देश में लोकसभा चुनाव की हलचल के बीच योग गुरु बाबा रामदेव काफी चर्चा में हैं। इस बार मामला लोगों की सेहत से खिलवाड़ का है। बाबा रामदेव सेहत से जुड़े भ्रामक विज्ञापनों को लेकर सुर्खियों में हैं। बीते 10 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण को फटकार लगाई। अदालत ने उनके गुमराह करने वाले विज्ञापन जारी करने के लिए ‘बिना शर्त माफी’ को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने उत्तराखंड सरकार की भी आलोचना की, क्योंकि उसने कानून का उल्लंघन करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई नहीं की।

पिछले साल नवंबर में प्रकाशित भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) की छमाही शिकायत रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य से जुड़े विज्ञापन कानून तोड़ने के मामले में सबसे ऊपर थे। जांचे गए सभी विज्ञापनों में से 21 प्रतिशत स्वास्थ्य से जुड़े ही थे। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 1954 के ड्रग एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट के खिलाफ सीधे तौर पर जाने वाले विज्ञापनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आइए जानते हैं भ्रामक विज्ञापनों के पीछे की असली वजह आखिर क्या है।

दिसंबर 2016 में हरिद्वार की अदालत ने बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड पर 11 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। ये जुर्माना इसलिए लगाया गया क्योंकि कंपनी अपने उत्पादों के बारे में गलत जानकारी दे रही थी और गलत ब्रांडिंग कर रही थी। अप्रैल 2023 में भी एक बड़ा विवाद हुआ। एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें दिखाया गया कि मोंडेलेज इंटरनेशनल इंडिया द्वारा बनाई जाने वाली बॉर्नविटा में बहुत ज्यादा चीनी होती है। इस चीनी की मात्रा बच्चों के लिए हानिकारक हो सकती है। इसके बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कंपनी को नोटिस भेजा और उनके सभी भ्रामक विज्ञापनों, पैकेजिंग और लेबल हटाने को कहा। हालांकि, विज्ञापन तो चलते रहे, लेकिन कंपनी का दावा है कि उन्होंने बच्चों के इस ड्रिंक में चीनी की मात्रा कम कर दी है।

कोर्ट ने स्वीकार नहीं किए रामदेव, बालकृष्ण के हलफनामे

सुप्रीम कोर्ट ने बीते 10 अप्रैल को भ्रामक विज्ञापन मामले में योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (एमडी) आचार्य बालकृष्ण द्वारा बिना शर्त माफी मांगने के लिए दायर किए गए हलफनामों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘हम इस मामले में इतने उदार नहीं बनना चाहते।’ शीर्ष अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने को लेकर उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के प्रति भी कड़ी नाराजगी जताई। रामदेव और बालकृष्ण ने अपने औषधीय उत्पादों के असर के बारे में बड़े-बड़े दावे करने वाले विज्ञापनों को लेकर उच्चतम न्यायालय में ‘बिना शर्त माफी’मांगी है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल दो अलग-अलग हलफनामों में रामदेव और बालकृष्ण ने शीर्ष अदालत के पिछले साल 21 नवंबर के आदेश में दर्ज ‘बयान के उल्लंघन’ के लिए बिना शर्त माफी मांगी है।

समझिए पूरा मामला

शीर्ष अदालत ने 21 नवंबर, 2023 के आदेश में कहा था कि पतंजलि आयुर्वेद का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने उसे आश्वासन दिया था कि ‘अब से खासकर पतंजलि आयुर्वेद द्वारा निर्मित और विपणन किए गए उत्पादों के विज्ञापन या ब्रांडिंग के संबंध में किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं होगा। पतंजलि ने यह भी कहा था कि असर के संबंध में या चिकित्सा की किसी भी पद्धति के खिलाफ कोई भी बयान किसी भी रूप में मीडिया में जारी नहीं किया जाएगा।’ शीर्ष अदालत ने कहा था कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ‘इस तरह के आश्वासन का पालन करने के लिए बाध्य है।’ आश्वासन का पालन नहीं करने और उसके बाद मीडिया में बयान जारी किए जाने पर शीर्ष अदालत ने अप्रसन्नता व्यक्त की थी। न्यायालय ने बाद में पतंजलि को कारण बताओ नोटिस जारी किया कि क्यों न उसके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए।

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