उत्तर प्रदेश के संभल जिले में 24 नवंबर को हुई हिंसा ने पूरे इलाके में तनाव का माहौल बना दिया था। इस घटना में पांच लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हुए थे। इस हिंसा में एक डिप्टी एसपी भी घायल हुए थे, जिनके पैर में गोली लगी थी। इस घटना के बाद राजनीतिक गलियारों में काफी हलचल मच गई है, और अब समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद देने का एलान किया है।

संभल में हुई हिंसा 24 नवंबर को उस समय भड़की जब मस्जिद सर्वे के दौरान विवाद उत्पन्न हो गया था। विवाद के बाद, इलाके में तनाव बढ़ गया और हिंसा का रूप ले लिया। इस हिंसा में पांच लोग मारे गए और कई अन्य घायल हुए। इसके अलावा, डिप्टी एसपी भी गोली लगने से घायल हुए थे। हिंसा के बाद से संभल में स्थिति काफी तनावपूर्ण हो गई थी और वहां भारी पुलिस बल तैनात किया गया था।

सपा मुखिया अखिलेश यादव

सपा अध्यक्ष का एलान

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त की है और मारे गए लोगों के परिजनों के प्रति संवेदना जताई है। उन्होंने यह घोषणा की है कि सपा इस हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद देगी। सांसद रुचि वीरा ने भी इस मदद की पुष्टि करते हुए कहा कि पार्टी मारे गए लोगों के परिवारों के साथ है और यह सहायता राशि जल्द ही परिजनों तक पहुंचाई जाएगी।

अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी हमेशा पीड़ित परिवारों के साथ खड़ी रहती है और इस घटना से वह अत्यधिक दुखी हैं। इसके अलावा, सपा ने राज्य सरकार से यह मांग भी की है कि मृतकों के परिजनों को एक-एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता दी जाए।

सपा के इस कदम को राजनीतिक दृष्टि से भी देखा जा रहा है। इस हिंसा के बाद, सपा ने राज्य सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक 15 सदस्यीय डेलिगेशन को संभल भेजने का निर्णय लिया। यह डेलिगेशन मारे गए लोगों के परिजनों से मिलने और घटना की जांच करने के लिए संभल जाने वाला था। लेकिन डेलिगेशन के जाने से पहले ही पुलिस ने सपा नेताओं के घरों के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी थी, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि सत्ता पक्ष इस मामले में सपा के हस्तक्षेप को लेकर असहज है।

सपा के नेता, जिनमें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव शामिल थे, उनके घरों के बाहर पुलिस तैनात कर दी गई थी। इसका उद्देश्य यह था कि सपा के नेता बिना अनुमति के संभल नहीं पहुंच सकें। यह एक ऐसा कदम था, जिसे सपा ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में दखल देने के रूप में देखा और विरोध किया।

सपा के डेलिगेशन का उद्देश्य

सपा नेताओं का कहना था कि वे पीड़ित परिवारों से मिलकर पूरी जानकारी जुटाने और इस मामले की तह तक जाने के लिए संभल जाना चाहते थे। इसके बाद इस जानकारी को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ साझा करने की योजना थी। सपा के नेताओं का कहना था कि वे इस हिंसा के शिकार लोगों के साथ संवेदना जताने और सरकार से उचित मुआवजे की मांग करने के लिए वहां पहुंचना चाहते थे।

लेकिन पुलिस की तैनाती के कारण सपा के नेताओं को अपने यात्रा कार्यक्रम में बदलाव करना पड़ा। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह पुलिस का कदम राजनीतिक था, या फिर हिंसा के बाद सुरक्षा की आवश्यकता थी। यह बड़ा सवाल बन गया है कि क्या पुलिस का यह कदम लोकतांत्रिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है।

संभल हिंसा पर राजनीति

संभल हिंसा के बाद से राजनीति का खेल तेज हो गया था। जहां सपा ने मृतकों के परिवारों को मदद देने का एलान किया, वहीं भाजपा और अन्य दलों ने इस हिंसा की स्थिति को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया। भाजपा ने जहां इस हिंसा को विपक्ष की नाकामी के रूप में पेश किया, वहीं सपा ने इसे सरकार की विफलता के तौर पर देखा।

सपा ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह हिंसा के बाद उचित कार्रवाई नहीं कर रही है और यह स्थिति सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाती है। सपा ने मांग की कि सरकार को न केवल मृतकों के परिवारों को मुआवजा देना चाहिए, बल्कि इस हिंसा के आरोपियों को कड़ी सजा भी दिलानी चाहिए।

इसके अलावा, यह भी सवाल उठ रहा है कि राज्य सरकार ने इस मामले में क्या कार्रवाई की है और क्या सही तरीके से मामले की जांच की जा रही है। विपक्षी दलों का आरोप है कि राज्य सरकार जानबूझकर मामले की जांच को धीमा कर रही है, ताकि विपक्ष को इसमें कोई मुद्दा न मिल सके।

पुलिस सुरक्षा और सपा का विरोध

सपा नेताओं के घरों के बाहर पुलिस की तैनाती ने इस पूरे मामले को और भी राजनीतिक बना दिया। जहां एक तरफ पुलिस ने यह कदम हिंसा के बाद की स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए उठाया, वहीं दूसरी ओर सपा ने इसे अपने नेताओं के विरोध के रूप में देखा। सपा का आरोप है कि सरकार जानबूझकर उनके नेताओं को मौके पर जाने से रोकने के लिए यह कदम उठा रही है।

इस स्थिति में सपा ने यह भी आरोप लगाया कि यह कदम लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने और विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए उठाया गया है। हालांकि, पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह कदम इलाके में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लिया गया था और इसे किसी राजनीतिक उद्देश्य से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

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