संविधान दिवस के मौके पर कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में राहुल गांधी का माइक अचानक बंद हो गया, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई। यह घटना तब हुई जब राहुल गांधी तालकटोरा स्टेडियम में संबोधन कर रहे थे। माइक के बंद होने के बाद कार्यक्रम में नारेबाजी का माहौल बन गया, और कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने इस पर विरोध जताया। यह माइक बंद होने की घटना कांग्रेस के लिए बेहद दिलचस्प थी, क्योंकि राहुल गांधी पहले भी संसद में उनके माइक बंद होने का आरोप लगा चुके थे।
राहुल गांधी की मुस्कान और माइक बंद होने की घटना
राहुल गांधी ने इस माइक बंद होने की घटना पर मुस्कुराते हुए प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि देश में जो भी दलितों और पिछड़ों की बात करता है, उसका माइक हमेशा इसी तरह से बंद कर दिया जाता है। राहुल गांधी ने यह टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि “चाहे जितने भी माइक बंद कर लो, लेकिन मुझे बोलने से कोई नहीं रोक सकता।” उनकी यह प्रतिक्रिया इस बात का संकेत थी कि वह इस घटनाक्रम को राजनीतिक रूप से अधिक महत्व नहीं दे रहे थे, बल्कि इसे एक सामान्य स्थिति के रूप में लिया।
जातीय जनगणना पर जोर देते हुए राहुल गांधी की बातें
माइक चालू होने के बाद राहुल गांधी ने अपनी बात जारी रखी और जातीय जनगणना की मांग को फिर से दोहराया। उन्होंने कहा, “हमने कुछ दिन पहले तेलंगाना में जातिगत जनगणना का काम शुरू किया है। इसमें जो सवाल पूछे जा रहे हैं, वो प्रदेश के दलितों, पिछड़ों और गरीबों ने मिलकर तय किए हैं। यह एक ऐतिहासिक कदम है और तेलंगाना की जनता ने जातीय जनगणना का प्रारूप डिजाइन किया है।”
राहुल गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी जहां भी सत्ता में आएगी, वहां इसी पैटर्न का पालन करते हुए जातिगत जनगणना की जाएगी। उनका यह बयान जातिवाद के मुद्दे पर पार्टी के स्थायी रुख को दर्शाता है और समाज के पिछड़े वर्गों के लिए विशेष अधिकारों की मांग को फिर से बल देता है।
संविधान का सम्मान और सावरकर पर राहुल गांधी की टिप्पणी
कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी ने भारतीय संविधान के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, “संविधान सिर्फ एक किताब नहीं है, यह हिंदुस्तान की हजारों साल की सोच है। इसमें गांधी जी, आंबेडकर, भगवान बुद्ध, फुले जैसे महान लोगों की आवाज है, लेकिन सावरकर की आवाज कहीं नहीं है।”
राहुल गांधी का यह बयान भारतीय संविधान के संदर्भ में था, जिसमें उन्होंने संविधान निर्माताओं को सम्मानित किया और यह स्पष्ट किया कि संविधान में कभी भी हिंसा या डराने-धमकाने का उल्लेख नहीं किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान में यह नहीं लिखा गया है कि किसी को मारना या झूठ बोलकर सरकार चलानी चाहिए। राहुल गांधी का यह बयान उस समय पर आया जब केंद्र सरकार और कुछ भाजपा नेताओं की ओर से सावरकर के विचारों को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था।
माइक बंद होने का राजनीतिक अर्थ
राहुल गांधी का यह माइक बंद होने का मामला राजनीतिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। इसे एक संकेत के रूप में देखा जा रहा है कि जब भी कोई नेता कमजोर वर्गों के अधिकारों की बात करता है या सत्ता प्रतिष्ठान से टकराता है, तो उसे दबाने की कोशिश की जाती है। राहुल गांधी का यह बयान इस व्यापक विमर्श का हिस्सा था, जिसमें वह न केवल दलितों और पिछड़े वर्गों के हक की बात कर रहे थे, बल्कि भारतीय संविधान के विचारों को लेकर अपने दृढ़ विश्वास का भी प्रदर्शन कर रहे थे।
कांग्रेस पार्टी का विरोध और नारेबाजी
राहुल गांधी के माइक बंद होने के बाद कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने नारेबाजी शुरू कर दी, जो कि एक विरोध प्रदर्शन था। यह नारेबाजी कांग्रेस नेताओं द्वारा पार्टी के प्रति समर्थन और उस वक़्त के राजनीतिक माहौल में उठ रहे सवालों का हिस्सा थी। यह विरोध कांग्रेस की आंतरिक राजनीति का भी संकेत था, जिसमें पार्टी नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि उनके नेता को बोलने से रोका नहीं जा सकता।
संविधान दिवस का महत्व और कांग्रेस की भूमिका
संविधान दिवस का आयोजन हर साल 26 नवंबर को भारत में होता है, और यह दिन भारतीय संविधान की अहमियत और उसकी संरचना को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर और अन्य महान नेताओं को श्रद्धांजलि दी जाती है। राहुल गांधी ने संविधान दिवस के मौके पर अपने संबोधन में भारतीय संविधान के महत्व और उसकी समावेशी प्रकृति पर जोर दिया।
कांग्रेस पार्टी, जो हमेशा से सामाजिक न्याय, समानता और समावेशिता के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती आई है, ने संविधान दिवस के अवसर पर यह सुनिश्चित किया कि देश में हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले, और पिछड़े वर्गों, आदिवासियों और दलितों को उनका हक दिलवाने के लिए पार्टी प्रतिबद्ध है।