भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अंदर असंतोष की लहर ने पार्टी के नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। पार्टी में टिकट वितरण के बाद कई नेता नाराज होकर बागी बन गए हैं, जिससे चुनावी स्थिति में संकट उत्पन्न हो गया है। असंतुष्ट नेताओं को मनाने के लिए शनिवार को केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और पार्टी के वरिष्ठ नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी समेत अन्य नेताओं ने प्रयास किए। ये नेता रांची, कांके, मधुपुर, धनवार और गुमला जैसे क्षेत्रों में नाराज नेताओं से मिले।
पोटका सीट से टिकट कटने पर मेनका सरदार का असंतोष एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें मनाने में कुछ सफलता हासिल की है, हालांकि कई नेता अब भी अपनी स्थिति पर अड़े हुए हैं। रवींद्र राय की नाराजगी भी चर्चा का विषय बना हुआ है। चार दिन पहले शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा ने रवींद्र राय को मनाने के लिए उनके आवास पर जाकर बातचीत की थी। अब जब उन्हें प्रदेश भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है, तो उन्होंने भाजपा की सरकार बनाने के लिए हरसंभव प्रयास करने का संकल्प लिया है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने भी पुष्टि की है कि जो नेता नाराज हैं, उन्हें मनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि उनकी नाराजगी को दूर किया जाएगा। भाजपा में टिकट वितरण के बाद बागियों की संख्या में इजाफा हुआ है। खासकर उन विधानसभा क्षेत्रों में जहां भाजपा का दबदबा रहा है, वहां बागियों की भरमार है।
रांची सीट पर बागी प्रत्याशियों की संख्या सबसे अधिक है, जिसमें संदीप वर्मा, मुनचुन राय और उत्तम यादव जैसे नेता शामिल हैं, जो अब निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। कांके में कमलेश राम ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ नामांकन दाखिल किया है, वहीं गुमला में मिशिर कुजूर भी पर्चा दाखिल कर चुके हैं। धनवार में निरंजन राय भी चुनाव लड़ने का इरादा जता चुके हैं।
वहीं, अब इस स्थिति ने भाजपा को एक नई चुनौती दी है, खासकर जब दाना तूफान के चलते राज्य का मौसम ठंडा हो गया है, लेकिन भाजपा की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता लगातार नाराज नेताओं को मनाने में जुटे हैं, ताकि चुनावी स्थिति को संभाला जा सके।
भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे बागी नेताओं की नाराजगी को दूर किया जाए, ताकि पार्टी एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतर सके। अगर बागी प्रत्याशी चुनावी दंगल में अपनी ताकत दिखाते हैं, तो इससे भाजपा के वोट बैंक में कमी आ सकती है, जिससे उनकी चुनावी संभावनाएं प्रभावित होती हुई नजर आ रही है।