यमुनानगर के कपालमोचन में 15 नवंबर को सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाएगा। यह ऐतिहासिक स्थल गुरु नानक देव जी के पवित्र उपदेशों का गवाह रहा है, जिन्होंने यहाँ संगत को एकता, भाईचारे और जरूरतमंदों की सेवा का उपदेश दिया था। कपालमोचन में उनके आगमन को लेकर मान्यता है कि गुरु नानक देव जी ने यहीं पर संगत को गहरी आध्यात्मिक शिक्षा दी और यमुनानगर की धरती को पवित्र किया।

गुरु नानक देव जी का कपालमोचन में आगमन कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था, जब उन्होंने यहाँ संगत को प्रेम, भाईचारे और सेवा का संदेश दिया। आज भी हर साल इस दिन लाखों श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर कपालमोचन, ऋणमोचन और सूरजकुंड सरोवरों में स्नान कर मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते हैं। इन सरोवरों में स्नान करने से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होने का विश्वास किया जाता है।

गुरु गोबिंद सिंह का कपालमोचन में आना
गुरु गोबिंद सिंह, सिखों के दसवें गुरु, भी कपालमोचन में कई बार पधारे। विक्रमी संवत 1742 में उन्होंने पहली बार कपालमोचन की यात्रा की थी, और फिर संवत 1746 में भंगानी के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद कपालमोचन आए थे। गुरु गोबिंद सिंह ने यहां 52 दिन तक विश्राम किया और इस दौरान कपालमोचन व ऋणमोचन सरोवरों में स्नान कर अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे।

गुरु गोबिंद सिंह ने कपालमोचन में संगत को महत्वपूर्ण उपदेश दिए और उन्हें हुक्म दिया कि हर साल इस स्थान पर गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाया जाए। तभी से कपालमोचन मेला का आयोजन नियमित रूप से होने लगा। इस बार कपालमोचन मेला 11 से 15 नवंबर तक श्राईन बोर्ड द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जिसमें श्रद्धालु कपालमोचन, ऋणमोचन और सूरजकुंड सरोवरों में स्नान कर दीपदान करेंगे और पूजा अर्चना करेंगे।

सिख धर्म का ऐतिहासिक महत्व
गुरु गोबिंद सिंह ने कपालमोचन में अपने ठहराव के दौरान यहाँ के पवित्र सरोवरों की बेअदबी पर प्रतिबंध लगाया। उन्होंने संधाय गांव के पास स्थित सिंधू वन में तपस्या की और अपने घोड़े को प्राचीन शिव मंदिर के पास स्थित पेड़ से बांधते थे। यह मंदिर आज भी श्रद्धालुओं के लिए पूजा स्थल बना हुआ है। कपालमोचन में स्थित गुरुद्वारा साहिब की विशेषता यह है कि यहाँ पर दोनों पातशाही (पहली और दसवीं) का गुरुद्वारा एक ही परिसर में स्थित है, जहाँ रोजाना श्रद्धालु शीश नवाने आते हैं।