MLA Vinay Shankar Tiwari: यूपी में चिल्लूपार सीट से पूर्व विधायक और सपा नेता विनय शंकर तिवारी के लखनऊ, मुंबई सहित दस ठिकानों पर ईडी ने सोमवार की सुबह छापेमारी की।

सपा नेता और चिल्लूपार सीट से पूर्व विधायक विनय शंकर तिवारी के गोरखपुर, लखनऊ, नोएडा और मुंबई के ठिकानों सहित देश में करीब दस जगहों पर ईडी ने एक साथ रेड डाली है। सोमवार की सुबह हुई इस कार्रवाई को एक साथ अंजाम दिया गया। सूत्रों के अनुसार ईडी ने उनके खिलाफ चार्जशीट तैयार कर ली थी। जल्द ही उसे कोर्ट में पेश किया जाना है।

ईडी की जांच में सामने आया था कि मेसर्स गंगोत्री एंटरप्राइजेज लिमिटेड ने अपने प्रमोटरों, निदेशकों, गारंटरों के साथ मिलकर बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाले सात बैंकों के कंसोर्टियम से 1129.44 करोड़ रुपये की क्रेडिट सुविधाओं का लाभ लिया था। बाद में इस रकम को उन्होंने अन्य कंपनियों में डायवर्ट कर दिया और बैंकों की रकम को वापस नहीं किया। इससे बैंकों के कंसोर्टियम को करीब 754.24 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

इस पूरे मामले में ईडी ने तिवारी और उनकी कंपनी के खिलाफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत कार्रवाई की थी। सीबीआई के केस दर्ज करने के बाद, ईडी ने तिवारी के खिलाफ जांच शुरू की थी और अब तक उनकी 72.08 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त की जा चुकी हैं। इन संपत्तियों में कृषि योग्य भूमि, व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स, आवासीय परिसरों और भूमि के भूखंड शामिल हैं।

जब्त की गई संपत्तियां

विनय शंकर तिवारी की संपत्तियों की जब्ती की प्रक्रिया में ईडी ने गोरखपुर, महराजगंज और लखनऊ स्थित कुल 27 संपत्तियां जब्त की हैं। इन संपत्तियों में कृषि योग्य भूमि, व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स, आवासीय परिसरों के अलावा कई अन्य प्रकार की संपत्तियां शामिल हैं। इन संपत्तियों की कीमत कई करोड़ रुपये में बताई जा रही है।

ईडी ने यह कार्रवाई 2023 में की थी और तिवारी के खिलाफ चार्जशीट तैयार की थी, जिसे अब जल्द ही अदालत में पेश किए जाने की संभावना है। छापेमारी के दौरान यह सामने आया कि तिवारी की कंपनी ने बैंकों से जो कर्ज लिया था, वह दूसरे बैंकों और कंपनियों में स्थानांतरित किया गया था, और इससे बैंकों को भारी नुकसान हुआ था।

विनय तिवारी के खिलाफ ईडी की जांच

ईडी की जांच में यह पाया गया कि विनय शंकर तिवारी और उनकी कंपनी गंगोत्री एंटरप्राइजेज ने बैंकों के कंसोर्टियम से अवैध तरीके से प्राप्त धन को डायवर्ट कर दिया और बैंकों के कर्ज का भुगतान नहीं किया। इसके बाद यह मामला मनी लांड्रिंग के तहत सामने आया। तिवारी पर आरोप है कि उन्होंने कई कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए बैंकों के पैसे का गलत उपयोग किया, जिससे बैंकों को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ।

ईडी ने तिवारी की कंपनियों और उनके रिश्तेदारों, निदेशकों और गारंटरों के खिलाफ कई साक्ष्य एकत्रित किए हैं। इसके अलावा, यह भी जानकारी मिली है कि तिवारी और उनके सहयोगियों ने कर्ज को वापस न करके बैंकों की धोखाधड़ी की, जिसके कारण बैंकों का करीब 754 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस मामले में कार्रवाई करने के बाद ईडी ने यह पुष्टि की है कि उन्होंने 72.08 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त की हैं।

ईडी की कार्रवाई और राजनीति

विनय शंकर तिवारी की छापेमारी को लेकर राजनीति में कई प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। सपा नेता और पूर्व विधायक पर यह आरोप हैं कि उनकी संपत्तियों को अवैध तरीके से बढ़ाया गया है। विपक्षी दलों का कहना है कि यह ईडी की कार्रवाई केवल राजनीतिक बदला लेने के लिए की गई है, क्योंकि तिवारी समाजवादी पार्टी से जुड़ी हुई हैं और वह पार्टी के एक बड़े नेता रहे हैं।

हालांकि, सपा के नेता अपनी सफाई में कहते हैं कि यह सब केवल एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा है। उनका कहना है कि जो भी कार्रवाई की जा रही है, वह केवल तिवारी की छवि को धूमिल करने के लिए की जा रही है। वहीं, सरकार और ईडी के अधिकारी इस आरोप को नकारते हुए कहते हैं कि उन्होंने अपनी जांच पूरी तरह से पारदर्शी और कानूनी तरीके से की है।

ईडी के कदम से जुड़े अन्य मामले

इस कार्रवाई के साथ ही ईडी ने कई अन्य मामलों में भी कदम बढ़ाए हैं। विशेषकर, बैंक धोखाधड़ी और मनी लांड्रिंग के मामलों में ईडी की सक्रियता को लेकर राजनीति में हलचल मच गई है। यह छापेमारी ऐसे समय में की गई है जब देश भर में बैंकों के गैर-निष्पादित संपत्तियों (NPA) के मामलों को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

ईडी का कहना है कि उनकी प्राथमिकता ऐसे मामलों की जांच करना है, जिनमें बैंकों के पैसे का दुरुपयोग हुआ हो। इसके अलावा, वे ऐसे मामलों को भी ध्यान में रखते हैं, जहां मनी लांड्रिंग के जरिए धन को गलत तरीके से बाहर भेजा गया हो। तिवारी का मामला भी ऐसे ही एक जटिल मनी लांड्रिंग स्केम का हिस्सा है, जिसमें कई बैंकों के कंसोर्टियम को नुकसान हुआ है।

राजनीतिक और वित्तीय प्रभाव

विनय शंकर तिवारी की गिरफ्तारी और उनकी संपत्तियों की जब्ती का राजनीतिक और वित्तीय असर कई स्तरों पर हो सकता है। यह न केवल यूपी की राजनीति में हलचल मचाने वाला मामला बन सकता है, बल्कि यह भारतीय बैंकों की वित्तीय स्थिति पर भी एक प्रश्न चिह्न लगा सकता है।

वर्तमान में, जब भारतीय वित्तीय क्षेत्र में एनपीए की समस्या को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं, ऐसे में इस प्रकार के मामले और भी गंभीर हो जाते हैं। यदि इस प्रकार के मामलों में कड़ी कार्रवाई की जाती है, तो यह बैंकों के भरोसे को मजबूत कर सकता है, लेकिन अगर इसे राजनीति से प्रेरित बताया जाता है, तो यह बैंकों और सरकार के खिलाफ अविश्वास को भी बढ़ा सकता है।

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