आखिर वो घड़ी आ ही गई जिसका महाराष्ट्र के लोगों को पिछले 12 दिनों से इंतजार था। आज यानि 5 दिसंबर 2024 को महाराष्ट्र को नई सरकार मिल जाएगी। जिसके मुख्यिया देवेंद्र फडणवीस होंगे। वहीं पिछले ढाई साल से मुख्यमंत्री रहे एकनाथ शिंदे जब सरकार में दूसरे नंबर पर रहेंगे यानि की अब वो महाराष्ट्र से डिप्टी सीएम होंगे। वहीं, इस तरह नई सरकार में एकनाथ शिंदे का पावर शेयरिंग में पावर कम हो रहा है। ढाई साल तक सत्ता की बागडोर संभालने वाले शिंदे का सीएम की कुर्सी छोड़कर डिप्टी सीएम बनना उनके राजनीतिक करियर के लिए जोखिम भरा कदम माना जा रहा है क्योंकि सत्ता की शक्ति के जरिए ही उन्होंने उद्धव ठाकरे को शिकस्त दी है।
वहीं अब जैसे ही उनकी सत्ता पर पकड़ कमजोर होगी तो शिंदे के सामने शिवसेना पर अपनी पकड़ मजबूत रखने की चुनौती बढ़ जाएगी। गौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे 57 सीट जीतकर उद्धव ठाकरे से शिवसेना की विरासत की लड़ाई जीत चुके हैं। लेकिन ढाई साल तक सीएम रहने के बाद अब डिप्टी सीएम बनना एक तरह शिंदे का डिमोशन माना जा रहा है और यही वजह थी की महाराष्ट्र में शपथ ग्रहण इतने दिनों तक लटका रहा।
सियासी जानकारों की माने तो पावर शेयरिंग में ताकतवर मंत्रालय शिंदे को नहीं मिले तो उनके कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर पड़ेगा। ऐसे में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती शिवसेना के विधायकों को साथ में जोड़े रखने की चुनौती होगी। इतना नहीं शिवसेना के विस्तार पर असर पड़ सकता है। एकनाथ शिंदे को ये बाखूबी जानते हैं कि सत्ता जब हाथ में थी तो अपने विधायकों और सहयोगियों को ताकत देने में वो सक्षम थे और यही वजह रही की उद्धव ठाकरे के खिलाफ असली नकली की सीधी लड़ाई में शिंदे ने जीत दर्ज की। लेकिन अब मुख्यमंत्री पद की ताकत नहीं होगी तो उनकी पार्टी के लिए भविष्य की राह मुश्किल हो जाएगी। शिवसेना के कई विधायक शिंदे के साथ कम और सियासी पावर के चलते ज्यादा साथ हैं।
महाराष्ट्र की सियासत को समझने वाले राजनितिक विशलेषक मानते हैं कि पावर के बिना शिंदे को अपने विधायकों को जोड़े रखना आसान नहीं है। इसीलिए वे शक्तिशाली मंत्रालय के लिए मशक्कत कर रहे हैं। अगर उनकी पार्टी को गृह, शहरी विकास और पीडब्ल्यूडी जैसे मजबूत मंत्रालय नहीं मिले तो महाराष्ट्र में उनकी छवि बेहद कमजोर हो जाएगी। शिंदे अपनी छवि का झंडा उठाने वाले नेता नहीं बनने देना चाहते हैं बल्कि एक मजबूत नेता की बनाए रखने की है। इतना ही नहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना में टूट के बाद एकनाथ शिंदे ने हिंदुत्व की राजनीति की है। इसी मुद्दे पर उन्होंने बगावत करते हुए कहा था कि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर शिवसेना संस्थापक बालासाहेब की हिंदुत्व की राजनीति से समझौता कर लिया है, जिसके लिए उन्होंने बीजेपी से हाथ मिलाया है।
महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी जिस तरह 132 सीटें जीतने में सफल रही है और अब अपना मुख्यमंत्री बनाने जा रही है, उसके चलते शिंदे की सियासी टेंशन बढ़ गई है। प्रदेश की राजनीति में शिंदे की शिवसेना के सामने विपक्षी दलों से ज्यादा बीजेपी ही चुनौती बनेगी। इसीलिए एकनाथ शिंदे पावर शेयरिंग में ज्यादा से ज्यादा पावर अपने हिस्से में लेना चाहते हैं। इसके लिए मंत्रिमंडल में ज्यादा से ज्यादा मंत्री और उसके बाद हाई प्रोफाइल मंत्रालय की डिमांड है।