पटना: लालू प्रसाद यादव का हालिया बयान विपक्षी एकता को लेकर राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। जहां एक समय वह नीतीश कुमार के साथ मिलकर विपक्षी एकता के संयोजक बनने की योजना बना रहे थे, वहीं अब उन्होंने अपने बयान से यह स्पष्ट किया कि वह राहुल गांधी को विपक्षी एकता की कमान सौंपने के पक्ष में हैं। इसके साथ ही, उन्होंने ममता बनर्जी को भी अपनी राजनीतिक रणनीति में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। यह बयान न केवल बिहार की राजनीति को प्रभावित कर रहा है, बल्कि इंडिया ब्लॉक (INDIA Bloc) की आगामी रणनीतियों को भी प्रभावित कर सकता है।
नीतीश कुमार को छोड़कर ममता बनर्जी को क्यों दिया प्राथमिकता?
लालू यादव का यह पलटाव राजनीति में चर्चा का विषय बन चुका है। कुछ समय पहले तक, विपक्षी एकता के लिए नीतीश कुमार को संयोजक के रूप में आगे किया जा रहा था। लेकिन, अब लालू ने राहुल गांधी को ‘दूल्हा’ बनाने के बाद ममता बनर्जी की ओर रुख किया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि लालू की यह रणनीति आगामी बिहार विधानसभा चुनाव और कांग्रेस के दबाव को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है।
बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ कांग्रेस का गठबंधन है। कांग्रेस हमेशा अपने दबाव की राजनीति से बिहार में राजद पर असर डालने की कोशिश करती रही है। पिछले चुनावों में भी यही देखा गया था। यही कारण हो सकता है कि लालू यादव ने राहुल गांधी की ओर रुख करते हुए ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व सौंपने का प्रस्ताव रखा है।
लालू यादव का बयान और विपक्षी एकता की दिशा
लालू प्रसाद यादव का यह बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को विपक्षी एकता के लिए ‘दूल्हा’ बनने का प्रस्ताव दिया था, अब समझ में आता है। यह बयान केवल एक मजाक नहीं था, बल्कि लालू की गहरी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था। उन्होंने यह भी कहा था कि, “हम बारात बनने को तैयार हैं, आप दूल्हा बनिए,” जो कि विपक्षी गठबंधन में राहुल गांधी को मजबूत करने की दिशा में उनका एक कदम था।
वहीं, नीतीश कुमार जो इस वक्त विपक्षी एकता के संयोजक के रूप में दिखाई दे रहे थे, अब अपने आप को किसी बड़े पद के लिए तैयार नहीं कर रहे थे। इसके बावजूद, लालू ने स्पष्ट रूप से राहुल गांधी को आगे बढ़ाने का समर्थन किया था। अब यह सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ बिहार में सत्ता को संभालने के लिए किया गया कदम था, या फिर यह एक लंबे समय से चल रही राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था?
बिहार में कांग्रेस के दबाव का असर
लालू यादव के बयान में एक और महत्वपूर्ण पहलू है, जो कि बिहार में कांग्रेस और राजद के रिश्तों से जुड़ा हुआ है। बिहार में कांग्रेस हमेशा राजद पर दबाव बनाती रही है, और यह दबाव पिछले कुछ समय में तेज हुआ है। लालू प्रसाद यादव, जो अपनी पार्टी को बिहार में मजबूत बनाना चाहते हैं, ने अब कांग्रेस के बढ़ते दबाव को काबू में करने के लिए ममता बनर्जी की ओर रुख किया है।
झारखंड में भी कांग्रेस की बढ़ती भूमिका ने राजद की राजनीति को प्रभावित किया है, खासकर जब कांग्रेस ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से मिलकर राजद के लिए सीटों का संकट खड़ा किया। यही कारण हो सकता है कि लालू ने अपनी पार्टी को कांग्रेस के दबाव से बचाने के लिए ममता बनर्जी को संभावित विपक्षी गठबंधन का नेता बनाने का प्रस्ताव दिया।
राहुल गांधी की भूमिका और नीतीश कुमार की स्थिति
नीतीश कुमार को विपक्षी एकता का संयोजक बनाने के बावजूद, जब उनकी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई, तो लालू ने इस मामले में अपना कदम बढ़ाया और राहुल गांधी को सामने लाया। यह घटनाक्रम साबित करता है कि नीतीश कुमार को विपक्षी गठबंधन में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई। लालू ने इससे पहले राहुल गांधी को ‘दूल्हा’ कहकर उन्हें विपक्षी एकता का नेतृत्व सौंपने का संकेत दिया था, लेकिन अब लालू ने ममता बनर्जी को भी एक प्रमुख स्थान देने का विचार किया है।
बिहार में कांग्रेस के दबाव और झारखंड में राजद को कांग्रेस से मिल रही चुनौती ने लालू को ममता के पक्ष में कदम उठाने के लिए प्रेरित किया। इस तरह की रणनीति का उद्देश्य बिहार में राजद के दबाव को कम करना और ममता बनर्जी के साथ अपनी पार्टी की स्थिति को मजबूत करना हो सकता है।
ममता बनर्जी और नीतीश कुमार के बीच प्रतिस्पर्धा
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच एक अदृश्य प्रतिस्पर्धा चल रही है। ममता ने अपने राज्य में हमेशा भाजपा के खिलाफ मजबूत मोर्चा खोला है, जबकि नीतीश कुमार के लिए राष्ट्रीय राजनीति में कोई स्पष्ट भूमिका नहीं बन पा रही थी। ममता के प्रति लालू का समर्थन इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ममता बनर्जी ने हमेशा नीतीश कुमार को चुनौती दी है और बिहार में नीतीश के मुकाबले खुद को एक मजबूत राजनीतिक नेता के रूप में प्रस्तुत किया है।