SC: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें उसने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया था। यह आदेश राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की रिपोर्ट पर आधारित था, जिसमें मदरसों की मान्यता रद्द करने और शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के पालन में कमी को लेकर सख्त कदम उठाने का सुझाव दिया गया था।
मामला क्या है?
उत्तर प्रदेश सरकार ने एनसीपीसीआर की एक रिपोर्ट के आधार पर गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में भेजने का निर्णय लिया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि जिन मदरसों ने RTE का पालन नहीं किया, उनकी मान्यता रद्द की जानी चाहिए। इस निर्णय का विरोध करते हुए मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में एक पीठ ने याचिका पर सुनवाई की। अदालत ने यह माना कि एनसीपीसीआर के आदेशों और राज्य सरकारों की कार्रवाई पर रोक लगाना आवश्यक है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि मदरसों से गैर-मुस्लिम छात्रों को हटाने और सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों को बंद करने का कोई आदेश नहीं दिया जा सकता।SC
एनसीपीसीआर की रिपोर्ट
एनसीपीसीआर ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मदरसों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग तभी जारी रखी जा सकती है जब वे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का पालन करें। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि अगर मदरसों ने तय मानकों को पूरा नहीं किया, तो उन्हें बंद करने की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।SC
विपक्ष की प्रतिक्रिया
इस मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह अल्पसंख्यक संस्थानों को जानबूझकर निशाना बना रही है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि वह मुस्लिम समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह रखती है। विपक्ष का कहना है कि ऐसे निर्णय शिक्षा के अधिकार को सीमित कर सकते हैं और समाज में भेदभाव को बढ़ावा दे सकते हैं।SC
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE)
RTE अधिनियम 2009 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। यह अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि सभी बच्चे, विशेषकर गरीब और वंचित वर्ग, शिक्षा के अधिकार का लाभ उठा सकें। मदरसों को भी इस अधिनियम के तहत आवश्यक मानकों का पालन करना होता है।SC
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि एनसीपीसीआर द्वारा जारी किए गए सभी संचारों पर रोक लगाई जाए। इसके अलावा, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों पर भी रोक रहेगी। पीठ ने यह कहा कि यदि एनसीपीसीआर की रिपोर्ट के कारण कोई भी कार्रवाई की गई है, तो उसे भी रोका जाएगा।SC
मुस्लिम संगठनों की प्रतिक्रिया
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और इसे एक सकारात्मक कदम बताया। संगठन ने कहा कि यह निर्णय शिक्षा के अधिकार को सुरक्षित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को सभी छात्रों को समान अवसर प्रदान करना चाहिए, बिना किसी भेदभाव के।SC
आगे की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम संगठन को अनुमति दी है कि वे अन्य राज्यों को भी याचिका में शामिल करें। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह मुद्दा केवल उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य राज्यों में भी मदरसों के संचालन और उनकी मान्यता को लेकर सवाल उठ सकते हैं।SC