सियासत और साइंस में एक बात तो बहुत कॉमन है। साइंस में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हर वक्त प्रयोग होते रहते हैं, और सियासत में भी इसी तरह प्रयोग चलते रहते हैं। ताकी निष्कर्ष वोटों के वक्त दिखे और सफलता मिले। लेकिन साइंस और सियासत में फर्क सिर्फ इतना है कि सियासत के प्रयोगों का रिजल्ट जल्दी आ जाता है। ज्यादा से ज्यादा 5 साल। क्योंकि हमारे देश में हर पांच साल में ही चुनाव होते हैं। जिसका प्रयोग सफल हुआ सत्ता पर वही काबिज हुआ। चलिए बात हम देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की सियासत की करते हैं। क्योंकि यहां पर चुनावों में अभी करीब 2 साल का वक्त है। लेकिन सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है और यहां भी कई प्रयोग हो रहे हैं। दरअसल यूपी में सियासत की 3 धुरियां हैं। पहला कोर हिंदूत्व, दूसरा दलित और तीसरा मुस्लिम। यूपी की सियासत हमेशा इन तीनों धुरियों की आगे पीछे धूमती रही है। सत्ता पर काबिज बीजेपी बिखरे हुए वोटों को हिंदुत्व के एजेंडे पर एकजुट करने में लगी है तो विपक्षी पार्टियां जैसे सपा-कांग्रेस-बसपा और चंद्रशेखर आजाद की पार्टी दलित और मुस्लिमों के गठजोड़ में जुटी है। क्योंकि राहुल गांधी का हाथरस में रेप पीड़िता के परिवार से मिलने जाना नए राजनीतिक समीकरणों की ओर इशारा कर रहा है। उधर अखिलेश यादव भी पीडीए के सहारे फिर से यूपी की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं। वहीं आजाद समाज पार्टी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद भी दलित मुस्मिल गठजोड़ के सहारे यूपी की सियासत में खुद को मजबूत करना चाहत हैं। दरअसल आजम खान की अखिलेश यादव से बढ़ती तकरार के बीच आजाद समाज पार्टी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद प्रमुख मौका तलाश रहे हैं। क्योंकि दलित राजनीति के चेहरे चंद्रशेखर आजाद ने सीतापुर जाकर जेल में बंद आजम खान से मुलाकात की थी और उससे पहले उनके बेटे अब्दुल्ला आजम से भी मिलने के लिए जेल पहुंचे थे। जेल में दोनों ही नेताओं के बीच क्या बातचीत हुई ये सामने नहीं आ सकी, लेकिन उसके सियासी संकेत अब दिखने लगे हैं। सूत्रों की माने तो आजम खान के समर्थकों की तरफ से AIMIM के चीफ और मुस्लिम सियासत के सबसे बड़े चेहरे असदुद्दीन ओवैसी को भी उनसे मुलाकात करने के लिए अप्रोच कर चुके हैं। लेकिन अभी तक दोनों ही मुस्लिम नेताओं के बीच कोई मुलाकात नहीं हो सकी है। ओवैसी अक्सर आजम खान के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाते रहे हैं और उसके बहाने सपा पर निशाना साध रहे हैं। वहीं कुछ दिन पहले आजम खान ने भी INDIA ब्लॉके के नेताओं को चिट्ठी लिखकर मुसलमानों को लेकर अपनी सोच जाहिर करने की मांग की थी। यहां गौर करने वाली बात है कि नगीना से जीतने के बाद से ही चंद्रशेखर दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे यूपी की सियासत में अपनी जगह बनाना चाहते हैं। यही वजह है कि चंद्रशेखर आजाद दलित और मुस्लिमों के मुद्दे पर हमेशा मुखर रहे हैं। चाहे ताजातरीन संभल का मुद्दा हो या फिर दलित प्रताड़ना का। चद्रशेखर की सक्रियता का नतीजा हमें उपचुनाव के परिणामों में भी देखने को मिला। आजाद समाज पार्टी ने 3 सीटों पर कुंदरकी, खैर और मीरपुर में बसपा को जबरदस्त टक्कर दी और दो सीटों पर तो उससे अधिक वोट हासिल किये। यह चंद्रशेखर आजाद के लिए उत्साहित करने वाला है। ऐसे में अगर चंद्र शेखर आजाद को आजम खान का का साथ मिलता है तो पश्चिम यूपी की कई सीटों पर सियासी समीकरण बदल सकते हैं और आजाद समाज पार्टी यूपी में एक बड़ी भूमिका या खासकर किंग मेकर की भूमिका निभा सकती है। चंद्रशेखर ने अपनी तरफ से भी मुस्लिमों के बीच अपनी पैठ जमाने के लिए, मुस्लिम उलेमाओं और रहनुमाओं के साथ सियासी रिश्ते को मजबूत करने के मिशन पर काम शुरू कर दिया है। चंद्रशेखर ने अपने करीबी साकिब को इस काम का जिम्मा सौंपा है, जो यूपी में अलग-अलग मौलानाओं के साथ बातचीत कर उनकी मुलाकात करा रहे हैं। हांलाकि जैसे चंद्रशेखर की पार्टी आजाद समाज पार्टी का मजबूत होना दूसरी पार्टियों के लिए मुसिबतें खड़ी कर रहा है। आजाद समाज पार्टी के आने से बहुजन समाज पार्टी को बड़ा झटका लगा है। वहीं अगर आजाद समाज पार्टी के साथ अगर मुस्लिम वोटर भी आते हैं तो समाजवादी पार्टी के लिए परेशानी वाली बात हो सकती है। क्योंकि सपा को 2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में जो सीटें आई हैं। उसमें ज्यादातर सीटें पश्चिमी यूपी के इलाके की हैं। मुस्लिम वोटों के सहारे ही सपा इन सीटों पर जीत का परचम फहराने में कामयाब रही। मेरठ से लेकर मुजफ्फरनगर, बिजनौर, सहारनपुर, अमरोहा जैसे मुस्लिम क्षेत्र हैं। जहां दलित वोट भी काफी निर्णायक भूमिका में है। ऐसी चर्चाएं है कि उत्तर प्रदेश के 2027 विधानसभा चुनाव में अगर चंद्रशेखर आजाद, असदुद्दीन ओवैसी और आजम खान की तिकड़ी बन सकती। अगर ये अनुमान सही साबित हुआ तो यूपी की सियासत में फिर बड़ा उलट-फेर हो सकता है। जो बीजेपी को कम, लेकिन सपा, बसपा कांग्रेस को ज्यादा सियासी टेंशन देने वाला है।