हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस की स्थिति इंडिया ब्लॉक के बीच कमजोर नजर आ रही है। यूपी के उपचुनावों में तो कांग्रेस अपने प्रत्याशी भी नहीं उतार पाई क्योंकि वहां सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ रही है। यानि कि हरियाणा चुनाव के बाद कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ बारगेनिंग भी नहीं कर पाई। दरअसल 13 नवंबर को यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है और सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी ही चुनाव लड़ेगी।
गौरतलब है कि कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व लगातार पांच सीटों की डिमांड कर रहा था लेकिन, अखिलेश यादव इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद कांग्रेस ने चुनाव से हटने का संकेत दे दिया। प्रदेश के राजनीतिक मैदान में इसका गलत संदेश न जाए। इसको लेकर अखिलेश ने राहुल गांधी तक से चर्चा की लेकिन, कांग्रेस तीन सीटों पर भी तैयार नहीं हुई। वहीं चुनावी राज्य महाराष्ट्र की बात करें तो यहां भी राजनीति गरमाई हुई है। विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी में सीटों के बंटवारे पर आखिरी वक्त में जाकर सहमति बन पाई है। यहां MVA के बीच 288 सीटों में से सिर्फ 255 सीटों पर ही सीट-बंटवारे की सहमति बन पाई है।इसके मुताबिक गठबंधन में शामिल तीनों दलों को 85 सीटें मिलेंगी, इस गठबंधन में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का ही हुआ है। कांग्रेस, जोकि इस गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहती थी। वो अब बराबर की सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है। इससे पहले कांग्रेस ने कभी भी इतनी कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा।
सवाल यही है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी की ये हालात क्यों हुई? कांग्रेस की आखिर क्या मजबूरी है कि उससे इतने कम सीटों पर समझौता करना पड़ रहा है। दरअसल हरियाणा में हुई हार की वजह से महा विकास आघाड़ी ने भी कांग्रेस की सीटें कम कर दीं। अगर हरियाणा में कांग्रेस जीत जाती तो शायद महाराष्ट्र में कांग्रेस बार्गेनिंग कर ज्यादा सीटें अपने पास रखती।
वहीं इसी तरह जब बात झारखंड की करते हैं तो यहां भी कांग्रेस अच्छी स्थिति में नहीं है। हरियाणा चुनावों से पहले तक यहां कांग्रेस को 31 सीटों पर चुनाव लड़ना था लेकिन हरियाणा के रिजल्ट आने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने यहां भी कांग्रेस की 2 सीटें कम कर दीं। कुल मिलाकर एक बात साफ है कि हरियाणा हार के बाद कांग्रेस की बार्गेनिंग पावर कम हो गई है। एकतरफ जहां लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस फुल फॉर्म में थी वहीं अब कांग्रेस के सहयोगी दल ही उसे आंख दिखाने लग गए हैं। तो इससे साफ है कि अगर कांग्रेस महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती तो पार्टी के हालत और भी खराब हो सकते हैं।