भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गई है, और इसके मुख्य कारणों में से एक है कृषि क्षेत्रों में पराली जलाना। पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों ही गंभीर हैं। खासकर दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में इस समस्या के चलते वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी के बाद केंद्र सरकार ने पराली जलाने पर जुर्माने की राशि को दोगुना कर दिया है, जिससे किसानों को इस प्रथा को रोकने के लिए और अधिक प्रेरित किया जा सके।

केंद्र ने जुर्माना बढ़ाया, कानून में संशोधन

केंद्र सरकार ने ‘एनवायरमेंटल कंपेंसेशन फॉर स्टबल बर्निंग संशोधन कानून’ (Environmental Compensation for Stubble Burning Amendment Act) के तहत जुर्माने की राशि को बढ़ा दिया है। अब, अगर कोई किसान पांच एकड़ से ज्यादा भूमि पर पराली जलाता है, तो उसे 30,000 रुपये का जुर्माना भरना होगा। इससे पहले जुर्माना कम था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी और बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए केंद्र ने यह कदम उठाया है।

इस संशोधन कानून के अंतर्गत, जिन किसानों के पास 2 एकड़ से कम जमीन है, वे यदि पराली जलाते हैं, तो उन्हें 5,000 रुपये का जुर्माना देना होगा। 2 से 5 एकड़ जमीन वाले किसानों पर जुर्माना 10,000 रुपये होगा, और जिनके पास 5 एकड़ से अधिक भूमि है, उनके लिए जुर्माना 30,000 रुपये कर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और सरकारों की आलोचना

केंद्र सरकार के इस सख्त कदम से पहले, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा की सरकारों को पराली जलाने की घटनाओं पर रोक लगाने में विफल रहने पर कड़ी आलोचना की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन दोनों राज्यों की सरकारों ने इस समस्या को हल करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए। साथ ही, कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को आदेश दिया कि वह पंजाब और हरियाणा सरकार के अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करे। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिन अधिकारियों ने इसके आदेशों की अवहेलना की है, उनके खिलाफ एक सप्ताह के अंदर मुकदमा दर्ज किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी इस बात का संकेत है कि सरकारों को इस मुद्दे को प्राथमिकता से हल करना होगा, क्योंकि वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि से न केवल पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा बन चुका है।

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में वायु प्रदूषण की स्थिति बेहद गंभीर हो गई है। हाल के दिनों में दिल्ली में वायु गुणवत्ता का स्तर 352 AQI (Air Quality Index) तक पहुंच गया था, जो ‘बेहद खराब’ श्रेणी में आता है। इस स्तर पर वायु में धुंआ और अन्य प्रदूषक तत्व इतने अधिक होते हैं कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। इसका असर खासकर उन लोगों पर पड़ता है, जो पहले से श्वसन संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जैसे अस्थमा या सांस की अन्य बीमारियां।

वायु प्रदूषण की यह गंभीर स्थिति दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से पराली जलाने के कारण बढ़ी है। हर साल, खासतौर पर अक्टूबर-नवंबर के महीनों में, इन राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ जाती हैं, जिसके कारण हवा में धुंआ फैल जाता है और प्रदूषण स्तर बढ़ जाता है।

केंद्र सरकार की रणनीतियाँ और कदम

केंद्र सरकार वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठा रही है, जिनमें से पराली जलाने पर जुर्माना एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके अलावा, सरकार ने स्मॉग टावरों, हरी क्षेत्र के वृक्षारोपण, और इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन जैसे उपायों पर भी ध्यान केंद्रित किया है।

इसके अलावा, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (Air Quality Management Commission) ने दिल्ली और NCR में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक विस्तृत योजना बनाई है। इस योजना में सर्दियों के महीनों में वायु प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए पराली जलाने को रोकने के अतिरिक्त उपाय किए गए हैं।

केंद्र सरकार ने अब तक कई पहल की हैं, जैसे कि सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना, धूल नियंत्रण के उपाय, और कृषि उत्पादकों को पराली जलाने के बजाय जैविक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए प्रेरित करना। सरकार ने किसानों को पराली जलाने के नुकसान और इसके पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में जागरूक करने के लिए कई अभियान चलाए हैं। इसके साथ ही, किसानों के लिए स्ट्रॉ चिपर जैसी मशीनों का प्रावधान किया गया है, ताकि वे पराली को जलाने के बजाय उसका पुनर्चक्रण कर सकें।

कृषि समुदाय और पराली जलाने के वैकल्पिक उपाय

कृषि समुदाय के लिए पराली जलाने का एक बड़ा कारण है कि यह उनके लिए एक सस्ता और त्वरित समाधान है। हालांकि, यह पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है। किसानों के लिए अन्य विकल्प प्रदान करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे कृषि अपशिष्ट का जैविक उपचार और मशीनों का उपयोग करके पराली को परिवर्तित करना। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें किसानों को इन तकनीकों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रही हैं, ताकि वे पराली जलाने के बजाय इन वैकल्पिक विधियों को अपनाएं।

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