महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तैयारी में सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी सियासी रणनीतियाँ बनानी शुरू कर दी हैं। इस चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि उनकी संख्या लगभग 12% है, जो कई क्षेत्रों में निर्णायक साबित हो सकती है। खासकर उत्तरी कोंकण, खानदेश, मराठवाड़ा, मुंबई और पश्चिमी विदर्भ में मुसलमान मतदाता राजनीतिक दलों का भविष्य बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं।
पार्टियों की सियासी कवायद
- भाजपा-शिवसेना-एनसीपी गठबंधन: एकनाथ शिंदे की अगुवाई में यह गठबंधन अपने सियासी दबदबे को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
- कांग्रेस-शिवसेना (यूबीटी)-एनसीपी (एस) गठबंधन: यह गठबंधन सत्ता में वापसी के लिए बेताब है, और मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए विशेष प्रयास कर रहा है।
- सपा और AIMIM: समाजवादी पार्टी (सपा) और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM दोनों ही मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं। इन पार्टियों का लक्ष्य मुस्लिम समुदाय में अपनी सियासी पहचान बनाना और सत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है।
सपा का प्रयास
सपा प्रमुख अखिलेश यादव 18 अक्टूबर को महाराष्ट्र का दौरा करने जा रहे हैं, जहाँ वे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जनसभाएँ करेंगे। सपा ने महाराष्ट्र में अपने उम्मीदवारों को मुस्लिम बहुल सीटों पर उतारने की योजना बनाई है। इससे पहले, सपा का प्रदर्शन 2009 में सर्वश्रेष्ठ रहा था, जब उसने 4 सीटें जीती थीं।
ओवैसी की AIMIM की भूमिका
असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने भी चुनावी रणनीति के तहत लगभग 30 सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है, खासकर उन सीटों पर जहां मुस्लिम मतदाता 30% से अधिक हैं। ओवैसी की पार्टी ने 2019 के विधानसभा चुनाव में मालेगांव और धुले में जीत हासिल की थी, जिससे उनकी राजनीतिक ताकत बढ़ी है।
कांग्रेस और एनसीपी की चिंता
ओवैसी और सपा की एंट्री से कांग्रेस और एनसीपी को चिंता हो सकती है, क्योंकि ये पार्टियाँ लंबे समय से मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन प्राप्त कर रही थीं। राहुल गांधी की राजनीति के चलते कांग्रेस में एक बार फिर से विश्वास की भावना जागृत हो रही है, लेकिन सपा और ओवैसी का बढ़ता प्रभाव उनके लिए चुनौती बन सकता है।