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महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई? किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना? और जाने इसकी शक्ति

How was Mahamrityunjaya Mantra composed?

How was Mahamrityunjaya Mantra composed?

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?

किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना?

 और जाने इसकी शक्ति

हम इस लेख के द्वारा बताने जा रहे हैं, कि, महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?  मान्यताओं के अनुसार, शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था. मृकण्ड ने सोचा कि, महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए भोलेनाथ को प्रसन्न कर यह विधान बदलवाया जाए.

जिसके लिए मृकण्ड ने घोर तप किया, लेकिन भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे, इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन नहीं दिये, लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोलेनाथ झुक ही जाते हैं. इसलिए महादेव मृकण्ड की भक्ति से  प्रसन्न हुए और उन्होंने ऋषि को कहा कि, मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा.

भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा, ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है. ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया, मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया कि, जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोलेनाथ इसकी रक्षा करेंगे. क्योंकि भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है.

मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी गई. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. इसलिए उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी. मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे जिन्होंने जीवन दिया है. बारह वर्ष पूरे होने को आए थे.

मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे. समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए, तो यमदूतों ने देखा कि, बालक महाकाल की आराधना कर रहा है, इसलिए उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. लेकिन मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था.

जिसकी वजह से यमदूत, मार्कण्डेय को छू भी ना सके और वापस लौट गए. और यमलोक पहुंचकर यमदूतों ने यमराज को बताया कि, वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए. जिस पर यमराज ने कहा कि, मृकण्ड के पुत्र मार्कण्डेय  को वे खुद लेकर आएंगे और यमराज तुरंत प्रभाव से मार्कण्डेय के पास पहुंच गए. जहां बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा और जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया. यमराज बालक मार्कण्डेय को शिवलिंग से खींचकर ले जाने लगे तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. और तभी एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं.

जिसके बाद शिवलिंग से खुद महाकाल प्रकट हो गए और उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान करते हुए पूछा कि, तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया ? यमराज महाकाल का प्रचंड रूप देख कर कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है.

जिसके बाद भगवान शिव का क्रोध शांत हुए, और बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते. यम ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा. महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए. उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है.

 

एक आदर्श शिक्षक

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