MAHARASHTRA NEWS : उद्धव-राज ठाकरे अगर साथ आए तो कितनी बदल जाएगी महाराष्ट्र की सियासत?
महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई हलचल है—शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे के बीच फिर से सियासी समीकरण बनने के संकेत मिल रहे हैं। बाल ठाकरे के बाद बंट चुकी शिवसेना की विरासत एक बार फिर से एकजुट हो सकती है, जिससे ‘ब्रांड ठाकरे’ की वापसी की संभावना प्रबल हो गई है।
राज ठाकरे ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा कि उद्धव से पुराने झगड़े महत्वहीन हैं और महाराष्ट्र व मराठी अस्मिता के लिए सभी मराठी नेताओं को एक मंच पर आना चाहिए। इस बयान पर उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक रुख अपनाते हुए कहा कि वह छोटे-मोटे मतभेदों को किनारे रख महाराष्ट्र की भलाई के लिए साथ काम करने को तैयार हैं।
अगर ठाकरे बंधु एक साथ आते हैं, तो इससे शिवसेना और मनसे दोनों की खोई ताकत वापस आ सकती है। उद्धव जहां संयमित और परिपक्व नेता माने जाते हैं, वहीं राज ठाकरे की भाषण शैली और आक्रामक तेवर युवाओं को आकर्षित करते हैं। ऐसे में शहरी और युवा वोटर्स को साथ लाने की संभावना बनती है।
यह एकता न केवल मुंबई बल्कि ठाणे, पुणे, नासिक और अन्य शहरी क्षेत्रों में भी बड़ा असर डाल सकती है। खासकर आगामी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनावों में इस गठजोड़ से बड़ा राजनीतिक लाभ हो सकता है।
राज ठाकरे के बीजेपी से करीबी रिश्ते रहे हैं, लेकिन अगर वह उद्धव के साथ आते हैं, तो यह बीजेपी को भी करारा झटका होगा। उद्धव-राज की जोड़ी मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के मुद्दों पर शिंदे गुट और बीजेपी को सीधी टक्कर दे सकती है।
हालांकि, अभी औपचारिक गठबंधन नहीं हुआ है, लेकिन मुलाकातों और बयानों से संकेत साफ हैं कि बाल ठाकरे की विरासत फिर से एकजुट होने की दिशा में बढ़ रही है। यदि यह एकता साकार होती है, तो महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव तय है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ठाकरे बंधुओं की यह संभावित एकता सिर्फ एक राजनीतिक गठबंधन नहीं बल्कि एक भावनात्मक और सांस्कृतिक प्रतीक भी बन सकती है। बाल ठाकरे की विरासत को दोनों नेताओं ने अपने-अपने तरीकों से आगे बढ़ाने की कोशिश की है, लेकिन बंटवारे के बाद दोनों दलों की ताकत बिखरती चली गई। यदि यह विरासत फिर से एक होती है, तो यह न केवल शिवसेना और मनसे के लिए बल्कि समूचे मराठी समाज के लिए गर्व का विषय बन सकती है।
वर्तमान में महाराष्ट्र की राजनीति में कई बदलाव हो चुके हैं। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना का एक बड़ा धड़ा अलग हो चुका है, और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहा है। वहीं, उद्धव ठाकरे ने शिवसेना (यूबीटी) के साथ कांग्रेस और एनसीपी की मदद से विपक्षी खेमे को मजबूत किया है। राज ठाकरे की मनसे ने फिलहाल स्वतंत्र रुख अपनाया हुआ है, लेकिन उनके बीजेपी के साथ रिश्तों के कारण कई बार उन्हें आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा है।
यदि यह एकता होती है तो इसका प्रभाव सिर्फ विधानसभा और BMC चुनावों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह 2024 और 2029 के लोकसभा चुनावों में भी निर्णायक भूमिका निभा सकती है। ठाकरे ब्रांड की अपील ग्रामीण से लेकर शहरी मतदाता तक फैली हुई है, खासतौर पर मराठी बोलने वाले क्षेत्रों में।
इस एकता से दोनों दलों को राजनीतिक स्थायित्व, संसाधनों का साझा उपयोग, और एक सशक्त सांगठनिक ढांचा तैयार करने का मौका मिलेगा। यह देखना अब दिलचस्प होगा कि क्या राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अपने मतभेद भुलाकर महाराष्ट्र को एक नई दिशा देने में सफल हो पाते हैं या नहीं।
यह भी पढ़े: