महंत कौशल गिरी उर्फ लटूरी बाबा उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के गांव टरकपुरा के निवासी हैं। वे एक धार्मिक व्यक्ति हैं जिन्होंने बहुत ही कम उम्र में अपना घर छोड़ दिया था और पूजा-पाठ में अपने जीवन का अधिकांश समय बिताया। उनका जीवन बचपन से ही धार्मिक कार्यों से जुड़ा रहा और उन्होंने करीब छह साल की उम्र में ही घर छोड़ने का निर्णय लिया था।

महंत कौशल गिरी का परिवार उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता है। वे बहुत सालों से परिवार से कटे हुए थे और गांव से भी उनका कोई विशेष संबंध नहीं था। हालांकि, वह समय-समय पर अपने पैतृक गांव लौटते थे, लेकिन परिवार से संपर्क करने का कोई प्रयास नहीं करते थे।

हाल ही में, महंत कौशल गिरी ने एक 13 वर्षीय बच्ची, राखी, को दीक्षा दिलाकर उसे साध्वी बना दिया। यह घटना मीडिया में काफी सुर्खियां बनी क्योंकि एक नाबालिग को साध्वी बनाने के लिए महंत कौशल गिरी पर विवाद उठ खड़ा हुआ। इसके परिणामस्वरूप जूना अखाड़े ने महंत कौशल गिरी को सात साल के लिए निष्कासित कर दिया। यह कदम इस घटना की गंभीरता को दिखाता है, क्योंकि धार्मिक दीक्षाएं और संस्कार, विशेष रूप से नाबालिगों को दिए गए संस्कार, भारतीय समाज में विशेष ध्यान आकर्षित करते हैं।

महंत कौशल गिरी का अतीत

महंत कौशल गिरी के परिवार और दोस्तों से मिली जानकारी के अनुसार, वह बहुत छोटी उम्र में धार्मिक कार्यों के प्रति आकर्षित हुए थे। उन्होंने घर छोड़ने के बाद कभी भी परिवार से संपर्क नहीं किया। उनके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, लेकिन यह बात सामने आई है कि वे बचपन से ही पूजा अर्चना में रुचि रखते थे। वे अपने गुरु नरसिंह गिरी के साथ गांव के एक मंदिर में पूजा करते थे।

कौशल गिरी का गांव का नाम लटूरी था और उनका परिवार वहां रहता था। उनके पिता का नाम बंगाली रघुवंशी और मां का नाम आशा देवी था। उनके माता-पिता का निधन हो चुका है, और उनके बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है। महंत कौशल गिरी के भाई बंटी का कहना है कि उन्होंने पिताजी के निधन के बाद भी घर का कोई ध्यान नहीं रखा और उनका परिवार के प्रति कोई भावना नहीं थी।

महंत का जीवन और उनका धार्मिक मार्ग

कौशल गिरी के जीवन में धार्मिक भावनाओं का गहरा प्रभाव था। वे बचपन से ही धार्मिक कार्यों में लीन हो गए थे और छह साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने कई सालों तक अपने गुरु के साथ पूजा अर्चना की। हालांकि, उनके परिवार और गांव के लोग बताते हैं कि महंत का गांव से कोई खास संबंध नहीं था। वे बहुत कम समय के लिए गांव आते थे, और जब भी आते, तो तुरंत चले जाते थे।

महंत की यात्रा और उनकी स्थिति

महंत कौशल गिरी के बारे में जानकारी लेने के लिए अमर उजाला की टीम ने उनके पैतृक गांव करोंधना में ग्रामीणों से बातचीत की। इस दौरान पता चला कि महंत की उम्र करीब 38 वर्ष है। उनके बारे में बताया गया कि वे बहुत समय से गांव नहीं आए हैं, और उनके बारे में किसी को भी कोई खास जानकारी नहीं है कि वे कहां रहते हैं या उनका आश्रम कहां स्थित है।

गांव के मंदिर के महंत रामगिरी बाबा का कहना है कि महंत कौशल गिरी आखिरी बार जून, 2024 में आए थे। वे रात भर मंदिर में रुके थे और कुछ समय बाद वापस चले गए।

परिवार का दृष्टिकोण

महंत कौशल गिरी के परिवार के सदस्य इस बारे में बताते हैं कि उन्होंने अपने पिताजी के निधन के बाद भी घर वापस आने की कोई कोशिश नहीं की। उनके भाई बंटी का कहना है कि उनका कोई खास लगाव गांव और परिवार से नहीं था। परिवार का यह कहना है कि वह अपने धार्मिक कार्यों में इतना व्यस्त हो गए थे कि उन्होंने परिवार से कोई संपर्क नहीं किया।

गांव में महंत की आस्था

हालांकि महंत कौशल गिरी का गांव और परिवार से कोई खास संबंध नहीं था, लेकिन गांव के लोग आज भी उन्हें श्रद्धा और आस्था की दृष्टि से देखते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि महंत की कोई विशेष भावना गांव के प्रति नहीं थी, लेकिन फिर भी उनके नाम और कार्यों के प्रति एक गहरी श्रद्धा बनी हुई है।

कौशल गिरी महाराज के बारे में यह भी जानकारी मिली है कि वे भागवत कथा के दौरान एक बार सात दिन तक खड़े होकर पूजा अर्चना कर चुके थे। इसके अलावा, वे कई बार मंदिर में आए हैं और वहां के लोगों के साथ समय बिताया है।

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