हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की लगातार तीसरी हार ने पार्टी के भीतर असंतोष और गुटबाजी को फिर से उभार दिया है। पिछले कुछ समय से जिस तरह से कांग्रेस ने चुनावी माहौल को अपने पक्ष में बनाने की कोशिश की थी, वह अब बिखरती नजर आ रही है। खासकर, कुमारी सैलजा जैसे नेताओं के बयानों ने स्थिति को और भी स्पष्ट किया है।
हार के कारण
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के बाद से हरियाणा में एक सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास किया था, लेकिन वह इसे चार महीने भी संभाल नहीं पाई। पार्टी की हार के पीछे कई कारक हैं:
- गुटबाजी: कांग्रेस में विभिन्न गुटों के बीच की खींचतान ने पार्टी की एकता को कमजोर किया है। कई नेता अपनी-अपनी दावेदारी पेश करते रहे, जिससे संगठनात्मक ढांचा प्रभावित हुआ।
- नेतृत्व की कमी: कुमारी सैलजा ने प्रदेश नेतृत्व पर निशाना साधते हुए कहा है कि जिम्मेदारी तय करनी होगी। यह साफ है कि पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
- टिकट वितरण: चुनावी टिकटों के वितरण में भी असंतोष था। सैलजा पहले ही इस मुद्दे पर हाईकमान के सामने अपनी नाराजगी जाहिर कर चुकी हैं।
- भरोसा नहीं: पार्टी का जनता के भरोसे बैठना और चुनावी माहौल को केवल आस्था के आधार पर जीना भी हार का एक बड़ा कारण रहा।
सैलजा का बयान
कुमारी सैलजा ने स्पष्ट किया कि उन्हें 60 से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद थी, लेकिन परिणाम इसके उलट आए। इस पर मंथन की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश नेतृत्व की कमियों पर विचार करना होगा।
विरोधी खेमा सक्रिय
अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा विरोधी खेमा फिर से सक्रिय हो गया है। सैलजा, रणदीप सुरजेवाला, और कैप्टन अजय यादव जैसे नेता एकजुट होकर हाईकमान के सामने अपनी बात रखने की तैयारी कर रहे हैं। इस स्थिति में, कांग्रेस हाईकमान को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा।
गुटबाजी और दावेदारी
चुनाव परिणाम से पहले कांग्रेस के नेताओं ने सीएम बनने की लाबिंग में जुटे थे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा, और रणदीप सुरजेवाला ने अपने-अपने पक्ष में दावे पेश किए, जिससे पार्टी में खुलकर गुटबाजी सामने आई। हाईकमान की ओर से इस पर कोई नियंत्रण नहीं रखा गया, जिससे स्थिति और भी बिगड़ गई।