बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में आगामी 2026 विधानसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है। पार्टी ने बंगाल में अपनी राजनीतिक बेस को मज़बूत करने के लिए राम के नाम पर हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाना शुरू किया है। रामनवमी पर बंगाल में सैकड़ों शोभा यात्राएं निकालकर बीजेपी ने साफ संकेत दिए हैं कि वह आगामी चुनाव में राम और हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर चुनावी मैदान में उतरेगी। इस दौरान बीजेपी ने ममता बनर्जी और उनकी सरकार को हिंदू विरोधी और सनातन धर्म के प्रति असंवेदनशील बताया है। इसके परिणामस्वरूप बीजेपी ने बंगाल में राम के नाम पर अपनी सियासी लड़ाई को तूल दिया है।
बीजेपी के इस रणनीतिक कदम के जवाब में ममता बनर्जी अपनी सियासी तैयारी को लेकर पहले से सजग हैं। 2021 विधानसभा चुनाव में ममता ने ‘मां, माटी, और मानुष’ के नारे के माध्यम से बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति का काउंटर किया था। अब, ममता बनर्जी 2026 के चुनाव में फिर से बंगाली अस्मिता के मुद्दे को उठाने की योजना बना सकती हैं। ममता ने पहले ही यह मुद्दा उठाया था कि बंगाल की अस्मिता की रक्षा के लिए उन्हें बाहरी नेताओं से लड़ाई करनी है, और बीजेपी को ‘बाहरी’ के रूप में पेश किया था। ममता का यह भी कहना है कि बंगाल कोई यूपी या गुजरात नहीं है, बल्कि यहां की अपनी एक अलग पहचान और संस्कृति है।
ममता ने पिछले चुनाव में बंगाली अस्मिता को ही मुख्य चुनावी मुद्दा बना दिया था, और वह इसे फिर से 2026 के चुनावों में प्रमुख बनाकर बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे का काउंटर करेंगी। टीएमसी यह दावा कर रही है कि 2021 में रामनवमी के दौरान सुरक्षा बनाए रखने और शांति बनाए रखने में उनकी सरकार सफल रही, और इसका श्रेय वह अपनी सरकार की कामयाबी के रूप में पेश कर सकती हैं।
टीएमसी अपनी चुनावी रणनीति में विकास और बंगाली अस्मिता के मुद्दे को महत्वपूर्ण स्थान देने की योजना बना रही है। ममता बनर्जी के लिए यह एक बड़ा राजनीतिक कदम हो सकता है, क्योंकि बीजेपी के आक्रामक हिंदुत्व को जवाब देने के लिए वह बंगाल की संस्कृति और स्थानीय पहचान को मजबूत करने का प्रयास करेंगी। 2026 के विधानसभा चुनाव में ममता का यह काउंटर प्लान बीजेपी के राम नाम के एजेंडे को चुनौती देने में सक्षम हो सकता है, जिससे बंगाल की राजनीति में एक नई दिशा देखने को मिल सकती है।
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