हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माने जाने वाला जाटलैंड इस बार मतदान के मामले में पिछड़ा है। यहां पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 1.02 प्रतिशत कम मतदान हुआ है, जो कि 66.85 प्रतिशत रहा। इस क्षेत्र में रोहतक, पानीपत, झज्जर, जींद, भिवानी, और चरखी दादरी की 25 सीटें आती हैं। हरियाणा में 1967 से लेकर 2019 तक कुल 13 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, लेकिन राज्य के इतिहास में किसी भी पार्टी को लगातार तीसरी बार जनादेश नहीं मिला है।
मतदान के कुल आंकड़े
2024 में हरियाणा में कुल 66.96 प्रतिशत मतदान हुआ, जो कि 2019 के 68.08 प्रतिशत से 1.12 प्रतिशत कम है। हरियाणा के सभी विधानसभा चुनावों का औसत मतदान प्रतिशत 69.19 रहा है। यह दर्शाता है कि इस बार मतदान का प्रतिशत औसत से भी कम रहा है।
मतदान के आंकड़ों का विश्लेषण
हरियाणा के इतिहास में चार बार औसत मतदान प्रतिशत से कम होने पर सत्ता परिवर्तन हो चुका है। इसके विपरीत, सात बार अधिक मतदान प्रतिशत होने के बावजूद सत्ता की चाबी सत्ताधारी पार्टी के हाथ से निकल गई है। उदाहरण के लिए, 2000 के चुनाव में 69.09 प्रतिशत मतदान के बाद इनेलो सत्ता में आई, जबकि 2005 में 71.97 प्रतिशत मतदान के बाद कांग्रेस की वापसी हुई।
क्षेत्रवार मतदान के आंकड़े
- जीटी बेल्ट:
- इस क्षेत्र में मतदान प्रतिशत 66.40 से बढ़कर 67.70 प्रतिशत हुआ, जो 1.30 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। जीटी बेल्ट में आने वाले जिलों में पंचकूला, यमुनानगर, करनाल, और कुरुक्षेत्र शामिल हैं।
- दक्षिण हरियाणा:
- दक्षिण हरियाणा में मतदान में 2.25 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो कि 63.75 से बढ़कर 66 प्रतिशत तक पहुंच गया। यहां भाजपा को 15 सीटें मिली थीं।
- पश्चिम हरियाणा:
- पश्चिम हरियाणा में मतदान प्रतिशत 70 से बढ़कर 72.51 प्रतिशत हुआ, जो कि 2.51 प्रतिशत की वृद्धि है। इस क्षेत्र में सिरसा, फतेहाबाद, और हिसार जिले शामिल हैं।
- हुड्डा का गढ़:
- भूपेंद्र सिंह हुड्डा के क्षेत्र में मतदान में कमी आई, जो दर्शाता है कि उनकी पार्टी के प्रति स्थानीय मतदाता की रुचि कम हुई है।
- मुख्यमंत्री सैनी का हलका:
- मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के लाडवा हलके में 3 प्रतिशत से अधिक मतदान गिरा। वहीं, हुड्डा के गढ़ी-सापलां-किलोई में 5 प्रतिशत से अधिक मतदान में कमी आई है।
कारणों का विश्लेषण
चुनावी मतदान के आंकड़ों से साफ है कि:
- शहरी मतदाताओं की अनुपस्थिति: शहरी क्षेत्रों में मतदाता कम संख्या में मतदान करने पहुंचे, जिससे मतदान का प्रतिशत घटा।
- ग्रामीण मतदाताओं की रुचि: ग्रामीण क्षेत्रों में भी मतदाता की भागीदारी अपेक्षाकृत कम रही।
- राजनीतिक बगावत: टिकट वितरण में कांग्रेस और भाजपा में विद्रोह हुआ, जिससे कई नाराज नेता चुनाव में सक्रिय नहीं रहे।
- राष्ट्रीय मुद्दों का प्रभाव: चुनाव इस बार अधिकतर राष्ट्रीय मुद्दों और नेताओं के इर्द-गिर्द केंद्रित रहा, जिससे स्थानीय मुद्दे पीछे रह गए।