हाल ही में लार्सन एंड टूब्रो (एल एंड टी) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन के “सप्ताह में 90 घंटे काम करने” वाले बयान ने सोशल मीडिया और कार्य क्षेत्र में एक नई बहस छेड़ दी है। उनकी टिप्पणी ने न केवल लोगों के कार्य संतुलन और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सवाल खड़े किए, बल्कि कई चर्चित हस्तियों और उद्योगपतियों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आईं।
सुब्रह्मण्यन की टिप्पणी और विवाद
एसएन सुब्रह्मण्यन ने अपने बयान में कहा कि कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करना चाहिए और रविवार को भी छुट्टी नहीं लेनी चाहिए। उन्होंने यहां तक कहा कि, “आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक देख सकते हैं?” इस बयान ने खासकर सोशल मीडिया पर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया। सुब्रह्मण्यन ने कहा कि अगर वे कर्मचारियों को रविवार को काम करने के लिए बाध्य कर सकते, तो उन्हें खुशी होती, क्योंकि वे खुद रविवार को काम करते हैं।
दीपक शेनॉय की प्रतिक्रिया
सुब्रह्मण्यन की इस टिप्पणी पर कैपिटलमाइंड के संस्थापक और सीईओ दीपक शेनॉय ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल में शायद सप्ताह में 100 घंटे तक काम किया है, लेकिन यह उन्होंने अपने व्यवसायिक जीवन के दौरान किया। शेनॉय ने कहा, “आपको काम के घंटे तय करने की जरूरत नहीं है। प्रेरित लोग खुशी से काम करते हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि असली काम आमतौर पर दिन में 4-5 घंटे ही होता है, लेकिन यह तय करना मुश्किल है कि ये घंटे कब होते हैं। उन्होंने बैठकें करने को ‘काम’ कहने पर सवाल उठाया और कहा कि इसमें वास्तविक काम से ज्यादा ऊर्जा लगती है। उन्होंने यह भी जोड़ा, “जब मैं काम करता हूं, तो पूरी तरह से करता हूं, और जब खेलता हूं, तो पूरी तरह खेलता हूं।”
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
सुब्रह्मण्यन के बयान के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। कई उद्योगपतियों, मशहूर हस्तियों और आम लोगों ने उनकी टिप्पणी की आलोचना की।
हर्ष गोयनका की प्रतिक्रिया
उद्योगपति हर्ष गोयनका ने मजाकिया अंदाज में लिखा, “सप्ताह में 90 घंटे? तो संडे का नाम बदलकर ‘सन-ड्यूटी’ क्यों न कर दिया जाए और छुट्टी को एक मिथक बना दिया जाए? मैं कड़ी मेहनत में विश्वास करता हूं, लेकिन जीवन को एक सतत कार्यालय शिफ्ट में बदल देना बर्नआउट का नुस्खा है।”
दीपिका पादुकोण का बयान
अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने सुब्रह्मण्यन के बयान पर आश्चर्य व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के मुंह से इस तरह का बयान सुनना चौंकाने वाला है। मानसिक स्वास्थ्य मायने रखता है।”
ज्वाला गुट्टा की आलोचना
पूर्व बैडमिंटन स्टार ज्वाला गुट्टा ने भी सुब्रह्मण्यन के बयान की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “उन्हें अपनी पत्नी को क्यों नहीं निहारना चाहिए और केवल रविवार को ही क्यों? यह दुखद है कि इतने पढ़े-लिखे और बड़े संगठनों के ऊंचे पदों पर बैठे लोग मानसिक स्वास्थ्य और आराम को गंभीरता से नहीं लेते।”
कार्य संतुलन पर बहस
सुब्रह्मण्यन के बयान ने काम और निजी जीवन के संतुलन (वर्क-लाइफ बैलेंस) पर व्यापक चर्चा शुरू कर दी। आज के दौर में, जब मानसिक स्वास्थ्य और कार्यक्षमता को अधिक महत्व दिया जा रहा है, ऐसे में इस प्रकार के बयान लोगों को प्रभावित कर सकते हैं।
काम के घंटे और उत्पादकता का संबंध
कई अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि लंबे कार्य घंटे वास्तव में उत्पादकता में सुधार करने के बजाय इसे कम कर सकते हैं। सप्ताह में 90-100 घंटे काम करने से न केवल शारीरिक और मानसिक थकावट बढ़ती है, बल्कि इससे कर्मचारियों का स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है।
बर्नआउट का खतरा
बर्नआउट (Burnout) एक ऐसी स्थिति है, जिसमें कर्मचारी लगातार काम के दबाव के कारण थकान और तनाव महसूस करने लगते हैं। यह न केवल उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करता है, बल्कि उनके निजी जीवन पर भी नकारात्मक असर डालता है।
कार्यक्षेत्र में बदलाव की जरूरत
सुब्रह्मण्यन के बयान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कार्यक्षेत्र में बदलाव की जरूरत है। कंपनियों को कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और कार्य संतुलन को प्राथमिकता देनी चाहिए।
समस्या का समाधान
- कार्य संतुलन बनाए रखना: कर्मचारियों को अधिक लचीले कार्य घंटे और छुट्टियों की सुविधा मिलनी चाहिए।
- मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान: कंपनियों को कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए परामर्श सत्र और सहायता कार्यक्रम चलाने चाहिए।
- उत्पादकता पर ध्यान: काम के घंटे बढ़ाने के बजाय, कंपनियों को कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।