हरियाणा में लोकसभा चुनाव के लिए 10 सीटों पर 25 मई को एक चरण में वोटिंग होगी. वैसे तो हरियाणा सभी सीटों पर मुकाबला रोमांचक होने जा रहा है, लेकिन सबसे दिलचस्प चुनावी महाभारत कुरुक्षेत्र  में होने जा रही है. यहां पर भाजपा ने पूर्व कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल को उम्मीदवार बनाया है, जबकि ‘इंडिया’ गठबंधन से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के साझा प्रत्याशी डॉ. सुशील कुमार गुप्ता मैदान में हैं . वही, इनेलो ने 20 साल बाद एक बार फिर अभय चौटाला को चुनावी मैदान में उतारा है. दावों और वादों के बीच सभी उम्मीदवार जनता के बीच आ चुके हैं और इस बार मुकाबला तिकोना होगा.

नवीन जिंदल कुरुक्षेत्र से दो बार कांग्रेस से सांसद (2004-14) रहे. 2004 में उन्होंने इनेलो के अभय चौटाला को हराया था. साथ 2009 में भी इनेलो के ही अशोक अरोड़ा को मात देकर नवीन जिंदल दूसरी बार संसद पहुंचे थे. पिता ओपी जिंदल साल 1996 में हरियाणा विकास  पार्टी और बीजेपी गठबंधन से सांसद रहे. हालांकि, कोयला घोटाले के आरोपों के चलते विपक्ष आड़े हाथों ले रहा है. साथ ही इलेक्टोरल बांड जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर जवाब देना पड़ रहा है. पिछले 10 साल से हल्के में सक्रिय ना होने से भी नवीन के सामने चुनौती बढ़ी है. उधर, किसानों का तल्ख रवैया भी उनकी मुश्किलें बढ़ा रहा है.  हालांकि, राहत की बात यह है कि वे दो बार खुद यहाँ से सांसद रहे हैं. एक बार उनके पिता ओपी जिंदल को भी कुरुक्षेत्र की जनता का साथ मिला था.

प्रदेश में 10 साल बीजेपी सरकार का काम, अयोध्या में भगवान राम और पीएम मोदी का नाम, उनकी राह आसान बना सकता है. इसके अलावा, देश की सबसे अमीर भारतीय महिला सावित्री जिंदल के पुत्र और मशहूर उद्योगपति होना भी कुरुक्षेत्र की चुनावी चौसर में उनके हक में दिखते हैं.

हाल ही में आप के राज्यसभा सांसद का कार्यकाल समाप्त हुआ है. पहली बार सीधे तौर पर जंग के मैदान में वह उतरे हैं. आम आदमी पार्टी के हरियाणा में प्रदेश अध्यक्ष हैं. पंजाब जीतने के बाद भी हरियाणा में आम आदमी पार्टी का बहुत बड़ा आधार विश्लेषक नहीं मानते हैं. वैश्य समुदाय के वोट एकजुट कर पाना मुश्किल होगा. क्योंकि खुद नवीन जिंदल भी इसी समुदाय से हैं. लगातार दो बार भाजपा की जीत के बाद इस बार बीजेपी की हैट्रिक से निपटना आसान नहीं होगा. मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी मौजूदा सांसद हैं और कुरुक्षेत्र में सैनी समुदाय की अच्छी खासी तादाद है.

उनके लिए अच्छी बात यह ह कि वह पिछले 5 – 6 साल से कुरुक्षेत्र में सक्रिय हैं, शिक्षाविद होने के अलावा धार्मिक और सामाजिक तौर पर स्थानीय संस्थाओं से जुड़े हुए हैं. पंजाब-हरियाणा और हिमाचल में सिर्फ डॉ. सुशील गुप्ता ही  इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार हैं. साल 2013 में वह दिल्ली में मोतीनगर विधानसभा से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. इनका नाम सबसे अमीर उम्मीदवारों की सूची में भी शुमार था. राजधानी की सियासत के दांव-पेंच से भली भांति परिचित हैं.

अभय चौटाला 20 साल पहले यहां से हारे थे

अभय चौटाला इंडियन नेशनल लोकदल इनेलो के महासचिव हैं. हरियाणा विधानसभा में पार्टी के एकमात्र विधायक भी हैं. एक बार फिर इनेलो की टिकट पर कुरुक्षेत्र के रण में उतरे हैं.  20 साल बाद नवीन जिंदल से इनका फिर आमना सामना हो रहा है. इससे पहले 2004 में कांग्रेस की टिकट से नवीन जिंदल ने ही अभय चौटाला को शिकस्त दी थी. अभय चौटाला सिर्फअपनी हार का ही नहीं, बल्कि 2019 के लोकसभा  सभा चुनावों में अपने बेटे अर्जुन चौटाला की हार का भी हिसाब चुकता करने के लिए कुरुक्षेत्र के महाभारत में उतरे हैं.

चौटाला के लिए चुनौती

पिछले 20 साल से सत्ता से बाहर होने की वजह से पार्टी का जनाधार खिसकता गया. चौटाला परिवार में टकराव से ना सिर्फ रिश्ते टूटे, बल्कि इनेलो में भी बिखराव देखने को मिला. विरोधी लगातार बीजेपी की B  टीम होने का आरोप लगा कर हमलावर हैं. मकसद सिर्फ कुरुक्षेत्र का मैदान फ़तेह करना नहीं, बल्कि इनेलो के खोये हुए वर्चस्व को दोबारा पाने की भी चुनौती है. राहत की बात यह भी है कि यहाँ से इनेलो के उम्मीदवारों को जीत मिलती रही है. आज भी चौटाला परिवार के समर्थक अच्छी खासी संख्या में हैं.

इस सीट पर सबसे ज्यादा करीब 18 % जाट समुदाय से जुड़े मतदाता हैं और अभय चौटाला जाट समुदाय से अकेले उमीदवार हैं.अभय सिंह चौटाला पार्टी और परिवार में बिखराव के बाद भी रुके नहीं हैं. वे लगातार पार्टी की मजबूती के लिए संघर्ष कर रहे.

1998 -1999  में  कैलाशो सैनी को छोड़ दें तो यहाँ से हमेशा बाहरी उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की हैय लोकल कैंडिडेट  कैलाशो सैनी इनेलो की टिकट पर दो बार सांसद बनीं है.  पंजाब-हरियाणा और हिमाचल में सिर्फ कुरुक्षेत्र में ही इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार ताल ठोक रहा है. भूतपूर्व प्रधानमंत्री गुलज़ारी लाल नंदा भी यहाँ से सांसद रह चुके हैं.

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