कुरुक्षेत्र, हरियाणा, 12 दिसंबर 2024 – भारत की धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में 5 से 11 दिसंबर तक आयोजित हुआ अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2024, इस बार अत्यधिक सफलता की ओर बढ़ा। महोत्सव के मुख्य कार्यक्रमों के संपन्न होते ही पवेलियनों में रवानगी का सिलसिला भी शुरू हो गया। जिन पवेलियनों ने इस दौरान प्रमुख आकर्षण का केंद्र बने थे, अब वे धीरे-धीरे खाली हो रहे हैं, और इस बदलाव को देखना पर्यटकों के लिए एक अलग अनुभव बन गया।
कुरुक्षेत्र महोत्सव के मुख्य आकर्षण: पवेलियन और उनकी सजावट
इस बार के महोत्सव में विभिन्न राज्य और देशों के पवेलियनों को विशेष रूप से आकर्षक ढंग से सजाया गया था। ओडिशा, तंजानिया, उजबेकिस्तान, तजाकिस्तान और हरियाणा जैसे पवेलियनों में शिल्पकला, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और कला प्रदर्शनी ने पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पवेलियनों में प्रदर्शित शिल्पकला और लोक कला ने एक अद्वितीय वातावरण निर्मित किया, जिसे दर्शकों ने बड़े आनंद के साथ देखा।
सहयोगी प्रदेश और देशों के पवेलियनों की रवानगी
पाँच से ग्यारह दिसंबर तक आयोजित हुए इस महोत्सव में ओडिशा, तंजानिया, उजबेकिस्तान और तजाकिस्तान जैसे देशों और राज्यों ने अपना पवेलियन लगाया था। ये पवेलियन न केवल आकर्षक ढंग से सजाए गए थे, बल्कि इनमें वहां के शिल्पकला, संस्कृति और पारंपरिक वस्त्र भी प्रदर्शित किए गए थे। कार्यक्रम समाप्त होते ही इन पवेलियनों से शिल्पकार और प्रदर्शनकर्ता अपने-अपने प्रदेश और देशों को वापस लौटने लगे हैं।
पर्यटकों के लिए निराशा का कारण
महोत्सव के समापन के बाद, जब पर्यटक पवेलियनों का दौरा करने पहुंचे, तो उन्हें यह देख कर मायूसी हुई कि इनमें से अधिकांश पवेलियन अब खाली हो चुके थे। इन पवेलियनों से न केवल शिल्पकार हट चुके थे, बल्कि वहां रखे गए फर्नीचर और सजावट भी हटा ली गई थी। हालांकि, महोत्सव के दौरान यह पवेलियन मुख्य आकर्षण के रूप में मौजूद थे, लेकिन अब उनकी खाली स्थिति ने दर्शकों को थोड़ी निराशा दी।
लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का महत्व
महोत्सव के दौरान पवेलियनों में जो सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए, उनका प्रभाव दर्शकों पर गहरा पड़ा। इन कार्यक्रमों में लोक नृत्य, संगीत, और पारंपरिक कला रूपों ने महोत्सव को जीवंत बना दिया। हरियाणा के पवेलियन में आयोजित हरियाणवी लोक नृत्य और ओडिशा के पवेलियन में ओडिशी नृत्य के प्रदर्शन ने हर दर्शक को मंत्रमुग्ध किया। इन कार्यक्रमों के जरिए न केवल दर्शकों को भारतीय संस्कृति से जुड़ने का मौका मिला, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पवेलियनों ने भी अपनी कला का प्रदर्शन किया, जिससे एक सांस्कृतिक आदान-प्रदान का अवसर मिला।
कला और शिल्प का महत्व
पवेलियनों में कला और शिल्प की विशेष प्रदर्शनी ने महोत्सव की शोभा बढ़ाई। ओडिशा और तंजानिया के पवेलियनों में पारंपरिक हस्तशिल्प और कलात्मक वस्त्रों की प्रदर्शनी प्रमुख आकर्षण रहे। वहीं, उजबेकिस्तान और तजाकिस्तान ने अपनी पारंपरिक मिट्टी कला और धातु शिल्प को प्रदर्शित किया। इन शिल्पकारों ने न केवल अपनी कला को दुनिया के सामने रखा, बल्कि उन्होंने भारतीय शिल्पकला से भी प्रेरणा ली।
धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में महोत्सव का महत्व
कुरुक्षेत्र का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत पुराना है। यह वही स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। हर वर्ष, यहां विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव का आयोजन इस नगरी के लिए विशेष महत्व रखता है। इस महोत्सव का उद्देश्य न केवल श्री कृष्ण के उपदेशों को फैलाना है, बल्कि पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं से जोड़ना भी है।
पर्यटकों की बड़ी संख्या में उपस्थिति
गुरु चरणदास और महात्मा गांधी के अलावा कई धार्मिक और सांस्कृतिक नेताओं ने भी महोत्सव के दौरान उपस्थिति दर्ज की। यहां आने वाले पर्यटकों ने गीता के संदेश को आत्मसात किया और इसके माध्यम से जीवन को बेहतर बनाने के तरीके सीखे। महोत्सव के दौरान विशेष ध्यान आकर्षित करने वाले कार्यक्रमों में भागीदारी ने भारतीय संस्कृति को और भी बढ़ावा दिया।