बिहार की राजनीति में हमेशा चर्चा का विषय बने रहने वाले सीएम नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के बीच हाल ही में एक घटना ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। यह घटना मकर संक्रांति के मौके पर पटना में हुई, जब दोनों नेताओं के बीच कुछ अप्रत्याशित घटनाएं घटीं। पटना में हर साल की तरह इस बार भी विभिन्न राजनीतिक दलों ने चूड़ा-दही भोज का आयोजन किया था, जिसमें सीएम नीतीश कुमार को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग था।

सीएम नीतीश कुमार का अचानक पार्टी कार्यालय पहुंचना

मकर संक्रांति के दिन, बिहार में खासतौर पर राजनीतिक दलों द्वारा चूड़ा-दही भोज आयोजित किए जाते हैं, ताकि तीज-त्योहारों का आनंद लिया जा सके और अपने समर्थकों के साथ स्नेह और संबंधों को बढ़ाया जा सके। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के द्वारा भी प्रदेश कार्यालय में भोज का आयोजन किया गया था, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आमंत्रित किया गया था।

सीएम नीतीश कुमार को भोज में शामिल होने का आमंत्रण 14 जनवरी को 12 बजे तक दिया गया था। हालांकि, सीएम ने समय से पहले ही पार्टी के दफ्तर पहुंचकर एक चौंकाने वाली स्थिति उत्पन्न कर दी। सीएम नीतीश कुमार अपने निर्धारित समय से दो घंटे पहले ही लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के कार्यालय पहुंचे। उनके अचानक और समय से पहले पहुँचने के कारण यह साफ था कि वह वहां चिराग पासवान से मिलना चाहते थे।

लेकिन एक अप्रत्याशित स्थिति यह सामने आई कि जब सीएम नीतीश कुमार वहां पहुंचे, तो चिराग पासवान मौजूद नहीं थे। चिराग पासवान पार्टी के दफ्तर में उपस्थित नहीं थे, जिससे यह स्थिति और भी रहस्यमयी हो गई। नीतीश कुमार ने पार्टी के दफ्तर में करीब 10 मिनट बिताए, जिसमें उन्होंने पार्टी के नेताओं से बातचीत की और उनसे संवाद किया।

चिराग पासवान का नदारद रहना

जैसे ही यह घटना सियासी गलियारों में फैलने लगी, विपक्षी नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे लेकर तरह-तरह के तंज कसे। कई लोगों ने यह सवाल उठाया कि चिराग पासवान नीतीश कुमार का स्वागत करने के लिए क्यों नहीं पहुंचे। इसके बाद विपक्षी नेताओं ने यह भी कहा कि चिराग पासवान ने भोज में सब नेताओं को आमंत्रित किया लेकिन खुद वहां से गायब हो गए।

सियासी हलकों में यह भी चर्चा होने लगी कि क्या यह चिराग पासवान की नीतीश कुमार से दूरी बनाने की एक रणनीति का हिस्सा है। राजनीतिक विशेषज्ञों ने इस घटना को बिहार की गठबंधन राजनीति के नजरिए से देखा, जिसमें यह तर्क किया गया कि चिराग पासवान इस समय बिहार में एनडीए के नेताओं के साथ कोई निकटता बनाए रखने के बजाय अपने राजनीतिक एजेंडे को तय करने में व्यस्त हैं।

सीएम नीतीश का बिना भोज खाए लौटना

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रदेश कार्यालय में अपने 10 मिनट के प्रवास के बाद, सीएम नीतीश कुमार ने बिना भोज खाए ही पार्टी दफ्तर को छोड़ दिया। इस दौरान पार्टी के नेताओं ने उनका स्वागत किया, लेकिन उनके साथ कोई औपचारिक भोज का हिस्सा नहीं बने। चूंकि सीएम नीतीश कुमार की यह घटना अत्यंत असामान्य थी, लिहाजा यह तुरंत एक बड़ा सियासी मुद्दा बन गया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस घटना ने चिराग पासवान के खिलाफ एक और मौका दे दिया है, जिसमें यह संकेत दिया जा सकता है कि वह बिहार के बड़े राजनीतिक खिलाड़ियों के साथ गठबंधन में शामिल होने के बजाय, अधिक स्वतंत्र राजनीतिक मार्ग पर चलने का इरादा रखते हैं।

सियासी गलियारों में हलचल

सीएम नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच बढ़ती दूरी ने बिहार में सियासी हलचल पैदा कर दी है। एनडीए के दोनों बड़े नेताओं के बीच तल्खी और बातचीत की कमी ने विपक्ष को मौका दिया है। कई विपक्षी नेताओं ने यह आरोप लगाया कि चिराग पासवान नीतीश कुमार से दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कुछ ने यह भी कहा कि यह एक संज्ञेय राजनीतिक तिकड़म हो सकता है, जिसमें चिराग पासवान ने जानबूझकर इस स्थिति को उत्पन्न किया।

इसके अलावा, यह घटना यह भी दिखाती है कि बिहार में राजनीतिक रिश्तों और गठबंधनों में अक्सर उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। जहां एक ओर सीएम नीतीश कुमार ने अपनी पुरानी पार्टी जदयू से गठबंधन की राह अपनाई है, वहीं दूसरी ओर चिराग पासवान अपनी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के जरिए एक अलग राजनीतिक पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

चिराग पासवान के राजनीतिक दांव

चिराग पासवान की पार्टी ने हालांकि मकर संक्रांति पर भोज का आयोजन किया था, लेकिन सीएम नीतीश कुमार के वहां ना होने से यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह एक सोची-समझी रणनीति थी। चिराग पासवान की पार्टी ने हमेशा अपनी स्वायत्तता और स्वतंत्र राजनीतिक पहचान को बनाए रखने की कोशिश की है, और इस घटना को उसी संदर्भ में देखा जा सकता है।

विपक्ष का कहना है कि चिराग पासवान इस समय बिहार में नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में शामिल होने के बजाय खुद की पार्टी को एक नया दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही, चिराग पासवान की इस रणनीति ने उन्हें एक स्वतंत्र नेता के रूप में प्रस्तुत किया है, जो नीतीश कुमार या किसी और नेता से अधिक प्रभावशाली भूमिका में दिख सकता है।

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