Site icon Channel 4 News India

एक आदर्श शिक्षक

an ideal teacher

एक आदर्श शिक्षक

एक आदर्श शिक्षक

an ideal teacher

आज के पश्चिम बंगाल की अठारहवीं शताब्दी की यह घटना हैं। नदिया जिले के नवद्वीप में एक गुरुकुल चलता था जिसमें एक गरीब परिवार का अत्यन्त प्रतिभाशाली छात्र पढ़ता था। जिसने आगे चलकर “तर्क सिद्धांत” की उपाधि प्राप्त की

उस समय की प्रथा के अनुसार छात्र पढ़ाई पूर्ण कर अपने ज्ञान का परिचय राजा के सम्मुख प्रस्तुत करते थे। राजा को संतुष्ट कर गुरुकुल खुलवाने के लिए राजा से भूमि व आर्थिक सहायता मांगते थे।

लेकिन, यह बालक राजा की सहायता नहीं लेना चाहता था। इसलिये उन्होंने नवद्वीप के निकट जंगल में अपना गुरुकुल खोला। उनकी विद्वता की कीर्ति चारों ओर फैल गई। वे सदैव ज्ञानार्जन की साधना में लीन रहते थे। खूब गरीबी होने पर भी उन्होंने कभी राज्य के सामने सहायता के लिए हाथ नहीं फैलाया

एक बार कोलकाता के महाराजा नवकृष्ण के भवन में आयोजित शास्त्रार्थ में बंगाल के सर्वश्रेष्ठ विद्वान दिग्विजय हेतु आये। कोलकाता के विद्वान बाहर से आये विद्वानों से शास्त्रार्थ में हार गये, तब उसी गरीब विद्वान ने उन बाहरी विद्वान को पराजित कर बंगाल के सम्मान की रक्षा की। उपहार स्वरुप महाराजा उनको बहुत सारी धन-सम्पदा देना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उस धन-संपदा को विनम्रतापूर्वक छुआ तक नहीं।

तभी नदिया के राजा कृष्णचन्द्र इन विद्वान के पास उनकी गरीबी व विद्वता की प्रसिद्धि सुनकर आये। उन्होंने पूछा आपको कोई अभाव तो नहीं है? विद्वान ने कहा, “नहीं, मुझे कोई अभाव नहीं है। घर में मोटा चावल हैं। सामने इमली का वृक्ष देख रहे हैं इसकी पत्तियों से मेरी धर्म पत्नी बहुत अच्छा व्यंजन बना लेती हैं। मैं आनंद से उनके साथ अन्न गृहण करता हूँ।“

Exit mobile version