महाकुंभ 2025
महाकुंभ: हर 12 साल में आयोजित होने वाला महाकुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। संगम तट पर इस बार एक खास बात देखने को मिलेगी, जब जापान की प्रसिद्ध योगी और महामंडलेश्वर, योगमाता कीको आइकावा उर्फ कैला माता कुंभ में पहली बार शाही उपस्थिति दर्ज कराएंगी। संगम के लोअर सेक्टर-18 में विदेशी साधु-संतों के लिए शाही लकड़ी के कॉटेज बनाए जा रहे हैं, जहां योगमाता भी मौजूद रहेंगी।
उनके नेतृत्व में विश्व शांति के लिए विशेष प्रार्थनाएं भी आयोजित की जाएंगी।
कौन हैं योगमाता ?
योगमाता कीको आइकावा, जिनके अनुयायी उन्हें ‘योगमाता’ के नाम से जानते हैं, जापान के यामानाशी से आती हैं। 1945 में जन्मी कीको का जीवन प्रारंभ से ही आध्यात्मिकता और योग के प्रति आकर्षित रहा। किशोरावस्था में ही उन्होंने ध्यान और योग के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया था। 20 साल की उम्र तक वे जापान में एक प्रमुख योग प्रशिक्षक के रूप में पहचानी जाने लगी थीं।
1972 में उन्होंने ‘ऐकावा कीको होलिस्टिक योग और स्वास्थ्य संघ’ की स्थापना की। इस संस्था के जरिए उन्होंने प्राणादि योग, योग नृत्य जैसी क्रांतिकारी प्रथाओं का प्रचार-प्रसार किया, जो जल्दी ही जापान में बहुत लोकप्रिय हो गईं। उनकी शिक्षाओं ने हजारों लोगों को योग और ध्यान के महत्व से परिचित कराया।
हालांकि कीको का आध्यात्मिक सफर यहीं नहीं थमा। 38 साल की उम्र में, योगमाता ने भारत का रुख किया, और हिमालय की कठिन तपस्वी परंपराओं का अनुसरण करने का निर्णय लिया। यही वो समय था जब उनकी मुलाकात हिमालय के प्रसिद्ध योगी पायलट बाबा से हुई, जिन्होंने उन्हें संत हरि बाबाजी के मार्गदर्शन में तपस्वी साधना की दिशा दिखाई।
कई वर्षों की साधना के बाद, कीको ने ध्यान की सर्वोच्च अवस्था ‘समाधि’ को प्राप्त किया, जो उनके जीवन का अहम मोड़ साबित हुआ। 1991 में, योगमाता ने पहली बार भारत में सार्वजनिक समाधि की, जो उनके अनुयायियों के लिए एक चमत्कारी अनुभव साबित हुआ। इसके बाद, उन्होंने 16 वर्षों में 18 बार समाधि का अभ्यास किया, जिसे देखने और समझने के लिए लाखों लोग जुटे।
2007 में, योगमाता को जूना अखाड़े से महामंडलेश्वर की उपाधि मिली, और वे इतिहास की पहली महिला महामंडलेश्वर बनीं। इस उपाधि के साथ उन्होंने न केवल भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में अपनी जगह बनाई, बल्कि महिलाओं के लिए भी एक नई राह खोली।
इस साल के कुंभ मेला में, योगमाता अपनी उपस्थिति से न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं को चुनौती देंगी, बल्कि वे महिलाओं को एक नया मार्गदर्शन भी देंगी। कुंभ मेला में उनकी पहली महिला महामंडलेश्वर के रूप में उपस्थिति अपने आप में एक ऐतिहासिक कदम है।
साथ ही, उनकी उपस्थिति से ये संदेश भी जाएगा कि योग और ध्यान की शक्ति सीमाओं से परे है, और यह विश्व शांति की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।
कुंभ मेला 2025 में योगमाता की उपस्थिति उन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी, जो जीवन में शांति और समृद्धि की तलाश में हैं।