हरियाणा में 1981 में निरक्षरों और स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए लगाए गए अनुदेशकों को आखिरकार राहत मिल रही है। राज्य शिक्षा विभाग ने उन्हें पिछले कई वर्षों से बकाया एरियर (वेतन) देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लिया गया है, जिसमें शिक्षा विभाग को अनुदेशकों को उनके बकाए का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। 35 साल पहले गांवों में 6 से 14 साल के बच्चों, जो स्कूल नहीं जाते थे, और 15 से 35 साल के निरक्षरों को साक्षर बनाने के लिए कार्यरत इन अनुदेशकों को अब उनकी मेहनत का मुआवजा मिलेगा। (Haryana)
शिक्षा विभाग का महत्वपूर्ण निर्णय
शिक्षा विभाग ने इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए अनुदेशकों के बकाया भुगतान की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके तहत विभाग ने एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है, जो उन सभी अनुदेशकों की रिपोर्ट तैयार करेगी जिन्होंने ग्रामीण कार्यात्मक साक्षरता परियोजना और राज्य प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के तहत 1981 से 1990 तक काम किया था। यह योजना खासतौर पर निरक्षरों और स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों के लिए शुरू की गई थी। कमेटी अनुदेशकों का पता लगाएगी, उनके दस्तावेजों की जांच करेगी और रिपोर्ट को शिक्षा विभाग के निदेशालय तक भेजेगी। इसके बाद इन अनुदेशकों को बकाया भुगतान (एरियर) की प्रक्रिया शुरू होगी। (Haryana)
जिला शिक्षा विभाग ने इस काम के लिए उल्लास कार्यक्रम के जिला समन्वयक पवन सागर, सहायक रत्तन सिंह और लिपिक मोहन सिंह को कमेटी में शामिल किया है। कमेटी का काम उन अनुदेशकों का पता लगाना है जो इस योजना के तहत काम कर चुके हैं और उनके सभी जरूरी दस्तावेज इकट्ठा करना है। इसके बाद इस रिपोर्ट को उच्च अधिकारियों के पास भेजा जाएगा। शिक्षा विभाग ने बताया कि अनुदेशकों को अपनी जॉइनिंग और रिलिविंग पत्र, सामान जमा करवाने की रसीद, और बैंक स्टेटमेंट जैसे प्रूफ देने होंगे ताकि यह पुष्टि की जा सके कि वे इस योजना के तहत कार्यरत थे। इस प्रक्रिया को जल्द पूरा किया जाएगा, ताकि अनुदेशकों को उनका बकाया भुगतान किया जा सके। (Haryana)
अनुदेशकों की परेशानियां और संघर्ष
अनुदेशकों ने लंबे समय तक अपनी मांगों को लेकर संघर्ष किया है। अनुदेशक रण सिंह, जो 1981 में इस योजना के तहत काम करने लगे थे, ने बताया कि वे और उनके जैसे अन्य अनुदेशक 6 से 14 साल के बच्चों और निरक्षरों को पढ़ाते थे। इस कार्यक्रम के तहत उन्हें प्रतिदिन चार घंटे पढ़ाने होते थे और इसके बदले उन्हें 150 रुपये का भुगतान मिलता था। हालांकि, 1990 में सरकार ने इस योजना को बंद कर दिया और अनुदेशकों को हटा दिया। इसके बाद, अनुदेशकों ने अपने वेतन को लेकर संघर्ष किया और चंडीगढ़ में आंदोलन भी किया, लेकिन उन्हें जेल भेज दिया गया था। (Haryana)
रण सिंह ने कहा, “हमने हमेशा इस बात की मांग की कि हमें जेबीटी (जूनियर बेसिक ट्रेनिंग) के बराबर वेतन दिया जाए, क्योंकि हम भी शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे थे। हालांकि, हमें हमेशा उपेक्षित किया गया। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हमें राहत मिली है, और हमें उम्मीद है कि हमें हमारा बकाया मिलेगा।”
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और शिक्षा विभाग की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद ही शिक्षा विभाग को अनुदेशकों को उनके बकाया एरियर का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। यह अदालत का आदेश था कि इन अनुदेशकों को उनकी मेहनत का उचित मुआवजा दिया जाए, जैसा कि अन्य कर्मचारियों को मिलता है। शिक्षा विभाग ने इस आदेश के बाद कार्रवाई करते हुए रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और कमेटी का गठन कर लिया है।
शिक्षा विभाग का बयान
जिला शिक्षा अधिकारी, संगीता बिश्नोई ने बताया कि अनुदेशकों को उनके बकाया का भुगतान जल्द किया जाएगा। उन्होंने कहा, “निरक्षरों को पढ़ाने के लिए अनुदेशकों की सेवा बहुत महत्वपूर्ण रही है, और यह निर्णय उनके प्रति न्याय का प्रतीक है। अब यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जो लोग इस योजना के तहत काम कर चुके हैं, उन्हें उनका एरियर दिया जाए।”
योजना का उद्देश्य और प्रभाव
यह योजना, जो 1981 में शुरू की गई थी, का मुख्य उद्देश्य उन निरक्षरों को साक्षर बनाना था जो 15 से 35 साल की उम्र के थे और जिनके पास शिक्षा का कोई अवसर नहीं था। साथ ही, यह योजना उन बच्चों के लिए भी थी जो स्कूल नहीं जाते थे और जिनकी शिक्षा का कोई अन्य रास्ता नहीं था। इस कार्यक्रम के तहत अनुदेशकों ने इन बच्चों और निरक्षरों को साक्षर बनाने का काम किया। उनकी मेहनत और समर्पण के कारण कई लोग साक्षर बने और शिक्षा का लाभ उठा पाए।