दिल्ली आंदोलन 2.0दिल्ली आंदोलन 2.0

दिल्ली आंदोलन 2.0 के तहत शंभू बॉर्डर पर किसानों का विरोध प्रदर्शन अब और तेज़ हो चुका है। यह आंदोलन विभिन्न कारणों से व्यापक रूप से सुर्खियों में है, और किसानों की समस्याओं को लेकर यह संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है। शंभू बॉर्डर पर भारी संख्या में किसान एकत्र हुए हैं और वे अपनी कई लंबित मांगों के लिए सरकार से ठोस कार्रवाई की उम्मीद कर रहे हैं। इन प्रमुख मुद्दों में किसानों की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, बिजली दरों में कटौती, कर्जमाफी और अन्य लंबित मुद्दों पर त्वरित कदम उठाना शामिल है।

किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने जानकारी दी कि आंदोलन के तहत चल रहा आमरण अनशन सातवें दिन भी जारी है। यह आंदोलन पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो चुका है और शंभू बॉर्डर पर किसानों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि, पंधेर ने यह भी बताया कि अब तक सरकार की तरफ से कोई ठोस प्रस्ताव सामने नहीं आया है, जिससे किसानों का गुस्सा और बढ़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में पूरी तरह से विफल हो चुकी है।

सरवन सिंह पंधेर का कहना है कि सरकार ने जो वादे किसानों से किए थे, उन्हें पूरा करने में पूरी तरह से असफल रही है, और इसके बजाय, मंत्रियों के गैर-जिम्मेदाराना बयान आ रहे हैं, जिनसे किसान और भी आक्रोशित हो रहे हैं। पंधेर ने यह भी कहा कि सरकार के पास किसानों से बातचीत करने की कोई मंशा नहीं दिख रही है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज कर रही है।

दिल्ली आंदोलन 2.0
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किसान आंदोलन का बढ़ता प्रभाव

दिल्ली आंदोलन 2.0 का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। 305वें दिन भी किसानों का यह विरोध प्रदर्शन जारी है, और इसके साथ ही शंभू बॉर्डर पर एक बड़ी संख्या में किसान जुटे हुए हैं। ड्रोन से ली गई तस्वीरों में किसानों की बड़ी भीड़ देखी जा सकती है, जो आंदोलन को और भी मजबूती से जारी रखने का संकल्प ले रहे हैं। किसानों ने अपने आंदोलन के लिए नई रणनीतियों को अपनाया है, और उनका उद्देश्य यह है कि जब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाता, वे अपने संघर्ष को जारी रखेंगे।

किसान नेताओं की स्थिति

किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने आंदोलन के सातवें दिन यह स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा कोई ठोस कदम न उठाए जाने के कारण किसानों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याएं हल करने के बजाय, सरकार ने पूरी तरह से इसे नजरअंदाज कर दिया है। साथ ही, सरकार की ओर से यह संदेश भी आ रहा है कि वह किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं दे रही है। यह स्थिति किसानों के बीच असंतोष को और बढ़ा रही है, और वे इसे लेकर और अधिक जागरूक हो रहे हैं।

किसानों की प्रमुख मांगें

किसान आंदोलन की मुख्य मांगों में सबसे अहम हैं:

  1. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी: किसान चाहते हैं कि उनकी फसलों के लिए सरकार MSP की गारंटी दे, ताकि उन्हें अपनी फसलों का उचित मूल्य मिल सके और उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सके। किसानों का कहना है कि वर्तमान में उन्हें उनकी फसल के सही मूल्य नहीं मिलते, और इसके कारण वे आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
  2. बिजली दरों में कटौती: किसानों ने यह भी मांग की है कि सरकार बिजली की दरों में कटौती करे, जिससे उनकी कृषि लागत कम हो सके। बिजली के दाम बढ़ने से किसानों की उत्पादन लागत में वृद्धि हो रही है, और इस पर तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
  3. कर्जमाफी: किसान लगातार कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं, और उन्हें कर्ज चुकाने में कठिनाई हो रही है। इसके समाधान के लिए किसानों ने कर्जमाफी की मांग की है, ताकि वे अपनी खेती को फिर से एक नई दिशा दे सकें और आत्मनिर्भर बन सकें।
  4. अन्य लंबित मुद्दों पर कार्रवाई: इसके अतिरिक्त, किसानों की कई अन्य मांगें भी हैं, जिनमें कृषि संबंधी सुधार, बेहतर बीमा योजनाएं, और सरकारी योजनाओं का सही तरीके से लागू होना शामिल है।

सरकार की प्रतिक्रिया

हालांकि किसानों के आंदोलन के बढ़ने के बावजूद, सरकार की ओर से किसी भी प्रकार का ठोस समाधान नहीं आया है। किसानों का आरोप है कि सरकार अपनी वादों को लेकर पूरी तरह से असंवेदनशील हो गई है, और इसके बजाय मंत्री गैर-जिम्मेदाराना बयान दे रहे हैं, जिससे स्थिति और भी गंभीर हो रही है। सरकार ने कई बार यह कहा है कि किसानों से बातचीत करने के लिए वह तैयार है, लेकिन यह केवल एक दिखावा ही प्रतीत हो रहा है। किसानों का मानना है कि अगर सरकार गंभीर होती, तो अब तक इस मुद्दे का समाधान निकल चुका होता।

किसान आंदोलन का विस्तार

दिल्ली आंदोलन 2.0 के तहत आंदोलन अब केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों के किसान भी इसमें शामिल हो गए हैं, और यह आंदोलन अब राष्ट्रीय स्तर पर फैल चुका है। किसान नेताओं का कहना है कि इस आंदोलन को तब तक जारी रखा जाएगा जब तक सरकार उनकी मांगों को पूरा नहीं करती।

आंदोलन का भविष्य

यह आंदोलन अब किसानों की समस्याओं का प्रतीक बन चुका है। यदि सरकार ने किसानों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया, तो यह आंदोलन और तेज हो सकता है। शंभू बॉर्डर पर किसानों का जुटना और उनकी बढ़ती संख्या यह दर्शाती है कि यह संघर्ष अब किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है। यह आंदोलन पूरे देश में फैलने की क्षमता रखता है, और अगर सरकार ने जल्द ही समाधान नहीं निकाला, तो यह आंदोलन और भी व्यापक रूप ले सकता है।