल कहानियां भी सामने आई हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश के खंडवा स्टेशन पर एक अकेला बच्चा बैठा मिला। इस बच्चे के हाथ में एक मोबाइल नंबर गुदा हुआ था। जब इस नंबर पर फोन किया गया, तो पता चला कि वह बच्चा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा था और बार-बार रास्ता भटक जाता था। रेलवे सुरक्षा बल के कर्मियों ने इस बच्चे को उसकी पहचान दिलवाकर और उसकी मानसिक स्थिति को समझकर उसे उसके परिवार से मिलवाया। इस बच्चा का नाम सुमित था, और उसकी तरह 860 अन्य बच्चों को भी इस अभियान के तहत उनके घर वापस भेजा गया।

किशोरों की समस्याएं और रेलवे की भूमिका

कई बार बच्चों के घर से भागने का कारण उनके मानसिक या पारिवारिक तनाव होते हैं। उन्हें सही मार्गदर्शन और समझ की जरूरत होती है। “ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते” के तहत, रेलवे इस सामाजिक मुद्दे पर जागरूकता फैलाने के साथ-साथ बच्चों की सुरक्षा और देखभाल भी सुनिश्चित करता है। इन बच्चों को जब रेलवे सुरक्षा बल के कर्मी ढूंढते हैं, तो वे उन्हें न केवल शारीरिक रूप से सुरक्षित रखते हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी सुदृढ़ करते हैं ताकि वे अपने परिवारों से मिलने के लिए तैयार हो सकें।

मध्य रेलवे का अभियान: एक नज़रिया

मध्य रेलवे का यह अभियान बच्चों के लिए एक संजीवनी साबित हो रहा है। रेलवे अधिकारियों के अनुसार, यह अभियान न केवल बच्चों के लिए, बल्कि उनके माता-पिता के लिए भी राहत की खबर है। “ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते” के तहत अब तक बच्चों को सुरक्षित उनके घर पहुंचाने का कार्य लगातार जारी है। इस अभियान से जुड़ी कई कहानियां बताती हैं कि कैसे रेलवे ने अपने कर्मचारियों की मेहनत से उन बच्चों को घर वापस लौटाया, जिनका खो जाना किसी के लिए भी बहुत बड़ा संकट हो सकता था।