हरियाणा में कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनावों में लगातार तीसरी बार हार का सामना किया है, जिससे पार्टी के अंदर एक बार फिर से संगठनात्मक संरचना को लेकर विवाद शुरू हो गया है। चुनावी परिणामों के बाद, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान पर इस्तीफे का दबाव बढ़ रहा है, क्योंकि पार्टी की स्थिति को मजबूत करने में उनकी भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है।
कांग्रेस हाईकमान ने हार की समीक्षा के लिए एक बैठक बुलाई थी, जिसमें उदयभान और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा शामिल नहीं हुए। इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि हाईकमान अब प्रदेश अध्यक्ष के पद को बदलने के पक्ष में है, और नए नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति पर भी विचार कर रहा है। सूत्रों के अनुसार, कुमारी सैलजा को पार्टी की कमान सौंपने की योजना पर चर्चा चल रही है। इससे हाईकमान को यह उम्मीद है कि वे पार्टी को नए सिरे से पुनर्जीवित कर सकेंगे।
इस बीच, भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट भी अपनी रणनीति पर काम कर रहा है। उनके समर्थक नेता गीता भुक्कल और शकुंतला खटक के नामों को प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए आगे बढ़ा रहे हैं। ये दोनों नेता दलित समुदाय से आती हैं, जो पार्टी के सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण हैं। इसके साथ ही, हुड्डा गुट ने नेता प्रतिपक्ष के लिए अशोक अरोड़ा का नाम भी प्रस्तावित किया है।
कांग्रेस की रणनीति यह है कि वे दलित को प्रदेश अध्यक्ष और गैर-जाट को नेता प्रतिपक्ष बनाकर विधानसभा चुनावों में हुई हार के असर को नियंत्रित कर सकें। इससे पार्टी की सामाजिक समरसता को भी मजबूती मिल सकती है।हालांकि, पार्टी में इस विवाद को लेकर कई गुट सक्रिय हैं, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा की चुप्पी के पीछे उनके गुट का दबाव भी साफ दिख रहा है। ऐसे में, कांग्रेस को एक ऐसी योजना बनानी होगी जो न केवल वर्तमान संकट का समाधान करे, बल्कि भविष्य के लिए भी एक मजबूत आधार तैयार कुल मिलाकर, हरियाणा कांग्रेस के अंदर अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर चल रहा यह विवाद जल्द ही सुलझ सकता है, लेकिन इसके लिए हाईकमान को सभी गुटों के बीच संतुलन बनाना होगा। चुनाव हारने के बाद, पार्टी को अपनी रणनीति को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है ताकि वह आगामी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर सके। यह एक ऐसा समय है जब कांग्रेस को संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ नेतृत्व को भी स्पष्टता से स्थापित करना होगा।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस अपने भीतर के इस विवाद को किस प्रकार सुलझाती है और क्या पार्टी अपनी स्थिति को पुनः मजबूत करने में सफल हो पाती है। हरियाणा में कांग्रेस के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण समय है, लेकिन उचित नेतृत्व और सही निर्णयों के माध्यम से वे इस स्थिति को बदलने का प्रयास कर सकते हैं।