Delhi: अरविंद सरकार ने दिया युवाओं को धोखा
चुनावों के मौसम में राजनीतिक पार्टियां जनता को लुभाने के लिए कई वादे करती हैं लेकिन सत्ता में आने पर वादे धरे रह जाते हैं। जिस पर कुछ शेर सटीक बैठते हैं।
ऐसे में जब चुनाव जीतने के बाद राजनीतिक पार्टियों से जनता कहती है कि-
बरसों हुए न तुम ने किया भूल कर भी याद
वादों की तरह हम भी फ़रामोश हो गए
वहीं, जब लगा कि वादे शायद पूरे होंगे…
तो एक शेर है कि
झूटे वादों पर थी अपनी ज़िंदगी
अब तो वो भी आसरा जाता रहा.
ऐसा ही एहसास कुछ दिल्ली के लोगों को हो रहा है, क्योंकि, दिल्ली वालों का मानना है कि, दिल्ली की AAP सरकार ने वादे किए और पूरे ना किए, इस लिए अबकी बार दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को नकार दिया… और सत्ता में बीजेपी को बैठा दिया
इसी कड़ी में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, एक चौकाने वाला खुलासा, जो दिल्ली विधानसभा के बजट सत्र में हुआ है… जिसके तहत रोजगार निदेशालय से पूछे गए दो सवालों ने दिल्ली की पिछली AAP सरकार के रोजगार मॉडल पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। सदन में सरकार ने बताया कि, साल 2019 से लेकर 2024 के बीच दिल्ली सरकार के रोजगार पोर्टलों से सिर्फ दो लोगों को नौकरी मिली। और ये दो नौकरियां भी पिछले साल यानी 2024 में मिली हैं।
दिल्ली में साल 2020 तक सिर्फ एक ही ऑनलाइन पोर्टल था। जुलाई 2020 में सरकार ने ‘रोजगार बाजार’ नाम से एक और पोर्टल शुरू किया। लेकिन ये पोर्टल 2023 में बंद हो गया। हैरानी की बात है कि, पोर्टल बंद होने के बाद भी दो कर्मचारी इसे संभालने के लिए रखे गए हैं।
2019 से 2023 के बीच पोर्टलों से कोई नौकरी नहीं मिली। कोरोना महामारी के दौरान भी ये पोर्टल किसी को नौकरी नहीं दिला पाए। पिछले पांच सालों में इन पोर्टलों से एक भी नौकरी नहीं मिली। 2009 से चल रहे पुराने पोर्टल (onlineemploymentportal.delhi.gov.in) को चलाने के लिए पांच कर्मचारी और छह टेक्निकल स्टाफ हैं। विधानसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक, इस पोर्टल से कोई नौकरी तो नहीं मिली, लेकिन 2021 से इस पर लगभग 34 लाख रुपये खर्च हो गए।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि, दिल्ली में युवाओं के लिए लाखों नौकरियां लाने का दावा करने वाली केजरीवाल सरकार का जॉब पोर्टल आखिर फ्लॉप क्यों हो गया? क्योंकि, 6 साल में सिर्फ दो नौकरियां दी गई…!
ऐसे में सवाल कई उठते हैं, क्या ये सिर्फ एक चुनावी स्टंट था? क्या सरकार ने सिर्फ प्रचार पर लाखों खर्च कर दिए? ये सवाल जनता को खुद से पूछना होगा। दिल्ली के बेरोजगार युवाओं के लिए ये एक चेतावनी है कि सिर्फ वादों पर भरोसा ना करें, बल्कि हकीकत भी देखें!