सरकार किसी की भी हो, पार्टी कोई भी हो अब महिलाएं के बिना वो सत्ता में आ ही नहीं सकते है। क्योंकि आधी आबादी ही अब सत्ता की राहा मजबूत कर सकती हैं। पिछले कुछ सालों से राजनीतिक दलों ने महिला-केंद्रित कल्याण कार्यक्रमों को तरजीह दी है। इन सभी पार्टियों ने महिला मतदाताओं के एक मजबूत समर्थन का आधार बनाया है।
दरअसल में दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल ने महिलाओं के लिए बड़ी घोषणा करते हुए महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये देने की घोषणा की है। इतना ही नहीं अगर दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी दोबारा सत्ता में आती है तो हर महिला को महीने में 2100 रुपये मिलेंगे। वहीं, इससे साबित होता है कि सत्ता पर काबिज होने के लिए महिलाएं कितना जरूरी हैं। वहीं बात दूसरे राज्यों की भी करें तो वहां महिलाओं को लेकर भी की योजनाएं चल रही हैं।
महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों में भी यही ट्रेंड नजर आया है। महाराष्ट्र में सरकार हर परिवार की महिला मुखिया को प्रतिमाह 1500 रुपये दे रही है। चुनाव के तुरंत पहले सरकार ने रणनीतिक चाल चलते हुए इस रकम को 2500 तक करने का वादा किया था और इसी वादे की बदौलत वहा पर महायुति दोबारा महाराष्ट्र में वापसी कर पाई। वहीं, झारखंड में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा दोबारा ने दोबारा सत्ता में वापसी की..यहां भी महिला केंद्रित योजनाओं का असर देखने को मिला। राज्य सरकार योग्य महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये दे रही थी।
वहीं अब सरकार बनने के बाद वहां भी महिलाओं को 2500 रुपये महीना दे रहे हैं। हरियाणा में भी चुनावों के वक्त बीजेपी ने महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये देने की घोषणा की थी तो कांग्रेस ने भी घोषणा पत्र में हर महीने 2000 रूपये देने का एलान किया था। वहीं पंजाब में भी जहां इस वक्त आम आदमी पार्टी की सरकार है वहां भी 1100 रुपये हर महिला को दिए जा रहे। इसी तरह समझ सकते हैं कि हरेक पार्टी महिलाओं से ही उम्मीद लगाए बैठी है तो इससे साबित होता है कि महिलाएं ही सत्ता की राहा आसान बना रही हैं।
हांलाकि महिलाओं को मिल रही ये सौगाते राज्यों में वित्तीय बोझ बढ़ाती हैं लेकिन ये घोषणाएं महिलाओं को वोटिंग के लिए भी प्रोत्साहित करती है। कुछ ही साल पहले तक तो राजनीतिक विश्लेषक पुरुषों की तुलना में महिलाओं में कम मतदान प्रतिशत की आलोचना किया करते थे। इस अंतर को पाटने के लिए सबसे पहले मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने देश में पहली बार ऐसी स्कीम लॉन्च की थी जो लड़कियों और महिलाओं पर फोकस थी। लाडली बहना योजना एमपी में गेम-चेंजर साबित हुई। डायरेक्ट कैश ट्रांसफर का लाभ देने वाली इस योजना ने महिला मतदाताओं को रिकॉर्ड संख्या में वोट डालने के लिए प्रेरित किया।
वहीं, इसके चलते बजेपी की भारी जीत हुई और ये रणनीति चुनाव जीतने का फॉर्मूला साबित हुई। पिछले कुछ सालों में कई राज्य सरकारों ने ऐसी ही कल्याणकारी योजनाएं लागू की हैं जिसके फोकस में महिलाएं हैं। इनमें शिक्षा और स्वास्थ्य में महिलाओं की बेहतरी के लिए सीधा नगद ट्रांसफर शामिल है। मजेदार बात ये है कि इन योजनाओं को महिलाओं ने हाथों हाथ लिया और बदले में उन सरकारों को जमकर वोट दिया। हांलाकि डायरेक्ट कैश ट्रांसफर राज्य पर फिजूल का वित्तीय बोझ बढ़ाती हैं और इससे राज्यों की माली हालत खराब होती है। हिमाचल प्रदेश का ताजा उदाहरण हमारे सामने है और यहां भी ‘इंदिरा गांधी प्यारी बहना सुख सम्मान निधि योजना’के नाम से महिलाओं के खाते में हर महीने 1500 रुपये दिए जाते हैं।