सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को लगातार दूसरे दिन वक्फ कानून संशोधन अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। बीते दिन कोर्ट ने मामले की करीब दो घंटे सुनवाई की थी। इस दौरान पीठ ने अंतरिम रोक को लेकर कोई आदेश पारित नहीं किया था। अब जानिए सर्वोच्च न्यायालय में आज क्या-क्या हुआ…
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की गैरमौजूदगी में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि कोर्ट इस चरण में किसी प्रकार की अंतिम राय नहीं दे रहा है, लेकिन जब तक मामले की अगली सुनवाई 5 मई को नहीं होती, तब तक यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी। इसका मतलब यह है कि वक्फ बोर्ड, काउंसिल में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी और वक्फ-बाय-यूजर अथवा दस्तावेज आधारित संपत्तियों को डीनोटिफाई नहीं किया जाएगा।
सरकार को मिली राहत, लेकिन ज़िम्मेदारी भी बढ़ी
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से आग्रह किया कि कानून पर पूर्ण रोक लगाना एक कठोर कदम होगा, जिसे अंतिम सुनवाई से पहले नहीं उठाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वक्फ अधिनियम का व्यापक प्रभाव है और इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। तुषार मेहता ने यह भी कहा कि सरकार लोगों के प्रति जवाबदेह है, और कई बार प्रतिनिधियों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर ही वक्फ संपत्तियों को चिन्हित किया जाता है।
मेहता ने अदालत को यह आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई तक सरकार न तो कोई नई अधिसूचना जारी करेगी और न ही वक्फ संपत्तियों को डीनोटिफाई किया जाएगा। साथ ही, परिषद और बोर्ड में किसी भी प्रकार की नई नियुक्ति भी नहीं की जाएगी। उन्होंने कोर्ट से प्रारंभिक जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया।
कोर्ट की सख्ती: कोई नया कदम नहीं उठेगा
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के आश्वासन को रिकॉर्ड में लेते हुए साफ किया कि जब तक यह मामला लंबित है, तब तक वर्तमान स्थिति में कोई भी बदलाव नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने दोहराया कि यदि कोई संपत्ति वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत पहले ही पंजीकृत है या जिसे अधिसूचना के माध्यम से घोषित किया गया है, उसे अगली सुनवाई तक डीनोटिफाई नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक यह मामला पूरी तरह से सुना नहीं जाता और किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जाता, तब तक किसी भी संपत्ति के स्टेटस को बदला नहीं जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उनकी मंशा यह नहीं है कि अधिनियम को पूरी तरह से रोका जाए, बल्कि जब तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, तब तक स्थायित्व बनाए रखा जाए।
केवल पांच याचिकाओं पर होगी सुनवाई
गुरुवार की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं, लेकिन सभी पर एकसाथ सुनवाई संभव नहीं है। इसलिए फिलहाल अदालत केवल पांच याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। अन्य याचिकाकर्ताओं से कहा गया कि वे आपस में यह तय करें कि कौन-कौन बहस करेगा। इसका मकसद प्रक्रिया को सुगम और सुगठित बनाना है ताकि समय की बचत हो और मुद्दे पर केन्द्रित बहस हो सके।
क्या था बुधवार का घटनाक्रम?
बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान भी कोर्ट ने इस अधिनियम पर गंभीर सवाल उठाए थे। अदालत ने प्रस्ताव दिया था कि अधिनियम के कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर अंतरिम रूप से रोक लगाई जाए। इनमें कलेक्टरों को संपत्तियों की जांच के दौरान उन्हें वक्फ घोषित करने अथवा गैर वक्फ घोषित करने के अधिकार, वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, तथा न्यायालयों द्वारा वक्फ संपत्तियों को डीनोटिफाई करने जैसे प्रावधान शामिल थे।
हालांकि, बुधवार को कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया था, लेकिन यह जरूर संकेत दे दिया था कि वह इस मुद्दे को हल्के में नहीं ले रहा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि इस कानून को लेकर देशभर में चल रही हिंसा और असंतोष गंभीर चिंता का विषय है।
अधिनियम में क्या है विवाद?
वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 में ऐसे कई प्रावधान जोड़े गए हैं, जिनसे संपत्ति की पहचान, अधिसूचना, और डीनोटिफिकेशन की प्रक्रिया पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। नए संशोधन के तहत कलेक्टर को अधिकार दिया गया है कि वे किसी भी संपत्ति की जांच कर यह तय कर सकते हैं कि वह वक्फ है या नहीं। इसके अतिरिक्त, ‘वक्फ बाय यूजर’ जैसी अवधारणा भी विवाद का केंद्र बनी हुई है, जिसमें किसी संपत्ति का लंबे समय तक मुस्लिम समुदाय द्वारा उपयोग वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज होने का आधार बन सकता है।
वकीलों का तर्क है कि यह प्रावधान पूरी तरह से अनुचित है और इससे बड़ी संख्या में संपत्तियों पर गलत तरीके से दावा किया जा सकता है। वहीं, सरकार का कहना है कि यह प्रावधान ऐतिहासिक रूप से मौजूद रहा है और इसका दुरुपयोग रोकने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय अधिनियम में शामिल किए गए हैं।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नया संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 25-28 (धार्मिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 300-A (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है। याचिका में कहा गया है कि वक्फ बोर्डों को मिली असीमित शक्तियां आम नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। इसके अलावा, वक्फ अधिनियम के तहत अदालतों के अधिकारों को सीमित कर दिया गया है, जो न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि देशभर में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को चिन्हित करने और कब्जा करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है। कई बार व्यक्तिगत या सरकारी संपत्तियों को भी वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाता है, जिससे आम नागरिकों को कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।