कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने सरकारी ठेकों में मुसलमानों को 4 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है, जिसे लेकर बीजेपी ने विरोध शुरू कर दिया है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि यह आरक्षण धर्म के आधार पर दिया जा रहा है, जो संविधान के खिलाफ है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इसे तुष्टिकरण की राजनीति करार दिया है, और कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह राष्ट्रीय हितों को नजरअंदाज कर रही है। इस विवाद में समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने भी बीजेपी के सुर में सुर मिलाया और धर्म के आधार पर आरक्षण देने का विरोध किया।
मार्च 2025 में कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने सरकारी ठेकों में मुस्लिमों के लिए 4 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव किया था। यह आरक्षण कर्नाटक के ओबीसी वर्ग 2बी के तहत लागू किया गया है। बीजेपी का आरोप है कि इस आरक्षण से अन्य पिछड़ी जातियों का हक मारा जा रहा है, जबकि कांग्रेस इसे सामाजिक न्याय का हिस्सा मान रही है। कांग्रेस का कहना है कि यह आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं बल्कि सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से दिया गया है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनका समर्थन जाति जनगणना के पक्ष में है, लेकिन धर्म के आधार पर आरक्षण को वे स्वीकार नहीं करते। उनका कहना था कि समाज में जो लोग पिछड़े हैं, उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन यह धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए। इससे पहले सपा सांसद राम गोपाल यादव भी इसी तरह की टिप्पणी कर चुके हैं। हालांकि, सपा ने पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में अपने घोषणा पत्र में मुसलमानों के लिए 18 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था, लेकिन अखिलेश यादव ने इस वादे को पूरा नहीं किया।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अखिलेश यादव ने सपा की मुस्लिम परस्त छवि को बदलने के लिए ओबीसी और दलित समाज के नेताओं को प्राथमिकता दी है। हालांकि, मुस्लिम वोटरों को नजरअंदाज करना सपा के लिए महंगा साबित हो सकता है। 2022 में मुस्लिमों का 87 फीसदी वोट सपा को मिला था, और 2024 में भी मुस्लिम वोटर सपा के पक्ष में थे। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय की आबादी 20 फीसदी है, और 143 विधानसभा सीटों पर उनका प्रभाव है। ऐसे में अगर सपा मुस्लिम आरक्षण के खिलाफ खड़ी रहती है, तो इसका असर उसकी चुनावी सफलता पर पड़ सकता है।
कुल मिलाकर, कर्नाटक में कांग्रेस द्वारा मुस्लिम आरक्षण की पेशकश और सपा का इस पर विरोध, भारतीय राजनीति में धर्म और आरक्षण के मुद्दे को लेकर एक नई बहस को जन्म दे रहा है।
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