महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा में हो रही देरी को लेकर महायुति और महा विकास अघाड़ी के बीच बयानबाजी जारी है। कांग्रेस नेता संजय राउत और अन्य महा विकास अघाड़ी (MVA) नेताओं ने महायुति पर निशाना साधते हुए कहा कि राज्य के फैसले दिल्ली में बैठे नेताओं द्वारा किए जा रहे हैं। इस मामले में राउत ने महायुति नेताओं के खिलाफ तीखी टिप्पणी की और आरोप लगाया कि दिल्ली में बैठकर ‘दो सुल्तान’ महाराष्ट्र के फैसले कर रहे हैं।

कांग्रेस नेता भाई जगताप ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र के सारे फैसले अब दिल्ली से तय हो रहे हैं। उन्होंने कहा, “यहां के सभी नेता कुछ नहीं कर पा रहे हैं। वे सिर्फ दिल्ली में जाकर मुजरा करते हैं, और दिल्ली में जो दो सुल्तान हैं, वही सारे फैसले करते हैं।” उनके इस बयान का तात्पर्य था कि राज्य में मुख्यमंत्री पद की चर्चा और अन्य महत्वपूर्ण निर्णय दिल्ली में ही लिए जा रहे हैं, जिससे राज्य की क्षेत्रीय अस्मिता पर सवाल उठ रहे हैं।

जगताप ने विशेष रूप से महायुति नेताओं की गुरुवार शाम को अमित शाह से हुई मुलाकात पर टिप्पणी की और कहा कि महाराष्ट्र के भविष्य को लेकर दिल्ली के नेताओं का वर्चस्व बढ़ गया है। इस दौरान, उन्होंने भाजपा और शिंदे-फडणवीस सरकार पर कटाक्ष करते हुए यह भी कहा कि राज्य के निर्णय अब केवल दिल्ली में बैठे दो प्रमुख नेताओं – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा लिए जाएंगे।

वहीं, शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने इस मुद्दे पर और भी तीखा रुख अपनाया। उन्होंने महायुति के नेताओं को निशाना बनाते हुए कहा, “एकनाथ शिंदे और अजित पवार को अपने मुद्दों के लिए बार-बार दिल्ली जाना होगा। उन्हें अमित शाह और प्रधानमंत्री की सुननी होगी।” राउत ने यह भी कहा कि अजित पवार को अपनी भूमिका को लेकर कोई उलझन नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वे डिप्टी सीएम थे और रहेंगे।

संजय राउत ने महायुति के इस बारे में बयान दिया, “लोकसभा चुनाव के बाद अजित पवार के चेहरे की रौनक चली गई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद वह रौनक वापस आ गई है। यह सब ईवीएम का कमाल है।” राउत ने मजाक करते हुए यह भी कहा कि एक त्रिमूर्ति मंदिर का निर्माण किया जाना चाहिए, जिसमें ईवीएम के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की प्रतिमा हो, ताकि यह साफ हो सके कि कैसे ये दोनों नेताओं के बीच में राज्य के निर्णय होते हैं।

यह स्थिति महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ ला रही है, जहां सत्ता के बंटवारे को लेकर दोनों प्रमुख गठबंधनों के बीच की खींचतान और बयानबाजी तेज हो गई है। महायुति में सीएम पद के उम्मीदवार को लेकर हो रही देरी और विपक्षी दलों की ओर से इसे लेकर उठाए गए सवाल अब भाजपा और शिंदे-फडणवीस सरकार के लिए चिंता का कारण बन गए हैं। वहीं, कांग्रेस और शिवसेना यूबीटी नेताओं द्वारा किए गए बयान से यह साफ है कि राज्य की राजनीति में दिल्ली का दखल और बढ़ने के आरोपों को लेकर घमासान जारी रहेगा।

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