भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार, के मंदिर भारत में दुर्लभ हैं। ऐसा माना जाता है कि बिहार के मोकामा में स्थित भगवान परशुराम मंदिर उन स्थानों में से एक है जहाँ भगवान परशुराम तपस्या करने आए थे और अनादिकाल से यहाँ विराजमान हैं।

इस मंदिर से जुड़ी कई रोचक कहानियां और रहस्य हैं, जिनमें से एक प्रसिद्ध कहानी इस प्रकार है:

मुगल राजा और गाय की कहानी:

प्राचीन काल में, एक मुगल राजा इस मंदिर के पास से गुजर रहा था। उसने मंदिर से ढोल की आवाज सुनी, जहाँ उस समय भक्त बाबा पूजा कर रहे थे। राजा को पूजा-अर्चना का ढंग आडंबरपूर्ण लगा और उसने इसका मजाक उड़ाया।

मंदिर के पुजारी ने राजा को समझाया कि वह उन्हें पूजा करने दें और राजा अपना काम करे। क्रोधित राजा ने पुजारी की बात को अनदेखा करते हुए मंदिर परिसर में ही एक गाय को मार डाला। उसने पुजारी को चुनौती दी कि यदि उनका भगवान सच्चा है तो वह गाय को जीवित करे।

पुजारी ने शांतचित्त होकर मंत्रों का उच्चारण करते हुए गाय पर जल छिड़का। चमत्कारिक रूप से, गाय जीवित हो गई। पुजारी ने राजा को चेतावनी दी कि उसने भगवान परशुराम की परीक्षा ली है और अब उसे इसका फल भुगतना होगा। पुजारी ने भविष्यवाणी की कि राजा का राज्य नष्ट हो जाएगा।

स्थानीय लोगों का मानना है कि पुजारी की भविष्यवाणी सच हुई और मुगल राजा का राज्य नष्ट हो गया। इस घटना के बाद से लोगों की आस्था भगवान परशुराम में और भी मजबूत हो गयी।

रात में दर्शन पर रोक:

एक अन्य रहस्यमय मान्यता यह है कि किसी को भी रात के समय इस मंदिर में रुकने की अनुमति नहीं है। ऐसा माना जाता है कि रात के समय भगवान परशुराम मंदिर के आसपास विचरण करते हैं।

मान्यताओं के अनुसार, जो लोग रात में इस मंदिर में रुकते हैं, वे अक्सर मानसिक रूप से बीमार या पागल हो जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें ऐसी अलौकिक घटनाओं का अनुभव होता है जिनकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

इसी वजह से, सुरक्षा के लिहाज से, किसी को भी रात के समय मंदिर में रहने की अनुमति नहीं दी जाती है।

निष्कर्ष:

मोकामा में स्थित भगवान परशुराम मंदिर अपनी धार्मिक महत्वता और रहस्यमय घटनाओं के लिए जाना जाता है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है और भगवान परशुराम के प्रति उनकी आस्था को मजबूत करता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये कहानियां और मान्यताएं लोककथाओं और धार्मिक विश्वासों पर आधारित हैं। इनके पीछे वैज्ञानिक प्रमाणों का अभाव हो सकता है।

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