BIHAR NEWS: लालू की इफ्तार पार्टी से कांग्रेस की दूरी पर जेडीयू ने कसा तंज, कहा- ‘नाव डूबने वाली है’
बिहार: बिहार में विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीतियों में जुट गए हैं। इस समय रमजान का महीना चल रहा है और इफ्तार पार्टी के माध्यम से वोटर्स को लुभाने की कोशिश की जा रही है। खासकर, मुस्लिम समुदाय को साधने के लिए राजनीतिक दल सक्रिय हैं, लेकिन कांग्रेस इस कोशिश में अपने सहयोगी दल राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से अलग नजर आ रही है, जिससे राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं।
राष्ट्रीय जनता दल की ओर से सोमवार को दावते-ए-इफ्तार का आयोजन किया गया, जिसमें कई मुस्लिम संगठन शामिल हुए। हालांकि, कांग्रेस का कोई बड़ा नेता इस आयोजन में दिखाई नहीं दिया। कांग्रेस की ओर से सिर्फ विधायक प्रतिमा दास ही इस इफ्तार पार्टी में शामिल हुईं। पार्टी के शीर्ष नेता जैसे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार और पार्टी प्रभारी अल्लावरू कृष्णा इस इफ्तार पार्टी से नदारद रहे, जिससे कांग्रेस और आरजेडी के रिश्तों में खटास की संभावना जताई जा रही है।
इस समय आरजेडी और कांग्रेस के बीच रिश्तों में तनाव की वजहों को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। एक कारण कन्हैया कुमार की बिहार में एंट्री और दूसरा, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद से लालू यादव के करीबी अखिलेश सिंह को हटाना माना जा रहा है। इस बदलाव के साथ ही कांग्रेस अब अपनी स्थिति मजबूत करने के प्रयास में लगी हुई है। कांग्रेस की रणनीति आरजेडी पर दबाव डालने की है, खासकर विधानसभा चुनाव से पहले।
कांग्रेस ने संगठन में बड़े बदलाव किए हैं और प्रदेश की कमान राजेश कुमार को सौंप दी है, जो दलित वोटबैंक को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा, कांग्रेस ने पिछले चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल 19 सीटें ही जीत पाई थीं। इस बार, कांग्रेस अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए आरजेडी पर दबाव बनाने के संकेत दे रही है।
बिहार में इस समय इफ्तार पार्टी की बहार है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जनसुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने भी अपनी-अपनी इफ्तार पार्टियां दी हैं। चिराग पासवान की एलजेपी ने भी इफ्तार पार्टी का आयोजन किया है, और कांग्रेस भी अपनी इफ्तार पार्टी आयोजित करने की योजना बना रही है। राज्य में करीब 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी है, और यहां की 243 सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसे में, राजनीतिक दल अपनी-अपनी सियासी पकड़ बनाने में जुटे हैं।